चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक

चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक

नई दिल्ली। राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से लाई गई चुनावी बॉन्ड की योजना को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है और इसे खारिज कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि यह योजना संविधान की ओर से दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और साथ ही सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का भी इससे उल्लंघन होता है। अदालत ने चुनावी बॉन्ड बेचने वाले भारतीय स्टेट बैंक और चुनाव आयोग दोनों को इसके बारे में सारी जानकारी सार्वजनिक करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 13 मार्च को सबको पता चल जाएगा कि किस कारोबारी या उद्योगपति ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया।

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने छह साल पुरानी चुनावी बॉन्ड की योजना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- यह योजना असंवैधानिक है। बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह योजना सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन है। अदालत ने भारतीय स्टेट बैंक को छह मार्च तक चुनावी बॉन्ड की सारी जानकारी चुनाव आयोग को देने को कहा और चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर यह जानकारी सार्वजनिक करे कि अप्रैल 2019 के बाद से चुनावी बॉन्ड से कितना चंदा दिया गया है। उस दिन पता चलेगा कि किस पार्टी को किसने, कितना चंदा दिया। अदालत ने यह भी कहा कि अगर किसी दल के पास चुनावी बॉन्ड बचा है तो वह उसे वापस करे।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला एक राय से सुनाया। चीफ जस्टिस ने कहा- राजनीतिक प्रक्रिया में पार्टियां अहम यूनिट होती हैं। मतदाताओं को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है। गौरतलब है कि 2017 में इस योजना की घोषणा हुई थी और 2018 से इसे लागू किया गया था। अब तक इस योजना से सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को मिला है। एक आंकड़ें के मुताबिक पिछले छह साल में चुनावी बॉन्ड से भाजपा को 63 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का चंदा मिला है तो कांग्रेस को 11 सौ करोड़ का चुनावी चंदा मिला है।

गौरतलब है कि 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी और काले धन पर रोक लगेगी। लेकिन सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि काले धन पर रोक लगाने का यह एकमात्र रास्ता नहीं है। चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इससे लोगों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन होता है और इसमें देने के बदले कुछ लेने की गलत प्रक्रिया पनप सकती है। अदालत ने कहा- चुनावी चंदे में लेने वाला राजनीतिक दल और फंडिंग करने वाला यानी दो पक्ष शामिल होते हैं। ये राजनीतिक दल को सपोर्ट करने के लिए होता है या फिर इसके बदले कुछ पाने की चाहत हो सकती है।

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