यह लाख टके का सवाल है कि जिस तरह लोकसभा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा में अपने हिसाब से टिकट बांटी उस तरह से वे विधानसभ चुनाव में बांट पाएंगे या नहीं? सिरसा सीट पर कुमारी शैलजा को छोड़ कर बाकी नौ सीटों पर उम्मीदवार हुड्डा ने तय कराए थे। उन्होंने हरिद्वार में विधानसभा का चुनाव हारे एक नेता को लाकर सोनीपत सीट से चुनाव लड़ाया तो अपने दोस्त राज बब्बर को गुड़गांव सीट से टिकट दिलवाई। उनके चलते भिवानी महेंद्रगढ़ सीट पर किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को टिकट नहीं मिली। वहां से उन्होंने राव दान सिंह को उम्मीदवार बनवाया। लेकिन विधानसभा चुनाव में इस तरह से टिकटों का बंटवारा शायद नहीं हो पाए।
इसका कारण यह है कि लोकसभा चुनाव से पहले तक कांग्रेस आलाकमान की स्थिति किसी भी क्षत्रप के कामकाज में दखल देने की नहीं थी। लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद से ही पार्टी आलाकमान बैकफुट पर था। ऊपर से पिछले साल दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की करारी हार ने सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व को बहुत कमजोर कर दिया था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। कांग्रेस की सीटें लगभग दोगुनी हो गईं और राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्ष का नेता स्वीकार कर लिया गया। वे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं और उनका आत्मविश्वास भी लौट आया है।
तभी बताय जा रहा है कि पिछले दिनों एक कार्यक्रम में राहुल गांधी, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुछ अन्य नेता थे तो किसी संदर्भ में हुड्डा ने कहा कि यह उनका आखिरी चुनाव है। इस पर तंज करते हुए राहुल ने कहा कि यही बात कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने भी कही थी। इस पर हुड्डा ने कहा कि वे अपनी जुबान के आदमी हैं। लेकिन राहुल ने अपना इरादा जाहिर कर दिया है। इस बार टिकट में मनमानी नहीं चल पाएगी। पार्टी के प्रभारी के अलावा प्रदेश के नेताओं जैसे कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला, कैप्टेन अजय यादव आदि की भी सुनी जाएगी। दूसरी ओर हुड्डा की चिंता है कि अगर वे ज्यादातर टिकट अपने हिसाब से नहीं दिला पाए तो चुनाव जीतने के बाद भी मुख्यमंत्री बनना मुश्किल हो जाएगा। आखिर वे भी जब मुख्यमंत्री बने थे तब पार्टी ने भजनलाल के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था।