दो राज्यों में आए चुनाव नतीजों को जर्मनी में अगले साल होने वाले राष्ट्रीय चुनाव के लिए मजबूत संकेत समझा गया है। इस तरह फ्रांस के बाद अब जर्मनी में भी पारंपरिक दलों का वर्चस्व टूटता नजर आ रहा है।
जर्मनी के दो बड़े राज्यों में आए चुनाव नतीजों के उठे झटके पूरे यूरोप तक गए हैं। दोनों राज्यों में राष्ट्रीय सत्ताधारी गठबंधन में शामिल तीनों पार्टियों की बुरी हार हुई है, जबकि एक राज्य- थुरंगिया में धुर-दक्षिणपंथी पार्टी ऑल्टरनेटिव फॉर डॉयूशलैंड (एएफडी) पहले नंबर पर आ गई है। दूसरे राज्य सैक्सोनी में भी ये पार्टी पहले नंबर पर रही क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी से सिर्फ लगभग डेढ़ प्रतिशत वोटों से पीछे रहते हुए दूसरे स्थान पर रही। अन्य महत्त्वपूर्ण रुझान नई बनी वामपंथी पार्टी बीएसडब्लू का दोनों राज्यों में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन जाना है। बीएसडब्लू ने पारंपरिक वामपंथी पार्टियों- सोशल डेमोक्रेट्स और डाइ लिंके को हाशिये पर धकेल दिया है। 22 सितंबर को जर्मनी के एक अन्य राज्य में चुनाव होने वाला है। जनमत सर्वेक्षणों के मुताबिक वहां भी इन्हीं दोनों राज्यों जैसा नतीजा रहने का अनुमान है। इन रुझानों को जर्मनी में अगले साल होने वाले राष्ट्रीय चुनाव के लिए मजबूत संकेत समझा जा रहा है। इस तरह फ्रांस के बाद अब जर्मनी में भी पारंपरिक दलों का वर्चस्व टूटता नजर आ रहा है। जर्मनी यूरोप में सबसे बड़ी आबादी वाला देश है और यह वहां की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है।
स्वाभाविक रूप से जर्मनी से मिले संकेतों से पूरे यूरोप में हलचल मचेगी। कॉरपोरेट एवं वित्तीय क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि ऐसी दो पार्टियां तेजी से उभर रही हैं, जो साढ़े तीन दशक से जारी नीतिगत आम सहमति को चुनौती देती रही हैं। ये दोनों पार्टियां यूक्रेन युद्ध के लिए अमेरिका को जिम्मेदार मानती हैं और रूस से निकट संबंध बनाने की पैरोकार हैं। उन्हें मिली सफलता को जर्मनी में तेजी से फैली युद्ध विरोधी भावना के इजहार के रूप में देखा गया है। समझा जाता है कि यूक्रेन युद्ध के बाद से जर्मनी में जारी ऊर्जा एवं औद्योगिक संकटों से परेशान मतदाताओं ने सत्ताधारी गठबंधन में शामिल दलों को इन चुनावों में दंडित किया है। साथ ही दोनों उभरी पार्टियां आव्रजन विरोधी हैं, हालांकि ऐसा करने के उनके तर्क अलग-अलग हैं। उनके इस रुख का भी व्यापक असर हुआ दिखता है।