न मुद्दे और न कहानी

न मुद्दे और न कहानी

लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद दो राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। लोकसभा में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी को झटका लगा और उसकी 63 सीटें कम हो गईं उसे देखते हुए इन दो राज्यों में भाजपा को ज्यादा कायदे से चुनाव लड़ना चाहिए था। उसे नई कहानी बनानी चाहिए थी और नए मुद्दे लेकर जनता के बीच जाना चाहिए था। भाजपा को नई रणनीति की जरुरत इसलिए भी थी क्योंकि दोनों राज्यों में यानी जम्मू कश्मीर और हरियाणा में भाजपा की ही सरकार है। दोनों राज्यों में वह 10 साल से सत्ता में है। जम्मू कश्मीर में पहले पीडीपी के साथ तालमेल करके भाजपा सरकार में शामिल हुई थी और नवंबर 2018 से राष्ट्रपति शासन लगा कर सीधे वहां का शासन कंट्रोल किया। इस तरह से कह सकते हैं कि दोनों राज्यों में 10 साल से डबल इंजन की सरकार चल रही है।

फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह या भाजपा के दूसरे नेता किस मुद्दे पर वोट मांग रहे हैं? बड़े दयनीय तरीके से भाजपा के नेता उन्हीं मुद्दों पर वोट मांग रहे हैं, जिन पर 2014 में मांगा था। 2014 में भाजपा ने जम्मू कश्मीर में आतंकवाद खत्म करने के नाम पर वोट मांगा था। तब भी नरेंद्र मोदी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस को आतंकवादियों का समर्थन करने वाली पार्टी बताया था। यह अलग बात है कि चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने पीडीपी के साथ तालमेल करके उसकी सरकार बनवा दी।

जिस पार्टी पर आतंकवादियों और अलगाववादियों का हमदर्द होने का आरोप लगाया था उसी के नेता को मुख्यमंत्री बना दिया। भाजपा के समर्थन से पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद सीएम बने और उनके निधन के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती सीएम बनीं। अब उन्हीं महबूबा मुफ्ती के खानदार पर जम्मू कश्मीर को बरबाद करने का आरोप लगा कर प्रधानमंत्री मोदी वोट मांग रहे हैं। यह कितना दयनीय है कि 10 साल राज करने के बाद भाजपा पूरे चुनाव में आतंकवाद को पाताल में दफन कर देने के नाम पर वोट मांग रही है और दूसरी ओर यह खबर है कि जमात और कट्टररपंथी समूहों के समर्थन वाले निर्दलीय और छोटी पार्टियों के उम्मीदवारों को भाजपा मदद दे रही है। कुल मिला कर स्थिति यह है कि 10 साल बाद हो रहे चुनाव में भाजपा के पास अपनी कोई कहानी नहीं है और न उसके पास कोई सकारात्मक मुद्दा है।

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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