मोदी की घबराहट का चरम, अंबानी-अडानी भाषण!

मोदी की घबराहट का चरम, अंबानी-अडानी भाषण!

तमाम तरह की बातें हैं। लेकिन असल बात भाषा है। नरेंद्र मोदी भले दस साल प्रधानमंत्री रह लिए हैं और अंबानी व अडानी दुनिया के टॉप खरबपति हैं मगर तीनों का स्तर कैसा-क्या है? इसे बूझे इन वाक्यों से- अंबानी, अडानी से कितना माल उठाया है? काले धन के कितने बोरे भरकर मारे हैं? आज टेंपो भरकर नोट कांग्रेस के लिए पहुंची है क्या?क्या सौदा हुआ है? आपने रातों रात अंबानी, अडानी को गाली देना बंद कर दिया? जरूर दाल में कुछ काला है? पांच साल तक अंबानी, अडानी को गाली दी और रातों रात गालियां बंद हो गईं। मतलब कोई न कोई चोरी का माल, टेंपो भर भरकर आपने पाया है। देश को जवाब देना पड़ेगा!

सो ‘चोरी का माल’, ‘काले धन के बोरे’ के नरेंद्र मोदी के जुमलों का पहला अर्थ है अंबानी और अडानी का पैसा चोरी का माल! मतलब भारत के लोगों से चोरी किया हुआ माल, क्रोनी पूंजीवाद में देश के संसाधनों, बेइंतहां मुनाफे से लूटा और माल बनाया। दस साला मोदी राज के अधिकृत चोर! चोरी के माल के साथ भारत के प्रधानमंत्री ने माल को काला धन भी बताया है। इसलिए यह हिसाब पहले नरेंद्र मोदी से पूछना चाहिए कि जरा बताएं तो सही उनके दस साला राज में मुकेश अंबानी और गौतम अडानी का चोरी से माल का कितना काला धन गोदामों में रखा हुआ है? वह मुंबई, पुणे में रखा है या गुजरात के शहरों में? या यह काला धन विदेश में है? मगर मुकेश और गौतम अडानी विदेश से टेंपो में नोट भरवा कर कांग्रेस को पहुंचवाएं, यह जमता नहीं है। इसलिए नरेंद्र मोदी को निश्चित ही सरकारी आंख, कान, नाक से मालूम होगा कि टेंपो से काला धन पहुंचाने के अंबानी-अडानी के डिपो देश में कहां-कहां हैं।

लोग कह रहे हैं कि मोदी का यह भाषण अपने आपमें प्रमाण है कि वह किसे के सगे नहीं हैं।

कुछ भी हो मोदी के मुंह से पूरी दुनिया ने, वैश्विक वित्तीय ठिकानों को मालूम तो हुआ कि अंबानी-अडानी चोरी के माले के उठाईगीरे हैं। मुकेश-नीता अंबानी अपने ऐश्वर्य,अपनी धनिकता, एलिटिज्म का कैसा ही शो करें लेकिन असल में हैं तो कुल मिलाकर टेंपो में माल को, चोरी के माल को इधरसे उधर पहुंचानेवाले सौदागर!

तभी मोदी लाजवाब हैं। अरूण पुरी और ‘इंडिया टुडे’ को सरेआम ‘दुकान’ बोला और उसकी दुकान चलाई भी तो अंबानी-अडानी की यह असलियत भी बताई कि येचोरी के पैसे, काले धन से सौदे व दलाली से बने धनपति हैं।

मेरा मानना है कि सात मई के दिन, तीसरे चरण के मतदान के बाद रात-दो तीन बजे सभी सीटों के आंकड़े नरेंद्र मोदी-अमित शाह के सामने आए होंगे तो मोदी उस दिन शायद दो-तीन घंटे भी नहीं सोए होंगे। इसलिए सुबह तेलंगाना जाते हुए उन्होंने हवाई जहाज में इरादा बनाया होगा कि पप्पू गरीबों का मसीहा बन गया है और मैं अंबानी-अडानी का दुकानदार तो आज हवा बदल देनी है। अंबानी-अडानी जाएं भाड़ में। तभी बिना स्क्रिप्ट के नरेंद्र मोदी ने अंबानी-अडानी को उन शब्दों से नंगा किया जो खरबपति गुजरातियों में आम प्रचलित जुमले हैं। जैसे माल, कितना टका, धंधा, रूपया मारना आदि, आदि!

तो यह घबराहट है। प्लानिंग, स्ट्रेटेजी या अमित शाह की चाणक्य रणनीति नहीं। मुझे नहीं लगता कि मोदी ने ये जुमले अमित शाह या एक्सवाईजेड से सलाह करके बोले हों। पूरा चुनाव क्योंकि नरेंद्र मोदी के अपने अस्तित्व से जुड़ा है तो वे ही जमीन को खिसकता महसूस कर रहे हैं और उन्हें ही तीस मई तक एक के बाद एक ऐसे जुमले बोलने हैं, जिससे आंधी शुरू हो जाए और मतदान में मोदी-मोदी की गूंज फूटे। तो क्यों नहीं वे अंबानी, अडानी की सारी संपत्ति का राष्ट्रीयकरण उसके पैसे को लोगों में बांट देने की घोषणा कर देते हैं?है हिम्मत अपने सखाओं के लूट के मार को जनता में बांटने की?

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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