भूटान के प्रधानमंत्री ने बताया है कि चीन के साथ भूटान की सीमा वार्ता अपने आखिरी दौर में है, जिसके बाद दोनों देशों के बीच सीमांकन संभव हो जाएगा। इस प्रक्रिया के तहत चीन के साथ भूटान कुछ इलाकों की अदला-बदली भी कर सकता है।
भूटान भारत को एक तगड़ा झटका देने की तैयारी में है। वहां के प्रधानमंत्री लोताय त्सेरिंग ने भारत के एक अंग्रेजी अखबार में एक ऐसी जानकारी दी, जिससे भारतीय विदेश नीति प्रतिष्ठान की नींद उड़ जानी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने जो ऐसी टिप्पणियां भी की हैं, जो भारत के नजरिए से चिंताजनक हैं। त्सेरिंग ने बताया कि चीन के साथ भूटान की सीमा वार्ता अपने आखिरी दौर में है, जिसके बाद दोनों देशों के बीच सीमांकन हो जाएगा। इस प्रक्रिया के तहत चीन के साथ भूटान कुछ इलाकों की अदला-बदली भी कर सकता है। उनकी बातों से संकेत मिला कि भूटान दोकलाम के पास उस क्षेत्र को चीन को देने पर राजी हो जा सकता है, जो भारत-भूटान-चीन के ट्राइ-जंक्शन पर है। त्सेरिंग से जब चीन से चल रही वार्ता के बारे में भारत को भरोसे में लेने संबंधी सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि उनका देश किसी समस्या का हल इस तरह निकालना चाहता, जिससे एक दूसरा मसला खड़ा हो जाए। लेकिन इसी संदर्भ में उन्होंने कहा कि दोनों बड़े पड़ोसी देशों के साथ भूटान के ऐसे रिश्ते हैं, जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैँ।
भारत-भूटान संबंध की पृष्ठभूमि से परिचित किसी व्यक्ति के लिए यह टिप्पणी इसलिए चिंता का विषय होगी, क्योंकि इसके जरिए त्सेरिंग ने भारत और चीन दोनों के साथ भूटान रिश्ते को समान धरातल पर बता दिया। जबकि पारपंरिक रूप से भूटान खुद को भारत के प्रभाव क्षेत्र में मानता रहा है। उनकी अगली टिप्पणी भूटान के वर्तमान दृष्टिकोण और भी ज्यादा स्पष्ट करने वाली रही। उनसे पूछा गया कि क्या भूटान अपनी विदेश नीति में परिवर्तन ला रहा है, तो उन्होंने कहा कि हर देश को गतिशील विदेश नीति अपनानी चाहिए, जिसे वह अपने हितों के मुताबिक एडजस्ट करता रहे। जाहिर है, अब भूटान चीन के साथ अपने संबंध को अपने हितों के मुताबिक उस समय समायोजित कर रहा है, जब भारत और चीन के बीच भू-राजनीतिक होड़ तेज होती जा रही है। और ऐसा उस समय हो रहा है, जब भारत नरेंद्र मोदी सरकार की ‘मर्दाना’ विदेश नीति पर चल रहा है।