मार्केट रिसर्च फर्म केंटार के मुताबिक इस वर्ष पहली तिमाही में औसत भारतीय शहरी परिवार के किराना खर्च में 20 प्रतिशत और ग्रामीण परिवार के इस खर्च में 10 बढ़ोतरी हुई। इस जारी सिलसिले के कारण आम भारतीय परिवार गहरे दबाव में है।
मार्केट रिसर्च फर्म केंटार के मुताबिक भारत की एक-तिहाई आबादी महंगाई के कारण “भीषण दबाव” में है। सरकार के मुताबिक मुद्रास्फीति की दर नियंत्रण में आ चुकी है, मगर वास्तव में उपभोक्ताओं के लिए अपने खर्चों को संभालना कठिन बना हुआ है। केंटार ने अपनी ताजा एफएमसीजी पल्स रिपोर्ट में कहा है- ‘मुद्रास्फीति भले नीचे आ गई हो, लेकिन उपभोक्ताओं पर उसका असर खत्म नहीं हुआ है।’ इसकी सबसे बड़ी वजह किराना सामग्रियों की महंगाई दर ऊंची बने रहना है। केंटार के मुताबिक भारत में आम परिवारों के बजट का 24 फीसदी हिस्सा किराना की खरीद पर खर्च होता है। उनके बजट का 16 प्रतिशत हिस्सा फल, सब्जियों, दूग्ध उत्पादों आदि पर खर्च हो जाता है। बिजली-गैस जैसी आम सेवाओं और किराये पर आय का 12 फीसदी, ईएमआई या ऋण चुकाने पर 9 फीसदी, शिक्षा पर 8 प्रतिशत, परिवहन पर सात फीसदी, और फैशन पर पांच फीसदी रकम खर्च होती है।
अन्य मदों में 23 प्रतिशत आमदनी चली जाती है। ध्यान देने की बात है कि यह औसत खर्च है। दरअसल, जितनी कम आमदनी वाला का परिवार हो, उसका उतना बड़ा हिस्सा खाद्य मद में जाता है। निम्न और निम्न मध्य वर्गीय परिवारों का यह खर्च अक्सर उनकी आमदनी के 50 फीसदी से भी ऊपर होता है। ऐसे में खाद्य पदार्थ महंगे होते जा रहे हों, तो आम परिवारों का बजट बिगड़ना लाजिमी ही है। और ऐसा ही कम से कम 2022 से भारत में हो रहा है। केंटार के मुताबिक इस वर्ष जनवरी-मार्च तिमाही में एक औसत भारतीय शहरी परिवार के किराना खर्च में 20 प्रतिशत और ग्रामीण परिवार के इस खर्च में 10 की बढ़ोतरी हुई। केंटार ने ध्यान दिलाया है कि पिछले दिसंबर के बाद से बढ़ा ये खर्च उतनी ही मात्रा की सामग्रियों की खरीदारी में गया। इस रिपोर्ट ने एक बार फिर महंगाई के कारण भारत में बढ़ी मुसीबतों का कच्चा चिट्ठा खोला है। आय वृद्धि के गतिरुद्ध होने और रोजगार या नई कमाई के अवसरों के सिकुड़ते अवसरों के बीच महंगाई के कारण आम जन की सघन होती परेशानियों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।