क्या यह भारत के लिए आत्म-मंथन का विषय नहीं है कि भारतीय छात्र उन जगहों पर भी जाकर पढ़ना पसंद कर रहे हैं, जो विकसित देश की श्रेणी में नहीं आते। स्पष्टतः इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारत में पढ़ाई पर बढ़ते खर्च की है।
हाल में बांग्लादेश के छात्र आंदोलन के दौरान भारतवासियों को असहज कर देने वाले इस तथ्य पर रोशनी पड़ी कि अब बड़ी संख्या में भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए बांग्लादेश जा रहे हैं। बांग्लादेश डॉक्टर बनने के इच्छुक खासकर पश्चिम बंगाल के छात्रों की पसंदीदा जगह बन गया है। जब यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ था, तब ऐसा ही तथ्य वहां भी उजागर हुआ था। दरअसल, कई मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ चीन भी भारत के मेडिकल छात्रों का गंतव्य बना हुआ है। क्या यह भारत के लिए आत्म-मंथन का विषय नहीं है कि भारतीय छात्र उन जगहों पर भी जाकर पढ़ना पसंद कर रहे हैं, जो विकसित देश की श्रेणी में नहीं आते। क्यों? हर ऐसी चर्चा में यह कहा जाता है कि इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारत में पढ़ाई पर बढ़ते खर्च की है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक रहन-सहन, बोली और खान-पान की समानताओं के कारण पश्चिम बंगाल के छात्र बांग्लादेश को अपना ठिकाना बना रहे हैँ। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से वहां से बांग्लादेश जाने वाले छात्रों की तादाद और तेजी से बढ़ी है।
मोटे अनुमान के मुताबिक हर साल पश्चिम बंगाल से तीन हजार से ज्यादा छात्र बांग्लादेश के सरकारी और निजी मेडिकल कालेजों में दाखिला ले रहे हैं। विदेशों में छात्रों के दाखिले में मदद करने वाली कोलकाता की एक सलाहकार फर्म के अधिकारियों ने मीडिया से कहा है कि भारत में निजी मेडिकल कालेजों में पढ़ाई का न्यूनतम खर्च 50 से 60 लाख रुपये के बीच है। कई कॉलेजों में तो यह खर्च एक करोड़ से भी ऊपर है। जबकि बांग्लादेश के मेडिकल कॉलेजों में यह खर्च लगभग आधा है। यही वजह है कि बांग्लादेश अब भारतीय छात्रों की पसंद बन गया है। बांग्लादेश के 37 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में करीब 4350 सीटें हैं, जबकि 72 निजी कॉलेजों में सीटों की तादाद 6,489 है। सार्क देशों के लिए आरक्षण के तहत बांग्लादेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कुछ सीटें भारतीय छात्रों के लिए आरक्षित हैं। भारतीय छात्र इसका भी लाभ उठा रहे हैं। मगर यह भारत की स्थिति पर एक नकारात्मक टिप्पणी है।