वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नए संसद भवन में जो पहला बजट भाषण पढ़ा है वह नीतिगत दस्तावेज कम और खर्च का लेखा-जोखा ज्यादा है। वैसे अंतरिम बजट ऐसा ही होना चाहिए। पांच बजट पेश करने के बाद जाती हुई सरकार को नीतिगत घोषणाएं करने की बजाय सिर्फ हिसाब किताब रखना चाहिए और चुनाव के बाद तक के लिए जरूरी खर्च की अनुमति लेनी चाहिए। इस लिहाज से देखें तो निर्मला सीतारमण के भाषण को अंतरिम बजट का टेक्स्ट बुक भाषण कह सकते हैं।
उन्होंने खर्च का लेखा-जोखा पेश किया लेकिन चुनाव को ध्यान में रखते हुए ज्यादा जोर यह बताने पर दिया कि उनके पहले के पांच बजटों से क्या क्या हासिल हुआ है या 10 साल के नरेंद्र मोदी के शासन में देश में क्या क्या सुधार हुए हैं। उन्होंने 10 साल की उपलब्धियों के आंकड़े पेश किए। वैसे एक पुरानी कहावत है कि झूठ तीन तरह के होते हैं- झूठ, सफेद झूठ और आंकड़े।
बहरहाल, वित्त मंत्री ने बताया कि नरेंद्र मोदी के शासन में आयकर भरने वालों की संख्या में ढाई गुना की बढ़ोतरी हुई है और सरकार के प्रयासों से पिछले 10 साल में 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला गया है। उन्होंने बताया है कि मनमोहन सिंह के दस साल यानी 2004 से 2014 के बीच आए विदेशी निवेश के मुकाबले 2014 से 2024 के बीच दोगुना विदेशी निवेश आया है। कुछ और बड़े आंकड़े हैं जैसे कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के तहत 34 लाख करोड़ रुपए लोगों के खाते में डाले गए।
पीएम मुद्रा योजना के तहत 22.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज दिया गया। मुफ्त राशन से 80 करोड़ लोगों के खाने की चिंता खत्म हुई। करीब डेढ़ करोड़ युवाओं को कौशल विकास के तहत प्रशिक्षण दिया गया। 30 करोड़ कर्ज महिला उद्यमियों को बांटे गए। चार करोड़ किसानों को फसल बीमा का लाभ मिला तो 11 करोड़ से ज्यादा किसानों को सम्मान निधि का फायदा हुआ। इस तरह के आंकड़ों की लंबी सूची है, जिसे करीब एक घंटे के भाषण में वित्त मंत्री न पढ़ा। चुनाव से दो महीने पहले और क्या कहा जाता!
उपलब्धियां बताने के बाद कुछ वादे भी किए गए। वित्त मंत्री ने कहा कि जिस तरह से गरीबों के लिए आवास की योजना है वैसे ही आवास योजना मध्य वर्ग के लिए शुरू की जाएगी। उनके लिए दो करोड़ घर बनाए जाएंगे। आशा बहनों को भी आयुष्मान योजना का लाभ दिया जाएगा। तीन करोड़ लखपति दीदी बनाएंगे। 40 हजार सामान्य रेल कोच को वंदे भारत जैसे कोच में बदला जाएगा। लक्षद्वीप के विकास पर ज्यादा खर्च किया जाएगा। इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देंगे और 50 साल में एक लाख करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त कर्ज देंगे। नौ से 14 साल की लड़कियों के टीकाकरण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इसमें सरवाइकल कैंसर का टीका भी शामिल है। अलग अलग समूहों के लिए इस तरह के कई और वादे हैं।
उपलब्धियों और वादे के बाद कुछ जुमले भी वित्त मंत्री ने सुनाए। जैसे जीडीपी का मतलब ‘गवर्नेंस, डेवलपमेंट और परफॉरमेंस’ होता है या एफडीआई का मतलब ‘फर्स्ट डेवलप इंडिया’ होता है। कुछ सचाई वाली तस्वीरें भी रखीं। जैसे सरकार को हर तरह के टैक्स से कुल 30 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिलेगा, जबकि खर्च 44 लाख करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा का होगा। इसका मतलब है कि 14 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया जाएगा। ध्यान रहे केंद्र सरकार देश की जीडीपी के 57 फीसदी के बराबर कर्ज ले चुकी है। 2014 में देश पर जो कर्ज 55 लाख करोड़ रुपए था वह अब 160 लाख करोड़ रुपए का हो गया है। राज्यों का कर्ज जोड़ें तो कुल जीडीपी के 85फीसदी तक कर्ज हो गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को चिंता है कि भारत कहीं वेनेजुएला, यूनान या इटली वाली स्थिति को न प्राप्त हो।
बजट भाषण में वित्त मंत्री ने साफ कहा कि टैक्स स्लैब में कोई छूट नहीं दी जाएगी। यानी मध्य वर्ग को आयकर में कोई राहत नहीं मिली है, जिसकी चुनावी साल में उम्मीद की जा रही थी। जीएसटी को लेकर भी वित्त मंत्री ने कुछ नहीं कहा। पेट्रोल, डीजल को जीएसटी में लाने या उसमें सुधार की कोई बात अंतरिम बजट में नहीं कही गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के सस्ता होने की वजह से पेट्रोलियम उत्पादों के दाम कम होने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन उत्पाद शुल्क में कटौती की कोई बात नहीं हुई।
असल में सरकार सफलतापूर्वक यह झूठा नैरेटिव स्थापित करने में कामयाब हो गई है कि लोगों के टैक्स के पैसे से देश में विकास का काम होता है। राह चलता आदमी बताता है कि टैक्स के पैसे से सड़कें बनती हैं। यह अलग बात है कि वह उसी सड़क पर भारी भरकम टोल टैक्स चुका कर चलता है। उसके अलावा गाड़ी खरीदते समय रोड टैक्स देता है, पेट्रोल-डीजल पर 50 फीसदी तक शुल्क देता है और प्रति लीटर रोड इंफ्रास्ट्रक्चर का उपकर अलग से देता है।
हकीकत यह है कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत दुनिया में 143वें स्थान पर है और आयकर, जीएसटी, उत्पाद शुल्क, हाउस टैक्स, रोड टैक्स, टोल टैक्स सहित दर्जनों तरह के टैक्स को मिला कर दुनिया में समग्र औसत टैक्स भारतीयों का सबसे ज्यादा है। भारत सरकार का टैक्स राजस्व पिछले 10 साल में तीन सौ फीसदी बढ़ा है। अब जीएसटी से सरकार को कॉरपोरेट और आयकर से ज्यादा राजस्व मिल रहा है। और हां, वेल्थ टैक्स सरकार ने खत्म कर दिया है।
बहरहाल, वित्त मंत्री का बजट भाषण शुरू होने से ठीक पहले खबर आई कि सरकार ने कॉमर्शियल रसोई गैस के सिलेंडर की कीमत में 14 रुपए की बढ़ोतरी कर दी है। यह एक फैसला बजट को लेकर सरकार की सोच को बताने वाला है। सरकार ने दिखाया कि वह अगले चुनाव को लेकर इतने भरोसे में है कि अंतरिम बजट में कोई लोक लुभावन घोषणा करने की बजाय दाम बढ़ाने के सख्त फैसले कर रही है। उसने बताया कि अगला चुनाव जीतने के लिए एक टूल के तौर पर बजट का इस्तेमाल करने की जरुरत नहीं है। यह बात वित्त मंत्री ने अपने भाषण में भी कही। असल में सरकार मुफ्त अनाज योजना बढ़ाने सहित सारी लोक लुभावन घोषणाएं पहले ही कर चुकी है और दूसरे, सरकार को अयोध्या में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा और ज्ञानवापी के तहखाने में आधी रात को हुई पूजा-अर्चना से ज्यादा उम्मीदें हैं।
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