मैडॉक फिल्म्स की कॉमेडी-हॉरर फिल्मों की खास बात यह है कि इसमें भूत-प्रेत-चुड़ैल इत्यादि को लेकर पश्चिम की कोई नकल नहीं की जा रही, बल्कि अपने ही देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रचलित दंतकथाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है।… लोगों को ‘स्त्री-2’ में मज़ा आ रहा है। किसी से पूछिए कि उसे यह फिल्म हॉरर की वजह से पसंद आई या कॉमेडी की वजह से, तो वह बता नहीं पाएगा, क्योंकि हॉरर और कॉमेडी दोनों इस तरह गुंथे हुए हैं। यह फिल्म बताती है कि डर में भी कितनी कशिश है, और उसमें भी कितनी कॉमेडी संभव है। अब ज़रा ‘स्त्री-2’ से हट कर हिंदी सिनेमा पर निगाह डालिए। सच्चाई यह है कि ज्यादातर हिंदी फिल्में पिटे जा रही हैं। ज्यादातर हिंदी फिल्में पिटे जा रही हैं.. अब हमें यह गिनती बंद कर देनी चाहिए कि दो-तीन साल में अक्षय कुमार की कितनी फिल्में पिट चुकी हैं।
परदे से उलझती ज़िंदगी
फ़िल्मों के बारे में कोई नहीं कह सकता कि कौन सी फिल्म चलेगी और कौन सी नहीं चलेगी। इसलिए किसी बड़े स्टार या उसकी फिल्म से उम्मीद बांधना उतना ही फ़िज़ूल है जितना किसी हल्के स्टार या निर्माता की फ़िल्म को व्यर्थ समझना या हिकारत से देखना। ‘स्त्री-2’ की सफलता ने इस बात को नए सिरे से स्थापित किया है और कई लकीरें खींची हैं।
एक तो इससे हिंदी फिल्मों में इस साल किसी बड़ी सफलता का जो सूखा चल रहा था वह टूटा है। दूसरे, इस फिल्म के कलाकारों की पहचान और लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। राजकुमार राव अचानक कमाऊ अभिनेता लगने लगे हैं जबकि श्रद्धा कपूर इन्स्टाग्राम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आगे निकल गई हैं। अपने कद्रदानों की तरह इन दोनों ने खुद भी कभी इस स्थिति की कल्पना नहीं की होगी। तीसरी बात यह कि इस फ़िल्म के बाद एमएसयू यानी मैडॉक सुपरनैचुरल यूनिवर्स की फिल्मों को सम्मान से देखा जाने लगेगा।
दिनेश विजन के एमएसयू की फिल्मों से हमारे बहुत से गंभीर समीक्षकों को चाहे बॉलीवुड अपने कथ्य, उद्देश्य और स्तर के मामले में और भी गर्त में जाता लगे, लेकिन अब बॉक्स आफ़िस पर इन फिल्मों की पूछ बढ़ जाएगी। यह इसलिए होगा कि अगर यशराज फिल्म्स के स्पाई यूनिवर्स की फ़िल्मों ने अब तक डेढ़ हजार करोड़ की लागत पर तीन हजार करोड़ की कमाई की है तो दिनेश विजन का एमएसयू केवल 210 करोड़ रुपए लगा कर एक हजार करोड़ से ऊपर कमाने जा रहा है।
मैडॉक सुपरनैचुरल यूनिवर्स में अब तक पांच फिल्में बनी हैं – ‘स्त्री’, ‘रूही’, ‘मुंजया’, ‘भेड़िया’ और ‘स्त्री-2’। इनमें कभी सह-निर्माता, कभी निर्देशक और कभी लेखक बदलते रहे हैं, फिर भी मैडॉक फिल्म्स के मालिक दिनेश विजन यह यूनिवर्स गढ़ कर माने। कॉमेडी-हॉरर फिल्मों के इस यूनिवर्स की खास बात यह है कि इसमें भूत-प्रेत-चुड़ैल इत्यादि को लेकर पश्चिम की कोई नकल नहीं की जा रही, बल्कि अपने ही देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रचलित दंतकथाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है। मसलन, इस यूनिवर्स की पहली फ़िल्म ‘स्त्री’ की चुड़ैल जो रात में दरवाजों पर दस्तक देती है वह कर्नाटक के एक हिस्से में प्रचलित ‘नाले बा’ की किंवदंती पर आधारित थी।
दूसरी फ़िल्म ‘रूही’ में भारत-पाकिस्तान सीमा के दोनों तरफ़ के पहाड़ों पर प्रचलित ‘पिछलपैरी’ की किंवदंती को ‘मुड़ियापैरी’ भूत के तौर पर पेश किया गया, जो हनीमून पर दूल्हों पर हमला करके दुल्हनों का अपहरण कर लेता है। फिर ‘भेड़िया’ में अरुणाचल प्रदेश की एक लोककथा का सहारा लिया गया जिसमें ‘यापुम’ यानी एक भेड़िया अपना रूप और आकार बदल लेता है। साथ ही वह जंगल को बचाने के लिए किसी की हत्या भी कर सकता है। उसके बाद ‘मुंजया’ बनी जो कोंकण क्षेत्र में प्रचलित एक बुरी आत्मा की किंवदंती पर आधिरत थी जो पीपल के पेड़ों और खाली पड़े कुओं में वास करती है। और अब जो ‘स्त्री-2’ आई है उसके नाम में ही जुड़ा है- सरकटे का आतंक। चंदेरी नाम का एक कस्बा है, जहां ऐसी एक छाया का आतंक है जिसका सर नहीं है और यह सरकटा महिलाओं को उठा ले जाता है।
जैसे हम यशराज के स्पाई यूनिवर्स में एक फिल्म के पात्र को दूसरी फिल्म में भी थोड़ी देर के लिए प्रकट होते देखते हैं, वैसा ही इस मैडॉक सुपरनैचुरल यूनिवर्स में भी है। यहां भी कुछ पात्र अपनी मुख्य फिल्म के अलावा दूसरी फिल्मों में भी आते-जाते रहते हैं। लेकिन चुड़ैल अथवा भूत हर बार नया दिखाया जा रहा है। हर फ़िल्म में एक नई दंतकथा के साथ। और अपने देश में ऐसी भूतिया कथाएं अनगिनत हैं। मतलब यह कि दिनेश विजन के लिए बहुत काम बाकी है। कहने को वे ‘हिंदी मीडियम’, ‘लुका-छिपी’, ‘लव आज कल’ और ‘कॉकटेल’ जैसी फिल्मों के भी निर्माता रहे हैं, लेकिन कॉमेडी-हॉरर यूनिवर्स ने उन्हें जो लाभ दिया है वह दूसरी फिल्मों से नहीं मिला।
और इस बार जैसा चमत्कार तो इस यूनिवर्स में भी पहली बार हुआ है। अक्षय कुमार की ‘खेल खेल में’ और जॉन अब्राहम की ‘वेदा’ के मुकाबले ‘स्त्री-2’ की एडवांस बुकिंग कई गुना ज्यादा थी। यानी दर्शक इसकी रिलीज़ के पहले से ही इसे लेकर उत्साहित थे, और बाद में तो इसके आंकड़े सबके सामने हैं ही। लोगों को ‘स्त्री-2’ में मज़ा आ रहा है। किसी से पूछिए कि उसे यह फिल्म हॉरर की वजह से पसंद आई या कॉमेडी की वजह से, तो वह बता नहीं पाएगा, क्योंकि हॉरर और कॉमेडी दोनों इस तरह गुंथे हुए हैं कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। असल में यह फिल्म बताती है कि डर में भी कितनी कशिश है, और उसमें भी कितनी कॉमेडी संभव है।
अब ज़रा ‘स्त्री-2’ से हट कर हिंदी सिनेमा पर निगाह डालिए। सच्चाई यह है कि ज्यादातर हिंदी फिल्में पिटे जा रही हैं और पिछले कई महीनों से यह मुद्दा लगातार गंभीर होता जा रहा है। पिछले दिनों नीरज पांडे के निर्देशन में अजय देवगन व तब्बू की ‘औरों में कहां दम था’ और जाह्नवी कपूर की मुख्य भूमिका और सुधांशु सारिया के निर्देशन वाली टाइम्स समूह के विनीत जैन के जंगली पिक्चर्स की ‘उलझ’ ने इस निराशा को और बढ़ाया। नीरज पांडे अपनी लीक से हट कर पहली बार प्रेम कहानी लेकर आए थे जिसे दर्शकों का प्रेम नहीं मिला जबकि जंगली पिक्चर्स ने अपनी पिछली फिल्म ‘राज़ी’ की तरह फिर थ्रिलर बनाई थी जिसमें लोगों को कोई थ्रिल महसूस नहीं हुआ। इससे पहले अक्षय कुमार की ‘सिरफिरा’ पिटी थी। अब ‘स्त्री-2’ के साथ रिलीज़ हुई उनकी ‘खेल खेल में’ और भी बुरी तरह पिट गई है। लगता है कि अब हमें यह गिनती बंद कर देनी चाहिए कि दो-तीन साल में अक्षय कुमार की कितनी फिल्में पिट चुकी हैं। एक दिलचस्प बात यह ज़रूर है कि अक्षय कुमार की मुख्य भूमिका वाली फिल्में नहीं चल रहीं, लेकिन वे फ़िल्में चल जाती हैं जिनमें उनका कैमियो रहता है। जैसे ‘ओएमजी-2’ और ‘स्त्री-2’। तो क्या अब अक्षय को केवल कैमियो करने चाहिए? लेकिन किसी स्टार को ऐसी सलाह कैसे दी जा सकती है?
मगर हालात वास्तव में गड़बड़ हैं। पिछले साल यानी 2023 में ‘पठान’, ‘जवान’, ‘गदर-2’ और ‘एनीमल’ की बदौलत हिंदी सिनेमा ने पांच हज़ार करोड़ से ऊपर की कमाई की थी, लेकिन 2024 में कुल कमाई का आंकड़ा ढाई हज़ार करोड़ तक पहुंचने को तरस रहा है जबकि हम साल के आठवें महीने को पार कर रहे हैं। ‘स्त्री-2’ से पहले इस साल की सबसे ज्यादा सफल फ़िल्म सिद्धार्थ आनंद की ‘फाइटर’ थी। रितिक रोशन और दीपिका पादुकोण को लेकर बनाई गई इस फिल्म का बजट 250 करोड़ था जबकि बॉक्स ऑफ़िस से इसने 338 करोड़ कमाए। उसके बाद सबसे ज्यादा 134 करोड़ की कमाई ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’ ने की जो 75 करोड़ में बनी थी और जिसमें शाहिद कपूर एक रोबोट लड़की कृति सैनन से प्रेम करते हैं। अजय देवगन और आर माधवन की 65 करोड़ में बनी ‘शैतान’ ने 211 करोड़ कमाए। कार्तिक आर्यन की कबीर खान निर्देशित ‘चंदू चैंपियन’ भी लाभ में रही और उसने 96 करोड़ कमाए। इसी तरह विधु विनोद चोपड़ा ने विक्रांत मैसी को लेकर 20 करोड़ में ‘बारहवीं फेल’ बनाई थी जो धीरे-धीरे ‘100 करोड़’ तक पहुंच गई। लागत से ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में ‘क्र्यू’, ‘दो और दो प्यार’ और ‘मडगांव एक्सप्रेस’ भी शामिल हैं। मगर इस साल जो हिंदी फिल्में बुरी तरह पिट गई हैं उनकी संख्या इन सफल फिल्मों से बहुत ज़्यादा है।
हैरानी की बात है कि हिंदी सिनेमा के विपरीत इस साल मलयाली सिनेमा की बॉक्स ऑफ़िस कमाई पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ने और नए रिकॉर्ड बनाने की दिशा में बढ़ रही है। मानों, मलयाली सिनेमा हिंदी सिनेमा से होड़ ले रहा है। ‘मंजुमेल ब्वायज़’, ‘आदुजीविथम’ (द गोट लाइफ़) और ‘आवेशम’ की बदौलत मलयाली फिल्मों की कमाई इस साल अप्रैल में ही एक हजार करोड़ को पार कर चुकी थी। इसे इस तरह समझिये कि साल के शुरूआती छह महीनों में पूरे देश के सिनेमा को बॉक्स ऑफ़िस से जो कमाई हुई उसमें मलयाली सिनेमा का हिस्सा बीस प्रतिशत से कुछ ज्यादा था। वैसे भी अपनी कहानियों में, फ़िल्मांकन के मानकों में और कमाई में मलयाली सिनेमा ने पिछले कुछ समय में जो छलांग लगाई है, उसे हर तरफ़ महसूस किया जा रहा है। कहने को इन छह महीनों में देश की कुल कमाई में हिंदी सिनेमा की हिस्सेदारी 38 फ़ीसदी थी, लेकिन ध्यान रहे कि हिंदी में मलयालम से कहीं ज्यादा फ़िल्में बनती हैं और हिंदी का दर्शक आधार इतना विराट है कि मलयाली सिनेमा से ब़ॉलीवुड का कोई मुकाबला नहीं। बल्कि उसे देखते हुए तो देश की कुल बॉक्स ऑफ़िस कमाई में हिंदी फिल्मों की हिस्सेदारी पचास फीसदी से ऊपर होनी चाहिए। ऐसा कई बार रहा भी है। पिछले साल भी था। और इसीलिए, ‘स्त्री-2’ की जबरदस्त कामयाबी के बावजूद, बॉलीवुड आशंकित है।