कज्जली तृतीया, गौरी तृतीया, हरितालिका तृतीया, सौभाग्य सुंदरी आदि अनेक व्रत और पर्वों का आयोजन किसी न किसी माह की तृतीया तिथि के दिन ही संपन्न होता है। चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर तृतीया, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन अक्षय तृतीया, ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया के दिन रम्भा तृतीया, श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज उत्सव, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को वाराह जयंती मनाए जाने की परंपरा है।
30 नवंबर- सौभाग्य सुंदरी व्रत
भारतीय पंचांग के अनुसार महीने में दो बार, पूर्णिमा और अमावस्या के बाद तीसरे दिन आने वाली तीसरी तिथि को तृतीया तिथि कहते हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली तृतीया को कृष्ण पक्ष की तृतीया और अमावस्या से आगे आने वाली तृतीया को शुक्ल पक्ष की तृतीया कहते हैं। पौराणिक मान्यताओं में तृतीया तिथि माता गौरी अर्थात देवी पार्वती की जन्म तिथि मानी जाती है। तृतीया तिथि की स्वामिनी माता गौरी हैं। तृतीया तिथि कार्यों में विजय प्रदान करने वाली होने के कारण इस तिथि को जया तिथि के अन्तर्गत रखा गया है। किसी भी कार्य में विजय प्राप्त करने के लिए इस तिथि का चयन अतिशुभ और पूर्णतः अनुकूल माना जाता है। इस तिथि में सैन्य, शक्ति संग्रह, न्यायालयीन कार्यों के निष्पादन, शस्त्र क्रय, वाहन क्रय आदि कार्य करना शुभ माना जाता है। दोनों ही पक्षों की तृतीया तिथि को भगवान शिव के क्रीड़ारत रहने के कारण तृतीया तिथि में भगवान शिव का पूजन नहीं करने की मान्यता है। इसीलिए तृतीया तिथि को शिवपत्नी माता गौरी की पूजा का विधान है। यही कारण है कि माता गौरी अथवा भगवान शिव और उनकी अर्द्धांगिनी पार्वती की संयुक्त पूजन से संबंधित अनेक व्रत, पर्व व त्योहार तृतीया तिथि को मनाई जाती है।
कज्जली तृतीया, गौरी तृतीया, हरितालिका तृतीया, सौभाग्य सुंदरी आदि अनेक व्रत और पर्वों का आयोजन किसी न किसी माह की तृतीया तिथि के दिन ही संपन्न होता है। चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर तृतीया, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन अक्षय तृतीया, ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया के दिन रम्भा तृतीया, श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज उत्सव, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को वाराह जयंती मनाए जाने की परंपरा है। इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए भी माता गौरी की पूजा करना कल्याणकारी माना गया है। मान्यता है कि मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को देवी पार्वती ने अपनी कठिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त किया था। तत्पश्चात गणेश और कार्तिकेय नामक दो पुत्रों की माता बनी। उसी समय से माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए मार्गशीर्ष अर्थात अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को सौभाग्य सुंदरी व्रत की परंपरा शुरू हुई।
सौभाग्य सुंदरी नामक यह व्रत मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को अखंड सौभाग्य की सौंदर्य की कामना से विशेषकर महिलाओं के द्वारा किया जाता है। सनातन धर्म में मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया को मनाई जाने वाली सौभाग्य सुंदरी व्रत का महिलाओं के लिए बहुत ही खास महत्व है। मान्यता है कि यह महिलाओं को पुण्य फल प्रदान करता है और जीवन में आने वाले संकटों से भी बचाता है। इस वर्ष 2023 में मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 30 नवम्बर बृहस्पतिवार के दिन पड़ने के कारण इस दिन सौभाग्य सुंदरी व्रत मनाई जाएगी। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना से भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्र गणेश व कार्तिकेय का पूजन करती हैं। दांपत्य जीवन में प्रसन्नता और संतान की लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलने की मान्यता होने के कारण इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर विधि-विधान से भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करती हैं।
सौभाग्य सुंदरी व्रत के दिन ब्रह्म बेला में जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर हाथ में जल ले व्रत का संकल्प लेकर और मंदिर की साफ-सफाई करना चाहिए। तत्पश्चात एक चौकी पर लाल अथवा पीले रंग का वस्त्र बिछ़ाकर उस पर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। फिर माता पार्वती को सिंदूर का तिलक लगाना और भगवान शिव व गणेश को हल्दी अथवा चंदन का तिलक करना चाहिए। एक जल से भरा कलश स्थापित कर धूप -दीप जलाकर पूजा आरम्भ करना चाहिए। सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करना चाहिए। उनको जल से छींटे लगा फिर रोली से तिलक कर अक्षत लगाना चाहिए। मौली मोली चढ़ा चंदन व सिंदूर लगाना चाहिए। फिर फूलमाला और फल अर्पित करना चाहिए। गणेश को भोग के साथ सूखे मेवे, पान, सुपारी, लौंग, इलायची और दक्षिणा भी चढ़ाना शुभ माना गया है। फिर नवग्रह की पूजा करना चाहिए। भगवान कार्तिकेय की पूजा करना चाहिए। तत्पश्चात देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करना चाहिए।
माता पार्वती की पूजा के लिए देवी पार्वती की प्रतिमा को दूध, दही और जल स्नान कराकर उन्हें वस्त्र पहनाकर रोली चावल से तिलक करना चाहिए, मौली चढ़ाना चाहिए। उन्हें पुष्प अर्पित कर एक पान में दो सुपारी, दो लौंग, दो हरी इलाचयी, एक बताशा और एक रुपए रख चढ़ाकर माता पार्वती को सोलह श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए, घी का दीपक जलाना चाहिए और फिर मीठे का भोग लगा व्रत कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए। व्रत कथा पठन अथवा श्रवण के बाद चालीसा का पाठ करना शुभ माना गया है। माता पार्वती को अर्पित किया गया सोलह श्रृंगार बाद में व्रती महिलायें स्वयंके उपयोग में ला सकती है। देवी पार्वती की पूजा करते समय माता पार्वती से हाथ जोड़कर माता से दुखों और पापों का नाश करने, आरोग्य, सौभाग्य, ऋद्धि -सिद्धि और उत्तम संतान प्रदान करने की प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का जाप करना चाहिए –
ॐ उमाये नम:।
देवी देइ उमे गौरी त्राहि मांग करुणानिधे माम् अपरार्धा शानतव्य भक्ति मुक्ति प्रदा भव।।
तत्पश्चात भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करना चाहिए। बेलपत्र, आंकड़े और धतुरा अर्पित करना चाहिए। रोली-चावल से तिलक करना चाहिए। फल- फूल अर्पित कर भोग लगाना चाहिए, सूखे मेवे, और दक्षिणा अर्पित करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करते समय ॐ नम: शिवाय- इस मंत्र का जाप करना चाहिए। माता पार्वती के तीज माता से संबंधित कथा का पाठ व श्रवण करना चाहिए। फिर उसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव की आरती करना चाहिए। पूजा के बाद अपने परिवार की खुशहाली की कामना करना चाहिए।
तीज और करवा चौथ की भांति महत्वपूर्ण सौभाग्य सुंदरी व्रत जीवन में सकारात्मकता और सौभाग्य लाने के लिए मनाया जाता है। महिलाएं पति और संतान सुख के लिए पूजा-अनुष्ठान कार्य करती हैं। विवाह दोष से मुक्त होने और विवाह में देरी को दूर करने के लिए अविवाहित कन्याएं भी इस व्रत को करती हैं। मांगलिक दोष और कुंडली में प्रतिकूल ग्रह दोषों को समाप्त करने के लिए भी यह व्रत किया जाता है। सौभाग्य सुंदरी व्रत महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य का वरदान होता है।
ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं के घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और अखंड सौभाग्य बना रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सौभाग्य सुंदरी व्रत करने से वैवाहिक जीवन का दोष भी दूर होता है और पति-पत्नी में प्रेम बना रहता है। यदि किसी लड़की के विवाह में देरी हो रही हो तो वो परेशानी भी ये व्रत करने से दूर हो सकती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सौभाग्य सुंदरी व्रत करने से पति और संतान की उम्र बढ़ती है और उनके जीवन में खुशियां बनी रहती हैं। जिन महिलाओं को वैवाहिक जीवन में कष्टों का सामना करना पड़ रहा है और जिन अविवाहित लड़कियों के विवाह में देरी हो रही हो उन्हें ये व्रत अवश्य करना चाहिए।
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