क्या अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं रही…?

क्या अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं रही…?

भोपाल। भारत के मौजूदा सत्तारूढ़ खेमों में इस बात को लेकर अच्छी खासी चर्चा है कि ऐसी क्या खास वजह पैदा हो गई। जिससे देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी और उसके कथित संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) के बीच अंदरूनी मनमुटाव की स्थिति पैदा हो गई और जिसके कारण भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को संघ की राष्ट्रीय समन्वयक बैठक में यह कहना पड़ कि- ‘‘भाजपा को संघ की अब कोई जरूरत नहीं है, अब भाजपा हर तरीके से अपने आपमें सक्षम और आत्मनिर्भर है।’’ भाजपाध्यक्ष के इस बयान की देश के राजनीतिक क्षेत्रों में अच्छी खासी चर्चा है और कथन को लेकर मौजूदा और भविष्य के कयासों पर अटकलें तेज है। भाजपाध्यक्ष के इस बयान से संघ स्वयं वाली विस्मित है तथा अब वह अपनी अगली रणनीति को लेकर सजग व सक्रिय होे गया है, संघ प्रमुख केरल के पलक्कड में सम्पन्न इस सम्मेलन के बाद काफी चिंतित और सक्रिय हो गए है, उन्होंने पिछले कुछ दिनों में अपने विश्वस्तों के साथ कई बार गंभीर मंत्रणाएं भी की है।

अब भाजपाध्यक्ष जगतप्रकाश नड्ड़ा के इस तल्खी भरे बयन के राजनीतिक क्षेत्रों में कई अर्थ निकाले जा रहे है, संघ इस बात को लेकर चिंतित है कि प्रधानमंत्री की मौन स्वीकृति के बिना नड्ड़ा जी ऐसा बयान दे नही सकते और मोदी जी की संघ के प्रति यह मुद्रा क्यों है? यह किसी के भी समझ में नही आ रहा है। भाजपाध्यक्ष ने यह बयान संघ के करीब दस दिन पहले केरल के पलक्कड़ शहर में हुए सम्मेलन में दिया था, बयान तिथि से अब तक के दस दिन के समय में भाजपाध्यक्ष के इस बयान की काफी राजनीतिक सर्जरी हो चुकी है और वह अभी भी जारी है, इस कारण भाजपा और संघ दोनों में ही खलबली मची हुई है।

अब ऐसे मौके पर राजनीतिक प्रेक्षकोें को मोदी का राजनीतिक इतिहास याद आ रहा है, जब मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए दंगों के बाद अटल जी का सार्वजनिक रूप से मोदी से की गई तल्खी भरी बातचीत और मोदी की दो टूक सफाई इसके साथ ही मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के इस समय हुए दिल्ली दौरों और अटल-अड़वानी की तत्कालीन राजनीतिक भूमिका व मोदी के प्रति बर्ताव भी इन दिनों राजनीतिक क्षेत्रों में समीक्षा का विषय बना हुआ है और आज प्रधानमंत्री की संघ के प्रति तल्खी को उसी संदर्भ में जांचा परखा जो निकलेगें वे सार्वजनिक हो पाएगें या नही? यह तो फिलहाल कहना मुश्किल है, किंतु यह सही है कि इन परिणामों की प्रतीक्षा सभी को है, संघ को भी और मोदी खेमें को भी।

हाँ, तो चर्चा का मुख्य विषय संघ की मौजूदा स्थिति, उसका भाजपा पर असर और दोनों की भावी रणनीति है, अब यहां मौजूदा स्थिति को देखकर यह कहना भी गलत नही होगा कि मोदी और उनकी टोली को संघ की कोई चिंता नही है और यही संघ की चिंता का भी मुख्य कारण है और भाजपाध्यक्ष के स्पष्ट बयान ने तो स्थिति को और भी साफ कर दिया है, अब यदि संघ को अपने आपका अस्तित्व कायम रखना है तो उसे बिना किसी से सहयोग की अपेक्षा रखे खुद को ही इस दिशा में प्रयास करना पड़ेगें और अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि संघ को मोदी से किसी भी प्रकार के सहयोग या आदर भाव की अपेक्षा भी करना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि सत्ता के गुरूर में डूबी भाजपा व उसके नेता कई बार संघ को इसी तरह के संकेत दे चुके है, इसलिए अपनी अस्मिता कायम रखने के लिए संघ को ही प्रयास जारी रखना होगें, उसकी मद्द के लिए कोई साथ नही आएगा। अब इस सामयिक चेतावनी को संघ समय रहते समझ ले तो ठीक है, वर्ना मोदी का तो अभी करीब-करीब पूरा ही तीसरा कार्यकाल बाकी है।

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