अमेरिका की जिस टीम ने पाकिस्तान को हराया उसमें छह भारत के और दो पाक के खिलाड़ी एच-1बी वीज़ा पर वहां रह रहे हैं। अमेरिका से कुछ घंटो की ही हवाई दूरी पर वेस्ट इंडीज़ के द्वीपों में अंतिम आठ देश विश्व कप विजेता होने के लिए खेलेंगे। खेल के इस प्रारूप की लोकप्रियता ने क्रिकेट के प्रचार-प्रसार की संभावनाओं का आकाश खोल दिया है।
बीसमबीस विश्व कप 2024
आखिर न्यूयॉर्क के नासाऊ काउंटी मैदान पर भारत-पाकिस्तान के बीच बीसमबीस विश्व कप में क्रिकेट का मैच ही हुआ। असल में भी मैच ही होना था। एक को ही जीतना था सो भारत जीत भी गया। चिर प्रतिद्वंदी के बीच मैच कांटे का होना था सो भी हुआ। क्रिकेट खेलने वाले पारंपरिक देशों से अलग, यह बीसमबीस विश्व कप अमेरिका और उसके आस-पास के छोटे-छोटे वेस्ट इंडीज़ द्वीपों में खेला जा रहा है। क्रिकेट की लोकप्रियता से खेल के बाज़ार को भुनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट संघ, खेल के पारंपरिक देशों से अलग दूसरे देशों में ले जाने में लगा है। मंशा जो भी रहे, खेल खेल में ही सही क्रिकेट का विकास होना तो तय है।
इक्कीसवीं शताब्दी की शुरुआत में क्रिकेट के पांच दिवसीय टेस्ट मैच प्रारूप को सहेजने, बचाने की कवायद चल रही थी। बदलते समय में पांच दिन के टेस्ट मैच को समय-खर्च व धन-बर्बादी माना जा रहा था। टेस्ट क्रिकेट में फेरबदल करने की बातें उठ रही थीं। कम समय में कैसे भरपूर मनोरंजन दिया जाए? कैसे बाजार में क्रिकेट के प्रति उम्मीदें जगाई जाएं? बीसमबीस या इससे जुड़ी कम ओवर की क्रिकेट इंग्लैंड की गर्मियों में पिछली शताब्दी के आखिर में खेली जाने लगी थी। इंग्लैंड की गर्मी में दिन क्योंकि खास लंबे हो जाते हैं इसलिए पेशे-काम के बाद शाम को कम-समय की क्रिकेट लोकप्रिय होने लगी थी। सन् नब्बे के आखिर में अपन ने भी बीसमबीस खेलने का उत्साह और आनंद वहीं इंग्लैंड में देख-समझ लिया था।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट संघ ने लोगों का उत्साह देखते हुए, और मनोरंजन के बाजार को ध्यान रखते हुए विश्व स्तर की बीसमबीस प्रतिस्पर्धा कराने की योजना का खाका बनाया। पहला बीसमबीस विश्व कप 2007 में दक्षिण अफ्रीका में खेला गया। दुनिया को हैरान करते हुए भारत बीसमबीस का पहला विश्व विजेता बन गया। विश्व कप में जीत से भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने अपने खेल के जुनून से विश्व क्रिकेट की आर्थिकी ही बदल दी। फिर आइपीएल दुनिया की सबसे चर्चित और लोकप्रिय लीग हो गयी। अब हर दो साल में बीसमबीस और दो साल में ही विश्व टेस्ट मैच स्पर्धा होने लगी है। एकदिवसीय विश्व कप हर चार साल में ही कराया जा रहा है। यानी बीसमबीस की लोकप्रियता ने भी टेस्ट क्रिकेट में वही जोश, उत्साह और रोमांच भर दिया जो सत्तर के दशक में एकदिवसीय क्रिकेट ने भरा था।
वेस्टइंडीज में होने वाले विश्व कप को इस बार ज्यादा देशों में ले जाकर अमेरिका में भी मैच कराने का सोचा गया। अमेरिका में रह रहे प्रवासी उपमहाद्वीप के क्रिकेट प्रेम को जगाने भुनाने की कोशिश की गयी। विश्व कप के शुरूआती मैच अमेरिका में खेले गए। पिछले कुछ सालों से इसकी तैयारी और कोशिश भी होने लगी थी। कई खिलाड़ी अमेरिका से खेलने के लिए वहां जुटने भी लगे थे। अमेरिका की जिस टीम ने पाकिस्तान को हराया उसमें छह भारत के और दो पाक के खिलाड़ी एच-1बी वीज़ा पर वहां रह रहे हैं। अमेरिका से कुछ घंटो की ही हवाई दूरी पर वेस्ट इंडीज़ के द्वीपों में अंतिम आठ देश विश्व कप विजेता होने के लिए खेलेंगे। खेल के इस प्रारूप की लोकप्रियता ने क्रिकेट के प्रचार-प्रसार की संभावनाओं का आकाश खोल दिया है।
अमेरिका में बीसमबीस विश्व कप मैच कराने के लिए कुछ जरूरी साजो-सामान जुटाने थे। जैसे सबसे जरूरी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने लायक पिच, दर्शकों के बैठकर मज़ा लेने की सुविधाएं और दुनिया भर में टीवी पर मैच दिखाए जाने की समय-सारणी। तो ऑस्ट्रेलिया से विशेषज्ञ के कहने पर कच्चा माल मंगाया गया। जिसे मौसम को ध्यान में रखते हुए फ्लोरिडा में जुटाया-जमाया गया। वहीं क्रिकेट की दस “ड्रॉप-इन” पिच कुछ ही महीनों में तैयार की गयी। वहीं से न्यूयॉर्क और अन्य मैदानों में भेजी गयी। जबकि ऐसा पक्के तौर पर माना जाता है की क्रिकेट की पिच पूरे वर्ष की बारिश, धूप और ठंड के बाद ही जमती है, खेलने लायक होती है। इसलिए अमेरिका में हुए सभी मैच में जो मज़ा किरकिरा हुआ उसका कारण बिना मिट्टी-घास जमने का समय दिए, ड्रॉप की गयी पिच रहीं। जो बीसमबीस खेल के चौके-छक्कों के लिए बिलकुल अनुकूल नहीं थीं।
तेजी में दर्शकों के बैठने की सुविधाएं तो अमेरिका में बनाना मुश्किल नहीं होने वाला था। लेकिन पिच के अलावा मैदान की घास को भी जमने में समय लगना ही था इसलिए आउट-फील्ड धीमी और कुछ जगह उबड़-खाबड़ भी रही। मगर अमेरिकियों की भी कमर तोड़ने वाली तो विश्व कप मैच की टिकटें और गाड़ियों की पार्किंग थी। इन मैचों को देखने जाने वाले तो प्रवासी भारतीय या उपमहाद्वीप के लोग थे। बीसमबीस विश्व कप के नाम पर उन्हीं क्रिकेट प्रेमियों की जेब में छेद किया गया। लेकिन सिर्फ करने की कोशिश से ही करने का अनुभव आता है। इसलिए खुशी आयोजन की सफलता-असफलता से परे और बड़ी है। महान खेल क्रिकेट का दुनिया के सबसे धनी और बड़े लोकतंत्र में पैर पसारना ही शुभ शुरुआत है।
घर बैठे, और खासकर बीसमबीस क्रिकेट का आनंद टेलीविज़न ने ही बढ़ाया-फैलाया है। अब मुद्दा मैच के खेले जाने और खेलने वाले देशों में दिखाए जाने का था। यानी मैच के टेलीविजन प्रसारण के समय का था। उपमहाद्वीप में शाम को दिखाया जाने वाले मैच को अमेरिका में सुबह कराना पड़ा। इस असुविधा से अमेरिकियों को गुजरना ही था। अगर मैच में स्टेडियम खचा-खच न भरे तो टीवी पर देखने वाले दर्शक इसे आयोजन के हिसाब से असफल मान सकते हैं। इसलिए आयोजन में जो भी कमी-पेशी रही हो मगर महान खेल क्रिकेट की ही महानता है कि रोमांच कम ही नहीं होता।
अपन सभी जानते हैं। अमेरिका ही वह देश है जहां समय को पैसे से तौला जाता है। और भोग-विलास के लिए खूब पैसा कमाना ही अमेरिकी धेय या धर्म है। दुनिया भर से यही सपना लिए लोग अमेरिका पहुंचते हैं और दो-तीन पीढ़ियां खपाकर सपना साकार होते देखते हैं। अब व्यक्तिगत सपने संस्थागत हो गए हैं। इसलिए बीसमबीस से समय बचाते हुए क्रिकेट से पैसा कमाया जाएगा। उस पैसे के बदले में क्रिकेट के आनंद को उन देशों में ले जाया जा रहा है जहां उस खेल को खेलने की कोई लगन, लगाव व लौ नहीं रही है।
इसके बादजूद क्रिकेट की रोमांच भरी, मनोरम अनिश्चितताएं ही खेल को महान बनाती हैं। अमेरिका ने पाकिस्तान को हराकर अगले दौर (सुपर 8) में जगह पा ली है। यह भी क्रिकेट में अमेरिका की सफलता है। खेल फैलेगा तभी खिलाड़ी फलेंगे-फूलेंगे। बीसमबीस क्रिकेट का आनंद चलने दें।