नई दिल्ली। महाराष्ट्र में शिव सेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के बीच चल रहे कानूनी मामले में सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को फैसला सुनाया। सर्वोच्च अदालत ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनकी पार्टी के 15 अन्य विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया। अदालत ने स्पीकर से इस मामले में जल्दी फैसला करने को कहा। इसी तरह अदालत ने उद्धव ठाकरे की सरकार को बहाल करने से भी इनकार कर दिया।
इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के विधानसभा की बैठक बुलाने के फैसले को लेकर कहा कि यह कानून सम्मत नहीं था। अदालत ने एकनाथ शिंदे गुट के भरत गोगावले को शिव सेना का व्हिप नियुक्त करने के स्पीकर के फैसले को दो टूक अंदाज में अवैध बताया। तब के राज्यपाल और स्पीकर के खिलाफ सर्वोच्च अदालत की सख्त टिप्पणी के बावजूद उद्धव ठाकरे गुट को राहत नहीं मिली। अदालत ने कहा कि उद्धव ने स्वेच्छा से सीएम पद से इस्तीफा दिया था इसलिए उनकी सरकार नहीं बहाल की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का बहुमत साबित कराने का फैसला गलत था और अगर उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया होता, तो उन्हें राहत दी जा सकती थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उद्धव सरकार को बहाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया था, और विश्वास मत का सामना नहीं किया था, इसलिए उनके इस्तीफे को रद्द नहीं कर सकते। अदालत ने विधानसभा स्पीकर से 16 बागी विधायकों की अयोग्यता के मुद्दे का समय सीमा के भीतर निपटारा करने के लिए भी कहा।
विधानसभा में व्हिप की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि यह मानना कि विधायक दल ही व्हिप नियुक्त करता है, राजनीतिक दल के गर्भनाल यानी अम्बिलिकल कॉर्ड को तोड़ना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि विधायकों का समूह राजनीतिक दल से अलग हो सकता है। अदालत ने बहुत साफ अंदाज में कहा कि स्पीकर को सिर्फ राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए। स्पीकर को गोगावले को व्हिप की मान्यता नहीं देनी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिव सेना के व्हिप के रूप में गोगावाले को नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला अवैध था।
राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाते हुए अदालत ने कहा कि राज्यपाल ये नहीं समझ सकते थे कि उद्धव ठाकरे बहुमत खो चुके हैं। राज्यपाल के सामने ऐसा कोई दस्तावेज नहीं था, जिसमें कहा गया कि वो सरकार को गिराना चाहते हैं। केवल सरकार के कुछ फैसलों में मतभेद था। अदालत ने कहा कि राज्यपाल के पास शिंदे और समर्थक विधायकों की सुरक्षा को लेकर पत्र आया। राज्यपाल को इस पत्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए था। क्योंकि इसमें कहीं नहीं कहा गया था सरकार बहुमत में नहीं रही।