स्पष्टतः पश्चिम एशिया बिगड़ती हालत संयुक्त राष्ट्र के तहत बनी विश्व व्यवस्था के निष्प्रभावी होने का सबूत है। जब बातचीत से विवाद हल करने के मंच बेअसर हो जाते हैं, तभी बात युद्ध तक पहुंचती है। आज यह खतरनाक स्थिति हमारे सामने है।
इजराइल पर ईरान के जवाबी हमले के साथ पश्चिम एशिया में युद्ध की आग और फैल गई है। यह पहला मौका है, जब ईरान फिलस्तीनी युद्ध में सीधे शामिल हुआ है। इस घटनाक्रम की पृष्ठभूमि एक अप्रैल को सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी दूतावास पर इजराइल के हमले से बनी। उस इजराइली हमले में 16 ईरानी मारे गए, जिनमें उसके एक वरिष्ठ सैनिक जनरल भी शामिल थे। उसके बाद ही ईरान ने स्पष्ट कर दिया था कि वह इस घटना का बदला लेगा।
शनिवार रात उसने लगभग 200 ड्रोन, क्रूज मिसाइल, और बैलिस्टिक मिसाइल इजराइल पर दागते हुए जवाबी हमले का पहला दौर पूरा किया। ज्यादातर मिसाइलों को इजराइल के इंटरसेप्टर्स ने रोक लिया। इसके बावजूद ईरान उस हवाई अड्डे को निशाना बनाने में सफल रहा, जहां से दमिश्क पर हमले के लिए इजराइली विमान उड़े थे। अब आशंका है कि इजराइल इन हमलों का जवाब देगा, जिससे आग और सुलग सकती है। अमेरिका ने एक बार फिर इजराइल को अपना पूरा समर्थन दिया है।
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ईरान को प्रभावी जवाब देने की संभावना पर विचार के लिए सोमवार को जी-7 देशों की बैठक बुलाई है। उधर रूस का समर्थन ईरान के साथ होने के ठोस संकेत हैं। ऐसे में पश्चिम एशिया की रणभूमि में बड़ी ताकतों के उलझने की आशंका और गहरा गई है। हालांकि चीन इसमें प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं है, लेकिन उसने दमिश्क में हमले की कड़ी निंदा की थी। पश्चिमी मीडिया की खबरों के मुताबिक अमेरिका ने जवाबी हमला ना करने के लिए ईरान पर दबाव डालने के लिए चीन से कहा था।
लेकिन चीन ने इससे इनकार कर दिया। जाहिर है, यूक्रेन के बाद अब पश्चिम एशिया में भी बड़ी ताकतों की प्रत्यक्ष या परोक्ष गोलबंदी होती नजर आ रही है। स्पष्टतः यह संयुक्त राष्ट्र के तहत बनी विश्व व्यवस्था के निष्प्रभावी होने का सबूत है। जब बातचीत से असहमतियां और विवाद हल करने के मंच बेअसर हो जाते हैं, तभी विवाद युद्ध के मैदान तक पहुंचते हैं। आज यह खतरनाक और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हमारे सामने है, जिसमें युद्ध का दायरा फैलता ही जा रहा है।