भारत की कूटनीतिक चुनौती

भारत की कूटनीतिक चुनौती

नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मोइज्जू के मुख्य सलाहकार ने चुनाव नतीजा आने के बाद एक भारतीय वेबसाइट से यह दो टूक कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा दांव है और मालदीव की अगली सरकार इस हकीकत को स्वीकार करते हुए अपनी नीति बनाएगी।

मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे से भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती बढ़ी है। लेकिन इसे भारत की पराजय के रूप में देखना सही नहीं होगा। पहली बात तो यह कि किसी चुनाव का नतीजा किसी एक मुद्दे से तय नहीं होता है। फिर यह जरूरी नहीं होता कि चुनाव जीतने के लिए कोई पार्टी जिस मुद्दे पर लोगों की भावनाओं को उकेरती है, उसे वह अपनी नीति का भी हिस्सा बनाए। नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू के मुख्य सलाहकार ने चुनाव नतीजा आने के बाद एक भारतीय वेबसाइट से यह दो टूक कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा दांव है और मालदीव की अगली सरकार इस हकीकत को स्वीकार करते हुए अपनी नीति बनाएगी। मुमकिन है कि वह चीन के प्रति भी अपेक्षाकृत अधिक दोस्ताना रुख रखे। संभव है कि वहां रफ्तार खो चुकी चीनी परियोजनाएं फिर से तेज गति से चलने लगें। इसके बावजूद भारत ने मालदीव में जिस बड़े पैमाने पर निवेश किया है, उसे नजरअंदाज करना नई सरकार के लिए संभव नहीं होगा।

मोइज्जू की प्रोग्रेसिव पार्टी ने ‘इंडिया आउट’ अभियान मुख्य रूप से भारतीय सुरक्षाकर्मियों को मालदीव से निकालने के लिए चलाया था। उसे आपत्ति इस बात से है कि भारत ने 2018 में हेलीकॉप्टरों का जो तोहफा दिया था, उनके संचालन की ट्रेनिंग के लिए गए भारतीय सुरक्षाकर्मी आज भी वहां मौजूद हैं। इस मुद्दे पर भारत को बदले हालात के मुताबिक लचीला रुख अपनाना चाहिए। अगर किसी देश की सरकार अपने विदेश संबंध में कई देशों को अहमियत देना चाहती है, तो उसके इस अधिकार का सम्मान करना सही नीति होगी। ऐसा रुख भारत के लिए मालदीव में नया सद्भाव पैदा करेगा। वैसे भी उचित कूटनीति वही होती है जिससे किसी देश के सभी राजनीतिक पक्षों के साथ दोस्ती बनी रहे। यह रुख संबंध को टिकाऊ और मजबूत बनाता है। आखिर यह धारणा क्यों बनी रहनी चाहिए कि भारत का झुकाव मालदीव की किसी एक पार्टी के पक्ष में ज्यादा है? कहने का तात्पर्य यह कि अगर भारतीय कूटनीति दूरदर्शिता दिखाए, तो मालदीव में अभी भी भारतीय हितों को सुरक्षित बनाए रखा जा सकता है।

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