उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील गुप्ता ने कहा हैं की एक ओर हमें विकास की जरूरत हैं। तो दूसरी तरफ प्राकृतिक संसाधनों का संवर्धन भी जरूरी हैं।
गुप्ता ने यहां जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय की ओर से औद्योगिक क्षेत्रों में जल प्रबंधन में वर्तमान प्रवृत्ति और चुनौतियॉ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सेमीनार के अंतिम दिन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति पानी पर अपना अधिकार मानता हैं। और जिसकी जमीन उसका पानी, हर व्यक्ति अपने घरों में बोरिंग कराता जा रहा हैं। और धीरे-धीरे पानी के ग्राउंड लेवल भी कम होते जा रहे हैं। और इसके रिचार्ज के बारे में कोई नहीं सोच रहा हैं। आवश्यकता है इसे हमें हमारी आने वाली भावी पीढ़ी के लिये भी कुछ बचाना हैं। इसके लिए हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा की हम इस दुनिया में किरायेदार बन कर आये और मालिक बन बैठे। जल प्रकृति द्वारा दिया गया अमूल्य उपहार हैं। साथ ही इसके महत्व को हम नहीं समझ सके और विकास के नाम पर प्रकृति का निरंतर दोहन करते रहे। वन्य जीव शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
हमने हमारे निहित स्वार्थों के कारण प्राचीन कुंओं, बावड़ियों को बंद कर दिया हैं। और हमें पुनः हमारी प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यता को पुनर्स्थापित करने की जरूरत हैं। साथ ही हमारा जीवन ग्लेशियर पर निर्भर हैं। धीरे-धीरे यह पिघलने लगा हैं और इसका कारण ग्लोबल वॉर्मिंग हैं।
मुख्य अतिथि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील कुमार सतरावाला ने कहा कि आज आवश्यकता है जल, जंगल, जमीन की रक्षा करने की। और सतत् विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण भी जरूरी हैं। और हमारी प्राचीन सभ्यता नदियों के किनारे पर बसा करती थी जिसने तालाब का रूप ले लिया, उसके बाद कुंओं ने। वर्तमान में पानी नलों के द्वारा घरों तक पहुंच रहा हैं।
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