मलयालम फिल्म उद्योग का सच ही सबकी सचाई

मलयालम फिल्म उद्योग का सच ही सबकी सचाई

केरल की राजनीति और समाज में इन दिनों उबाल आया हुआ है। मलयालम फिल्म उद्योग में महिला कलाकारों के यौन शोषण या कार्यस्थल पर होने वाले बरताव को लेकर आई हेमा कमेटी की रिपोर्ट से राज्य में भूचाल आया है। इस रिपोर्ट से सिर्फ फिल्म उद्योग में ही उथलपुथल नहीं मची है, बल्कि राज्य की राजनीति और सामाजिक व्यवस्था भी प्रभावित हुई है। हेमा रिपोर्ट से सबके चेहरे बेनकाब हो रहे हैं। महिला अधिकारों का चैम्पियन बनने वाली कम्युनिस्ट पार्टियों का भी असली चेहरा दिख रहा है तो कांग्रेस पार्टी भी बेनकाब हुई है। बड़े बड़े सुपरस्टार भी अपने कारनामों से या अपनी चुप्पी से एक्सपोज हो रहे हैं।

सीपीएम के विधायक और अभिनेता एम मुकेश के ऊपर एक अभिनेत्री के यौन शोषण का आरोप लगा है लेकिन पार्टी अपने विधायक के समर्थन में खड़ी है। सीपीआई के महासचिव डी राजा की पत्नी ऐनी राजा उस महिला कलाकार के समर्थन में खड़ी हुईं और मुकेश से इस्तीफा देने को कहा तो उन्हें चुप करा दिया गया और सीपीएम ने कहा कि मुकेश को इस्तीफा देने की जरुरत नहीं है। केरल में चल रहे अभियान से प्रभावित होकर कांग्रेस की महिला नेता सिमी रोजबेल जॉन ने पुरुष नेताओं द्वारा महिलाओं को आगे बढ़ाने के नाम पर उनका शोषण करने का खुलासा किया तो कांग्रेस ने उनको पार्टी से ही निकाल दिया।

हेमा रिपोर्ट आने के बाद मलयालम फिल्म कलाकारों की संस्था एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवीज आर्टिस्ट यानी एएमएमए के प्रमुख मोहनलाल और उनकी पूरी टीम ने इस्तीफा दे दिया है। इसे भारत का मी टू मोमेंट बताया जा रहा है। हॉलीवुड में मी टू मूवमेंट शुरू हुआ था, जब एक साथ कई अभिनेत्रियों ने एक बड़े निर्माता निर्देशक हार्वी विनस्टीन के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगाए थे। एक बार आरोपों का पिटारा खुला तो एक के बाद एक अनेक अभिनेत्रियों ने आगे आकर किस्से सुनाए और कई बड़े कलाकारों व निर्माता, निर्देशकों का करियर चौपट हो गया। उनका सार्वजनिक बहिष्कार किया गया। इसकी देखा देखी भारत में महिलाओं ने हिम्मत दिखाई। पत्रकारिता से लेकर फिल्म उद्योग तक में कई महिलाएं आगे आईं। उन्होंने नाम लेकर कई लोगों पर आरोप लगाए। लेकिन जैसा कि भारत में हर बार होता है, महिला मुक्ति का यह आंदोलन भी घिसटते घिसटते दम तोड़ गया।

जानी मानी पत्रकार प्रिया रमानी ने एमजे अकबर के ऊपर आरोप लगाए थे और उनके साथ कई और महिलाएं सामने आई थीं। जिस समय आरोप लगाए गए उस समय अकबर केंद्र सरकार में मंत्री थे। आज महिला सुरक्षा की कसमें खाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय अकबर को सरकार से हटाने की जरुरत नहीं समझी। इसी तरह हिंदी फिल्म उद्योग में तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर के ऊपर आरोप लगाए लेकिन क्या हुआ? उलटे तनुश्री दत्ता की ही फिल्म जगत से विदाई हो गई। कार्यस्थल पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली पीड़ित महिलाएं ही भारत में निशाने पर आ गईं।

जिन लोगों पर आरोप लगे, चाहे वह अन्नू कपूर या अन्नू मलिक हों, साजिद खान हों या विकास बहल सब मजे में काम करते रहे। जिस समय हिंदी फिल्म उद्योग यानी बॉलीवुड में मी टू मूवमेंट शुरू हुआ उस समय तमाम महानायक किस्म के लोग मुंह में दही जमा कर बैठ गए। न तो कलाकारों का कोई संगठन आगे आया और न निर्माता, निर्देशकों के समूह ने महिला कलाकारों की मदद की। भोजपुरी फिल्मों की एक खूब मशहूर अभिनेत्री ने वहां पावर स्टार के नाम से मशहूर एक कलाकार पर आरोप लगाया कि बिना शादी किए वे उनके साथ सोना चाहते थे और मना करने पर करियर खत्म करने की धमकी दी। लेकिन क्या हुआ? महिला कलाकार को ट्रोल किया गया और कथित पावर स्टार चुनाव लड़ने उतरे तो न सिर्फ भोजपुरी फिल्मों के लोग, बल्कि उनकी जाति के तमाम लोग नैतिकता और जिम्मेदारी ताक पर रख कर उनके प्रचार में पहुंचे।

असल में हेमा रिपोर्ट के जरिए मलयालम फिल्म उद्योग की जो सचाई सामने आई है वही हर फिल्म उद्योग की सचाई है। हिंदी से लेकर भोजपुरी और तेलुगू से लेकर तमिल फिल्म उद्योग तक में ऐसा ही हो रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम एक पुरुष प्रधान समाज में रह रहे हैं लेकिन पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के शोषण की सांस्थायिक अनुमति कैसे दी जा सकती है? सोचें, जब फिल्म उद्योग में, जहां महिला कलाकारों को जागरूक और आर्थिक रूप से सक्षम माना जाता है वहां शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठाई जा सकती है या आवाज उठाने के बाद कार्रवाई की गारंटी नहीं हो सकती है तो साधारण महिलाओं के लिए क्या कहा जा सकता है? हिंदी फिल्म उद्योग में भी 2018 में एक कमेटी बनी थी, जिसको कार्यस्थल पर महिला कलाकारों के यौन शोषण की जांच करनी थी। छह साल बाद भी इसकी रिपोर्ट नहीं आई है। तेलुगू फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री सामंथा रुथ प्रभु ने तेलंगाना सरकार से कहा है कि वह तेलुगू फिल्मों में महिला कलाकारों के यौन शोषण का पता लगाने के लिए बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करे। तमिल फिल्म उद्योग में भी इस तरह की मांग उठी है।

मलयालम फिल्म उद्योग की सड़ांध पर हेमा कमेटी की जो रिपोर्ट है वह बेहद विचलित करने वाली है। उससे देश के सबसे साक्षर राज्य के फिल्म उद्योग की ऐसी काली सचाई सामने आई है, जिसे सुन कर सिर शर्म से झुक जाता है। वहां अगर महिलाएं समझौता नहीं करें या निर्माता, निर्देशक और बड़े अभिनेता की बात नहीं मानें तो उनको काम नहीं मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला कलाकारों का यौन शोषण इतने सुनियोजित तरीके से होता है कि समझौता करने वाली महिलाओं को एक कोड दिया जाता है। उन्हें कोड बताने पर ही काम मिलेगा। अगर किसी महिला पास कोड नहीं है यानी उसने समझौता नहीं किया है तो उसको काम मिलना नामुमकिन की हद तक मुश्किल है।

बाकी फिल्म उद्योगों में भी इससे अलग स्थितियां नहीं हैं। भाजपा की सांसद और मशहूर अभिनेत्री कंगना रनौत मूवी माफिया की बात करती हैं। वे इस मामले को कुछ बढ़ा चढ़ा कर बताती हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि उनकी बातों में सचाई नहीं है। हर फिल्म उद्योग में कई स्तर पर भेदभाव है, शोषण है और कमजोर के ऊपर जुल्म है। आज सब फिल्म उद्योग के लोग कह रहे हैं कि उनको यहां कोई पावर ग्रुप नहीं है। लेकिन फिल्म जगत में पावर ग्रुप की मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस पावर ग्रुप के लोग यह कंट्रोल करते हैं किसे काम मिलेगा और किसे नहीं मिलेगा।

जाति, धर्म, लिंग और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव होता है। बाहरी और भीतरी का विवाद चलता रहता है। हत्याएं और आत्महत्याएं होती हैं। कन्नड़ फिल्मों के बड़े सितारे दर्शन अवैध संबंध के मामले में फंसे और अपने ही प्रशंसक की हत्या के मामले में गिरफ्तार हुए हैं। बॉलीवुड में जिया खान, दिशा सालियान या सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद के विवाद इस बात का सबूत हैं कि फिल्म जगत में सब कुछ ठीक नहीं है।

सोचें, फिल्मों में अभिनेता जुल्म के खिलाफ लड़ते दिखते हैं लेकिन वास्तविक जीवन में वे शोषण और जुल्म की व्यवस्था का या तो हिस्सा होते हैं या चुपचाप उसे देख कर उसकी अनदेखी करते हैं। दोनों ही स्थितियों में वे दोषी हैं। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि तमिल फिल्मों के सुपर सितारे और पूरे देश में लीजेंड बन चुके रजनीकांत से हेमा रिपोर्ट और मलयालम फिल्म उद्योग की गड़बड़ियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। बहरहाल, अब एक बार मलयालम फिल्म उद्योग से सफाई की शुरुआत हुई तो दूसरे फिल्म उद्योग के लोगों को आगे आना चाहिए और अभियान को आगे बढ़ाना चाहिए। जिन महिल कलाकारों ने पहले आरोप लगाए हैं उनकी जांच होनी चाहिए और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। उनका सामूहिक बहिष्कार होना चाहिए। फिल्म उद्योग के लोगों के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। वे समाज का आईना होते हैं। अगर वे खुद आईने में नहीं झांकेंगे तो समाज की सचाई क्या दिखाएंगे।

Published by अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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