पाकिस्तान की सियासी स्क्रीप्ट से इमरान खान का रोल आउट हो सकता है। उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) से इस्तीफों की झड़ी लग गई है। पार्टी के बड़े नेताओं में से एक और पूर्व सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने पार्टी छोड़ दी है। ट्विटर पर उन्होंने कहा कि वे राजनीति से ब्रेक ले रहे हैं। अब वे इमरान खान के साथ नहीं हैं। इमरान का साथ छोड़ने वाले फवाद दूसरे पूर्व फ़ेडरल मंत्री हैं। इसके पहले मंगलवार (23 मई) को पूर्व मानवाधिकार मंत्री शिरीन मज़ारी ने दो बार गिरफ्तार होने के बाद ‘स्वास्थ्य कारणों’ से राजनीति को अलविदा किया था।
मई की शुरुआत में इमरान खान की गिरफ़्तारी (जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बाद में गैरकानूनी करार दिया) के बाद देश में भड़की हिंसा का खामियाजा इमरान की पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। सेना ने कड़ी कार्यवाही करते हुए इमरान के हजारों समर्थकों को गिरफ्तार किया है। उनकी सरकार में मंत्री रहे कई नेताओं को सैनिक अदालतों की हिरासत में पहुंचा दिया गया है। उनके खिलाफ मुक़दमे चलाये जा रहे हैं। सेना के इस कहर से घबराकर पीटीआई के कई पूर्व सांसदों और मझौले स्तर के नेताओं ने या तो पार्टी छोड़ दी है या राजनीति से ही तौबा कर ली है।
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने बुधवार को रिपोर्टरों को बताया कि सरकार पीटीआई पर प्रतिबन्ध लगाने पर विचार कर रही है क्योंकि पार्टी ने “राज्य के मूल आधार पर चोट की है” और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
उधर इमरान सरकार पर लगातार बरस रहे हैं। थर्ड एम्पायर अर्थात जनता से अपील कर रहे हैं कि वह सेना और उसकी कठपुतली सरकार को मनमानी करने से रोके। हाल में अपने एक वीडियो भाषण, जिसे दसियों हज़ार लोगों ने देखा, में उन्होंने कैमरे के सामने एक दस्तावेज़ लहराते हुए कहा कि यह वोटरों के सर्वेक्षण का नतीजा है। उन्होंने कहा, “देख लीजिए, आज 70 प्रतिशत लोग हमारी पार्टी के साथ खड़े हैं।” यह साफ़ नहीं है कि यह सर्वेक्षण कितना सही है या ऐसा कोई सर्वेक्षण हुआ भी था या नहीं?लेकिन माना जा सकता है कि इमरान देश की जनता और विशेषकर युवाओं के दिलो-दिमाग पर छाए हुए हैं। देश के 12.5 करोड़, जो कुल रजिस्टर्ड वोटरों का 44.36 प्रतिशत हैं, इमरान के दीवाने हैं।
इन दिनो इमरान लाहौर में अपने घर से अपने वीडियो भाषण नियमित तौर पर जारी कर रहे हैं। इन भाषणों में वे आरोप लगाते हैं कि उन्हें सीखचों के पीछे डालने की कोशिश और उनकी पार्टी के खिलाफ कार्यवाही, दरअसल, देश की राजनीति में गैरवाजिब दखल देने की आदी सेना और शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व वाली सेना की कठपुतली मिलीजुली सरकार की सोची-समझी साजिश है। इस साजिश का उद्देश्य है पीटीआई को अगली सरकार बनाने से रोकना। सेना और शरीफ सरकार ने पलटवार करते हुए इमरान पर हिंसा में शामिल “30 से 40 आतंकियों” को लाहौर के अपने घर में पनाह देने का आरोप लगाया है।
सो पाकिस्तान में हालात एक तरफ कुआँ और दूसरी तरफ खाई वाले है। ऐसी अफवाह है कि अगर इमरान की पार्टी पीटीआई को प्रतिबंधित किया जाता है तो उनके अनुयायी और मुरीद गुस्से से पागल हो जाएंगे। समर्थक देश को हिंसा की आग में धकेल देंगे। परन्तु यह भी हो सकता है कि जिस तरह का कहर सरकार बरपा रही है, उसके चलते उनके समर्थक और पार्टी के सदस्य डर कर चुपचाप बैठ जाएँ।
जहाँ तक इमरान का सवाल है, वे हथियार डालने के मूड में कतई नहीं हैं। वे सत्ता में अपनी वापसी के लिए इतने आतुर हैं कि वे सेना के खिलाफ युद्ध के मैदान में उतरने में हिचकिचाएंगे नहीं। सेना के लिए अब पूरा मसला इज्ज़त का सवाल है। वह देश की भाग्यविधाता बनी रहना चाहती है। सेना हमेशा से जनता पर राज करती आई है और सरकारें हमेशा उसकी मुट्ठी में रही हैं। जाहिर है कि वह नहीं चाहती कि यह स्थिति बदले।
आर्थिक रूप से जर्जर हो चुके पकिस्तान में सब अपनी-अपनी उमीदों के पूरा होने की उम्मीद कर रहे हैं। सेना चाहती है कि लोग उससे डरें और उसका सम्मान करें। वही इमरान देश के मसीहा बनना चाह रहे हैं। जबकि मोटामोटी लोग यह चाहते हुए हो सकते है कि यह खूनी टकराव जल्दी से जल्दी सुलझे। आम लोग अरब स्प्रिंग (सन 2010 से 2012 तक अरब देशों में लोकशाही की चाहत में जनता का विद्रोह) के पाकिस्तानी संस्करण की उम्मीद कर रहे हैं ताकि वे भी जम्हूरियत में सांस ले सकें।कुलमिलाकर पड़ोसी देश का भविष्य अनिश्चित है। बड़ा प्रश्न यह है कि वहा जो कुछ चल रहा है उसके आखिर में क्या कहा जा सकेंगा कि अंत भला तो सब भला। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)