नेपाल में सियासी प्रहसन

नेपाल में सियासी प्रहसन

प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ने पिछले दिनों बयान दे दिया कि उनके पास संख्या का जादू है और वे पूरे कार्यकाल तक सरकार का नेतृत्व करते रहेंगे। इससे ओली भड़क गए। नतीजतन, उनकी पार्टी ने नेपाली कांग्रेस से हाथ मिला लिया है।

नेपाल में फिर नई सरकार बनने जा रही है। नवंबर 2022 में जब पिछला आम चुनाव हुआ, तब उसके बाद से- यानी डेढ़ साल में यह पांचवीं सरकार होगी। आम चुनाव प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) ने नेपाली कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ा था। नेपाली कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। मगर जल्द ही सत्ता साझा करने के सवाल पर माओइस्ट सेंटर और नेपाली कांग्रेस में विवाद हो गया। नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा की प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्त्वाकांक्षाएं थीँ। तो दहल पाला बदल कर मुख्य विपक्षी दल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) से जा मिले। मगर वहां भी ज्यादा समय तक बात नहीं बनी। तो फिर नेपाली कांग्रेस के पास लौट आए। इसी बीच देश में कम्युनिस्ट एकता का एजेंडा चला। तब दहल फिर से यूएमएल से जा मिले। इस बार करार हुआ कि प्रतिनिधि सभा (संसद के निचले सदन) के बाकी कार्यकाल को आधा-आधा बांट कर दहल और यूएमएल के नेता केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री रहेंगे।

मगर दहल ने पिछले दिनों बयान दे दिया कि उनके पास संख्या का जादू है और वे पूरे कार्यकाल तक सरकार का नेतृत्व करते रहेंगे। इससे ओली भड़क गए। नतीजतन, उनकी पार्टी ने नेपाली कांग्रेस से हाथ मिला लिया। अब यूएमएल ने दहल सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। ओली और देउबा ने हाथ मिला लिया है। फॉर्मूला वही है- मौजूदा कार्यकाल में समान अवधि तक दोनों के प्रधानमंत्री रहने का। पहले पद ओली को मिलेगा, जिनकी पार्टी के पास 78 सीटें हैं। 89 सीटों वाली नेपाली कांग्रेस के नेता को पद बाद में मिलेगा। लेकिन बाद का किसको पता है! वैसे अभी ओली को यह पद पाने के लिए कुछ इंतजार करना पड़ सकता है, क्योंकि दहल ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है। उनके पास विश्वास मत का सामना करने के लिए महीने भर का वक्त है। कहा जाता है कि राजनीति में एक सप्ताह लंबी अवधि होता है। और नेपाल में- जहां सियासत को राजनीतिक दलों ने प्रहसन बना दिया है- वहां तो एक महीना एक युग की तरह है!

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