उफ! मोदी की नई संसद!

उफ! मोदी की नई संसद!

किसने कल्पना की थी संसद की नई इमारत से टप, टप पानी लीक होगा! जाहिर है मोदी के लिए संसद की नई इमारत अपशकुनी है। खराब समय ले आई है। जब से नए संसद में संसदीय कार्रवाई शुरू हुई है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की ग्रह दशा खराब है। चुनाव में जाने से पहले की संसद बैठकों में नरेंद्र मोदी का बडबोलापन था। चार सौ पार सीटों की हवाबाजी थी। वे राहुल और कांग्रेस का भविष्य संसद दीर्घा का बतला रहे थे। लेकिन खुद भाजपा 240 सीटों पर अटकी। नई संसद का पहला सत्र हुआ तो राहुल गांधी का भाषण सुपरहिट। उनका भाषण सर्वाधिक डाउनलोड़ हुआ। न राष्ट्रपति का अभिभाषण हिट और न नरेंद्र मोदी के भाषण की वाह! फिर वैसे ही निर्मला सीतारमण के बजट भाषण से भी कोई खुश नहीं। 

हो सकता है मैं गलत हूं लेकिन मैंने जितना देखा और जाना है उससे लगता है कि मोदी सरकार के कार्यकाल का यह पहला बजट है जब मध्य वर्ग के लोग सर्वाधिक उखड़े दिख रहे है। बजट और टैक्स के बोझ को लेकर मध्यवर्ग की प्रतिक्रियाएं अब मारक है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह जहां चार विधानसभा चुनावों में ओबीसी, मराठा, आदिवासी के वोटों की बिसात की जुगाड़ में है वही अब मध्यम वर्ग का फैक्टर ज्यादा बड़ा और निर्णायक होता लगता है। 

सबसे बड़ी प्रतीकात्मक बात जो संसद की नई इमारत से टप, टप पानी का जनता में मैसेज बनना है। वैसे यह बात अतिश्याक्तिपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दस वर्षों में पत्थर की जितनी इमारते बनवाई वे सब अब मजाक और विद्रूपता की प्रतिमान है। लोग मायावती की बनाई इमारतों, स्मारकों से भी गया गुजरा निर्माण मोदी सरकार का बताने लगे है। याद करें संसद भवन के शीशे के कंटेनर में खड़े पत्रकारों के फोटो को। जिसने भी उस फोटो को देखा उसके मन में यह रियलिटी धर बैठी है कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में मीडिया और पत्रकारों को कैसे पिंजरे में रखा गया। एक फोटो से पूरे शासन का सत्य। तो फोटो राहुल गांधी, अखिलेश के बोलने का हो या नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गुस्से में, अंहकार में बोलने का या सदन चलाते ओम बिडला और जगदीप धनकड़ की तस्वीरें, सब लोगों के दिल-दिमाग में गहरे पैंठ रही है। और इस नई संसद के अनुभव में ही मोदी सरकार ने केजरीवाल, हेमंत सोरेन को जेल में डालने के फैसले हुए तो नतीजा क्या? और यदि ईड़ी, सीबीआई से राहुल गांधी को अब यदि मोदी जेल में डलवा दें तो तय माने तीन महिने बाद चारों राज्यों में भाजपा का पूरा सूपड़ा साफ हो जाना है। 

Published by हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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