वैज्ञानिकों ने आगाह कर दिया है। अब यह नीति निर्माताओं की जिम्मेदारी है कि वे बचाव एवं सुधार के जरूरी उपाय करें। लेकिन क्या युद्ध और राजनीतिक ध्रुवीकरण के इस युग में नीति–निर्माताओं के पास ऐसी समस्याओं पर गौर करने का वक्त है?
पेय जल का संकट विकराल रूप ले रहा है। आने वाले दो ढाई दशकों में दुनिया की तकरीबन एक तिहाई आबादी पास स्वच्छ पेय जल नहीं होगा। इस आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा विकासशील देशों में होगा। भारत में आज हम गांव देहात या गरीब लोगों के इलाकों में घूमें, तो यह समझ सकते हैं कि स्थिति कितनी गंभीर है। अब चेतावनी दी गई है कि इस सदी के मध्य तक दुनिया में लगभग अतिरिक्त तीन अरब लोग ऐसे होंगे, जिनके पास साफ पेय जल नहीं होगा। तब तक नदियां इतनी प्रदूषित हो चुकी होंगी कि उनका पानी असुरक्षित हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु विज्ञान पर काम करने वाली समिति ने एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि अभी ही साल में कम-से-कम एक महीना ऐसा होता है, जब दुनिया की लगभग आधी आबादी जल संकट का सामना करती है। उधर कुछ यूरोपीय वैज्ञानिकों ने पाया है कि जिन इलाकों में पानी की कमी का संकट पैदा हो रहा है, वहां नाइट्रोजन प्रदूषण बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इंसानी गतिविधियों के कारण बड़े पैमाने पर नाइट्रोजन, पैथोजन्स, केमिकल्स और प्लास्टिक जल संसाधनों को प्रदूषित कर रहे हैं। खास तौर पर खेती में इस्तेमाल होने वाली खाद जल स्रोतों में काई जमा करती है, जिससे जलीय चक्र को नुकसान पहुंचता है और पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
जब नाइट्रोजन प्रदूषण के आधार पर आकलन किया गया तो पाया गया कि 2010 में 2,517 सब-बेसिन ऐसे थे, जिनमें पानी की कमी होने लगी थी। जबकि पारंपरिक माध्यमों से किए गए आकलन से यह संख्या सिर्फ 984 थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक 2050 तक यह संख्या 3,061 तक पहुंच सकती है, जिसका असर 6.8 से 7.8 अरब लोगों पर पड़ सकता है। यह संख्या पहले के आकलन से करीब तीन अरब ज्यादा है। तो वैज्ञानिकों ने आगाह कर दिया है। अब यह नीति निर्माताओं की जिम्मेदारी है कि वे आसन्न खतरे को देखते हुए बचाव एवं सुधार के जरूरी उपाय करें। लेकिन महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या युद्ध और राजनीतिक ध्रुवीकरण के इस युग में नीति-निर्माताओं के पास ऐसी समस्याओं पर गौर करने का वक्त है?