इतनी नज़ाकत ठीक नहीं

इतनी नज़ाकत ठीक नहीं

अडानी प्रकरण के भारत की राजनीति पर संभावित परिणाम के बारे में सोरस ने जो कहा, वह विशुद्ध रूप से उनकी अपनी राय है, जिससे असहमत हुआ जा सकता है। लेकिन उनका बयान भारत पर हमला है, यह कहना अति संवेदनशीलता का परिचय देना ही होगा।

अरबपति कारोबारी जॉर्ज सोरस ने जो कहा, उसमें कई बातें उन्होंने 2020 में दावोस सम्मेलन में भी कही थीं। भारत में मुस्लिम अधिकारों के दमन और जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता खत्म करने को लेकर तब भी उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की थी। इस बार म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने वो पुरानी बातें दोहराई और साथ ही अडानी प्रकरण पर अपनी राय जताई। अडानी प्रकरण के भारत की राजनीति पर संभावित परिणाम के बारे में उन्होंने जो कहा, वह विशुद्ध रूप से उनकी अपनी राय है, जिससे सहमत या असहमत हुआ जा सकता है। लेकिन एक कारोबारी का ऐसा बयान भारत पर हमला है, यह कहना अति संवेदनशीलता का परिचय देना ही होगा। दरअसल, इस समय अंतरराष्ट्रीय वित्तीय अखबारों पर ध्यान दें, तो यह साफ हो जाता है कि अडानी प्रकरण से भारत की अर्थव्यवस्था चर्चा के केंद्र में आई है।

उसमें कही जा रही बातों में यह प्रमुख है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर जिस तरह कुछ प्राइवेट पूंजीपति घरानों का शिकंजा कस गया है, उससे देश में प्रतिस्पर्धा संकुचित होगी और लंबी अवधि में उसका असर देश के आर्थिक विकास पर पड़ेगा। इसके अलावा अडानी प्रकरण में भारत की विनियामक संस्थाओं की भूमिका पर भी सवाल उठे हैँ। अब इन सवालों को लेकर यह धारणा बनाना कि सारी दुनिया भारत के खिलाफ हो गई है या भारत की विकास कथा के खिलाफ को अंतरराष्ट्रीय साजिश रची गई है, तो यह अकारण भय दिखाना होगा। या फिर इसे उठे असल सवालों से देश की जनता का ध्यान हटाने की कोशिश के रूप में देखा जाएगा। जॉर्ज सोरस एक विवादित व्यक्ति हैँ। खुले समाज को प्रोत्साहित करने की उनकी गतिविधियों पर पहले भी कई हलकों से सवाल उठे हैँ। भारत के बारे में कही गई उनकी बातों पर भी सवाल उठाने की गुंजाइश हो सकती है। लेकिन यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि सोरस जैसे लोगों की बात दुनिया भर में सुनी जाती है। उसका निवेशकों पर भी असर होता है। इसलिए बेहतर रणनीति यह होगी कि ऐसे बयानों का तथ्यों के साथ खंडन किया जाए। उन बातों को लेकर बेवजह का भय बनाने से कुछ हासिल नहीं होगा।

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