ऐसी असहनशीलता!

ऐसी असहनशीलता!

MLC Sunil Singh Membership Canceled: यह सोच अपने आप में समस्याग्रस्त है कि सत्ता की ऊंची कुर्सी पर पहुंच गया व्यक्ति परम आदरणीय है और इसलिए वह कटाक्ष या आलोचनाओं से ऊपर है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में इस वक्त ऐसी संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है।

बिहार में इसलिए एमएलसी सदस्य सुनील सिंह की विधान परिषद सदस्यता रद्द कर दी गई कि उन्होंने कथित तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मखौल उड़ाया था। परिषद की इथिक्स कमेटी ने सिंह के इस व्यवहार को मुख्यमंत्री के लिए अपमानजनक माना। इसके अलावा राष्ट्रीय जनता दल के एक अन्य एमएलसी के व्यवहार को उद्दंड मानते हुए इथिक्स कमेटी ने उन्हें दो दिन के लिए निलंबित कर दिया। क्या इन्हें सामान्य घटना माना जाएगा? (MLC Sunil Singh Membership Canceled)

 

150 सदस्यों को एक साथ निलंबित किया गया

अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार के नेता संसद में बढ़ती चली गई असहनशीलता से प्रेरित हुए हैं। इस संदर्भ में स्मरणीय है कि पिछली लोकसभा के दौरान लगभग डेढ़ सौ सदस्यों को एक साथ निलंबित किया गया था और राज्यसभा में संजय सिंह एवं राघव चड्ढा जैसे सांसदों को लंबी अवधि के लिए निलंबित किया गया था। क्या उससे राज्यों के सत्ताधारी नेताओं ने सीख ग्रहण की है? नीतीश कुमार की असहनशीलता तो पहले से बहुचर्चित है। हाल में मामूली आलोचना पर भी वे जैसा उग्र व्यवहार दिखा रहे हैं, उसके उदाहरण कम ही मिलेंगे। 

पिछले हफ्ते ही उन्होंने एक महिला विधायक को यह कह दिया कि महिला होने की वजह से वे बजट से संबंधित मसलों को नहीं समझती हैं। बहरहाल, अब तक बात तीखे स्वभाव की थी। अब सीधे एक सदस्य की विधान परिषद सदस्यता रद्द की गई है। यह विचारणीय है कि क्या कोई लोकतंत्र सत्ता पक्ष की ऐसी असहनशीलता के साथ चल सकता है? अथवा, जहां इस तरह की असहनशीलता दिखाई जा रही हो, क्या उस व्यवस्था को लोकतंत्र कहा भी जा सकता है?

भारत में ऐसी संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा

यह सोच अपने आप में समस्याग्रस्त है कि सत्ता की ऊंची कुर्सी पर पहुंच गया व्यक्ति परम आदरणीय है और इसलिए वह कटाक्ष या आलोचनाओं से ऊपर है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में इस वक्त ऐसी संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके क्या परिणाम हो सकते हैं, अब यह जाहिर होने लगा है। इस बार लोकसभा में विपक्ष पीठासीन अधिकारियों को लेकर जिस तरह आक्रामक है, वह इसकी ही मिसाल है। विपक्ष का व्यवहार भी उचित नहीं है, लेकिन क्रिया-प्रतिक्रिया में बात ऐसी ही अप्रिय हकीकत तक पहुंचती है।

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