राजस्‍थान सरकार ‘भूजल संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण’ विधेयक लाएगीः जोशी

राजस्‍थान सरकार ‘भूजल संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण’ विधेयक लाएगीः जोशी

जयपुर। राजस्थान सरकार की भूजल (ground water) के समुचित उपयोग और औद्योगिक इकाइयों की सुविधा के लिये ‘‘भूजल संरक्षण एवं प्रबंधन प्राधिकरण’’ बनाने की योजना है और वह इस संबंध में एक विधेयक पर काम कर रही है।

राजस्थान विधानसभा (Rajasthan Legislative Assembly) के हाल में समाप्त हुए बजट सत्र में भूजल विभाग के प्रभारी मंत्री महेश जोशी ने सदन को सूचित किया था कि ‘‘भूजल संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण’’ (Ground Water Conservation and Management Authority) के गठन की बजट घोषणा के अनुपालन में, विभाग ने मसौदा विधेयक तैयार कर लिया है। उन्होंने बताया कि विधि विभाग से प्राप्त सुझावों को शामिल कर विधेयक को वित्त विभाग को भेज दिया गया है।

सरकार की ओर से यह कदम ऐसे समय उठाया जा रहा है जब अत्यधिक जल दोहन और भूजल के सीमित पुनर्भरण के कारण इस रेगिस्तानी राज्य में भूजल के 72 प्रतिशत से अधिक स्त्रोत (ब्लॉक) ‘‘अति-दोहित’’ श्रेणी में आ गए हैं। एक अधिकारी के अनुसार, पिछले वर्षों की तुलना में राज्य में दोहित ब्लॉक की संख्या में वृद्धि हुई है।

भूजल के गिरते स्तर ने भी किसानों की चिंता बढ़ा दी है। किसानों के अनुसार, सरकार को अपना ध्यान सिंचाई जल समस्याओं को दूर करने, सिंचाई योजनाओं को तैयार करने और पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) जैसी परियोजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने पर केंद्रित करना चाहिए।

पूर्वी राजस्थान में 13 जिलों की सिंचाई और पेयजल जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य में पिछली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत सरकार के शासन के दौरान ईआरसीपी की परिकल्पना की गई थी। कांग्रेस के नेतृत्व वाली मौजूदा राज्य सरकार ने परियोजना के लिए 14,500 करोड़ रुपये के वित्तीय प्रस्ताव को मंजूरी दी है। साथ ही, राज्‍य सरकार ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की मांग केंद्र सरकार से कर रही है।

राज्य के भूजल संसाधनों के 2022 में किए गए नवीनतम आकलन के अनुसार, 302 इकाइयों (295 ब्लॉक और सात शहरी इकाइयां) में से केवल 38 ‘‘सुरक्षित’’ श्रेणी में हैं, जबकि 219 ‘अति-दोह‍ित’ श्रेणी में हैं, 22 ‘‘गंभीर’’ एवं 20 ‘‘अर्ध गंभीर’’ जोन में हैं। वहीं, तीन इकाइयों का पानी खारा होने के कारण उनका मूल्यांकन नहीं हो सका।

राजस्थान के गतिशील भूजल संसाधनों का 31 मार्च, 2022 तक का आकलन केंद्रीय भूजल बोर्ड और राज्य भूजल विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था और पिछले साल सितंबर में एक राज्य स्तरीय समिति द्वारा अनुमोदित किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, भूजल दोहन 151.06 प्रतिशत था। सिंचाई के उद्देश्य से पानी का दोहन सबसे अधिक किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, 33 जिलों में से 14 में सभी ब्लॉक अति-दोहित हैं, जिसका अर्थ है कि पानी का दोहन 100 प्रतिशत से अधिक है (यानी जल निकासी, पुनर्भरण से अधिक है)। ये जिले हैं- अजमेर, अलवर, भरतपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, दौसा, धौलपुर, जयपुर, जैसलमेर, जालौर, झुंझुनूं, नागौर, सवाई माधोपुर और सीकर। वहीं, चार जिलों – बांसवाड़ा, डूंगरपुर, गंगानगर और हनुमानगढ़ – के अधिकांश ब्लॉक ‘सुरक्षित’ श्रेणी में हैं। उन ब्लॉक को ‘सुरक्षित’ श्रेणी का माना जाता है जहां जल दोहन 70 फीसदी तक होता है।

भूजल विभाग के जयपुर सर्कल के अधीक्षण अभियंता आर. के. मिश्रा ने कहा कि आकलन के लिए मानसून से पहले और बाद में नामित कुओं के जल स्तर की निगरानी की जाती है तथा क्षेत्र विशेष में जनसंख्या और औद्योगिक सेट-अप सहित कई अन्य कारकों पर विचार किया जाता है। उन्‍होंने बताया, ‘नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, कुल 219 ब्लॉक अति-दोह‍ित श्रेणी के अंतर्गत हैं। यह संख्या पिछले वर्षों की तुलना में अधिक है। भूजल के अत्‍यधिक दोहन के कारण सुरक्षित श्रेणी के ब्‍लॉक की संख्‍या घट रही है, जबकि अति-दोहित, गंभीर एवं अर्द्ध गंभीर ब्लॉक की संख्या बढ़ रही है।’

मिश्रा ने कहा कि भूजल पुनर्भरण और दोहन के आधार पर ब्‍लॉक की स्थिति बदलती रहती है। आकलन रिपोर्ट में, वार्षिक दोहन योग्य भूजल संसाधन 10.96 अरब घन मीटर (बीसीएम) था, जबकि सभी उपयोगों के लिए वार्षिक सकल भूजल दोहन 16.55 बीसीएम रहा, जिसमें सिंचाई के लिए 14.18 बीसीएम और घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए 2.37 बीसीएम शामिल था।

किसान नेता रामपाल जाट ने कहा कि खेतीबाड़ी के लिए पानी किसी कीमती चीज से कम नहीं है और अगर सरकारों द्वारा पानी के मुद्दे को ठीक से ध्‍यान नहीं दिया जाता है तो अनेक किसानों को कर्ज लेना पड़ेगा। उन्‍होंने अफसोस जताते हुए कहा, सरकारों की प्राथमिकता सड़क बुनियादी ढांचे को मजबूत करना है न कि सिंचाई के पानी की समस्याओं को दूर करना। भूजल लगातार कम हो रहा है। नदियों में अतिरिक्त पानी बर्बाद हो रहा है। सिंचाई परियोजनाओं के लिए इसका अधिक सार्थक उपयोग किया जा सकता है, लेकिन ऐसा लगता है कि यह सरकारों की प्राथमिकता सूची में नहीं है।

जयपुर का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि झोटवाड़ा और आस-पास के क्षेत्रों में मटर की खेती अधिक होती थी और पूर्ववर्ती सरकार फसल के लिए एक समर्पित ‘‘मंडी’’ स्थापित करने पर विचार कर रही थी लेकिन पानी की कमी के कारण उत्‍पादन लगातार कम होने से ऐसा हो नहीं सका। उन्होंने कहा कि सिंचाई परियोजनाएं बनने पर पेयजल की समस्या का भी समाधान होता है। उन्होंने कहा, ‘‘राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर परियोजना सिंचाई के लिए बनाई गई थी, लेकिन आज कई पेयजल परियोजनाएं इससे जुड़ी हुई हैं।’’

गंगानगर, हनुमानगढ़ और आसपास के जिलों में यह नहर सिंचाई की जीवन रेखा है। जयपुर के एक अन्य किसान, रामदेव सैनी ने कहा कि इंदिरा गांधी नहर वाले राज्‍य के उत्तरी क्षेत्र को छोड़कर, अधिकांश क्षेत्र पानी के लिए भूजल और मानसून की बारिश पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा कि गेहूं सबसे अधिक पानी की खपत वाली फसलों में से एक है और अगर इसे उचित मात्रा में पानी नहीं दिया जाता है, तो दाने का आकार प्रभावित होता है। उन्होंने कहा कि कम पानी में पैदा होने वाली फसल ज्यादा मुनाफा नहीं देती है। एक अन्य किसान ने कहा, ‘‘पानी की उचित उपलब्धता होने पर लागत काफी कम हो जाती है।’’ (भाषा)

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें