नई दिल्ली। चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी चुनाव आयोग को सौंपने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को फटकार लगाई है और कहा है कि वह 24 घंटे में सारी जानकारी दे। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले को सुना और देश के सबसे बड़े बैंक से कहा कि उसे कोई अतिरिक्त समय नहीं मिलेगा। वह मंगलवार तक सारी जानकारी चुनाव आयोग को सौंपे। चुनावी बॉन्ड की जानकारी सामने आने के बाद लोकसभा चुनाव से पहले देश को पता चलेगा कि बॉन्ड के जरिए किस व्यक्ति ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। electoral bonds case
यह भी पढ़ें : अरुण गोयल के इस्तीफे की क्या कहानी
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अतिरिक्त समय देने की स्टेट बैंक की याचिका को खारिज करते हुए पूछा कि पिछली सुनवाई यानी 15 फरवरी से अब तक 26 दिनों में बैंक ने क्या किया है? इससे पहले बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उसे जानकारी देने के लिए 30 जून तक का समय चाहिए। अदालत ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि वह अवमानना का मुकदमा कायम नहीं कर रही है लेकिन अगर बैंक ने समय रहते आदेश का पालन नहीं किया तो वह कानूनी कार्रवाई करेगी। सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को करीब 40 मिनट की सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा- स्टेट बैंक 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे। चुनाव आयोग सारी जानकारी को इकट्ठा कर 15 मार्च शाम पांच बजे तक इसे वेबसाइट पर सार्वजनिक करे।
यह भी पढ़ें : भाजपा और कांग्रेस गठबंधन का अंतर
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी। साथ ही स्टेट बैंक को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड की जानकारी छह मार्च तक चुनाव कमीशन को देने का निर्देश दिया था। लेकिन चार मार्च को स्टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था।
अदालत ने सोमवार को इस याचिका पर सुनवाई की और साथ ही एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की उस याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें छह मार्च तक जानकारी नहीं देने पर स्टैट बैंक के खिलाफ अवमानना का केस चलाने की मांग की गई थी।
यह भी पढ़ें : झारखंड में कांग्रेस ने गंवाई राज्यसभा सीट
सोमवार को कार्रवाई शुरू होते ही स्टेट बैंक की ओर कहा गया- हमारे सामने एक समस्या आ रही है, हम पूरी प्रक्रिया को पलटने की कोशिश कर रहे हैं। मानक संचालन प्रक्रिया यानी एसओपी बनाई गई थी कि हमारे कोर बैंकिंग सिस्टम में बॉन्ड खरीदने वाले का नाम ना हो। हमें कहा गया था कि इसे गुप्त रखना है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा- आपकी एप्लिकेशन देखिए।
आप कह रहे हैं कि डोनर की डिटेल संबंधित ब्रांच में सीलबंद लिफाफे में होती है। ऐसे सभी सील कवर डिपॉजिट मुंबई की मुख्य शाखा में भेज दिए जाते हैं और दूसरी तरफ 29 अधिकृत बैंकों से डोनेशन हासिल कर सकते हैं।
ओपेनहाइमर सचमुच सिकंदर!
इसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा- आप कह रहे हैं कि डोनेशन देने वाले और लेने वाले यानी पॉलिटिकल पार्टी, दोनों का ब्योरा मुंबई ब्रांच में भेजी जाती है। यानी दो तरह की जानकारियां हैं। आप कह रहे हैं कि इन सूचनाओं का मिलान करना वक्त लेने वाली प्रक्रिया है। हमारे आदेश में हमने सूचनाओं के मिलान की बात नहीं कही है। हमने सूचनाओं को जाहिर करने की बात कही है।
संविधान पीठ में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा- आप कहते हैं कि सारी जानकारी एक सीलबंद लिफाफे में होती है। आपको सिर्फ लिफाफा खोलना है और जानकारी दे देनी है। बेंच में जस्टिस बीआर गवाई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र शामिल थे।