भगवान जगन्नाथ की उल्टी घुरती रथयात्रा

भगवान जगन्नाथ की उल्टी घुरती रथयात्रा

इस दिन भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बहुत ही धूमधाम के साथ निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ की यह यात्रा के वर्ष में एक बार भगवान जगन्नाथ को उनके गर्भ गृह से बाहर निकालकर यात्रा कराई जाती है। उनके साथ भगवान कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी रथ में बैठकर यात्रा करते हैं। यह रथयात्रा का यह उत्सव पूरे 9 दिनों तक बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मान्यतानुसार इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी गर्भ गृह से बाहर आकर प्रजा के सुख दुख हो स्वयं देखते हैं।

28 जून- जगन्नाथपुरी की उल्टी रथयात्रा पर

उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में समुद्र तट पर अवस्थित भारत के चार धामों में से एक जगन्नाथ धाम में भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित जगन्नाथ मंदिर है, जहां भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। शंख के आकर का होने के कारण जगन्नाथ पुरी को शंख क्षेत्र और पुरुषोत्तमपुरी भी कहा जाता है। यह जगन्नाथ मंदिर 214 फुट ऊँचा, 20 फुट ऊँची दीवारों से घिरा और चार लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैला है। कलिंग शैली में बने इस मंदिर के शिखर पर अष्ट धातुओं से निर्मित सुदर्शन चक्र (नील चक्र) है। हैरतअंगेज बात यह है कि किसी भी वस्तु, मनुष्य, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे की परछाई बनती है, परन्तु जगन्नाथ मंदिर के शिखर की छाया दिखाई नहीं देती है।

मंदिर के चारों दिशाओं में चार द्वार बने हुए है। पूर्व दिशा में अवस्थित सिंह द्वार से आम लोग को प्रवेश दिया जाता है। दक्षिण दिशा में स्थित अश्व द्वार से विशेष श्रेणी के महत्वपूर्ण लोग अर्थात वी आई पी पर्सन प्रवेश करते हैं। पश्चिम दिशा के हाथी द्वार से पुजारी पंडित प्रवेश करते हैं। और उत्तर दिशा के व्याघ्र द्वार से विकलांग , बीमार व्यक्ति प्रवेश करते हैं। जगन्नाथ पुरी की विश्व की सबसे बड़ी रसोई अत्यंत प्रसिद्ध है, जहां प्रतिदिन 25000 और रथ यात्रा उत्सव के दिनों में एक लाख लोगों के लिए भोजन बनता है।

पुरी अपनी पारंपरिक कला, संस्कृति, इतिहास, वास्तुकला, समुद्री शिल्प के अतिरिक्त  मंदिरों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। पुरी में प्रति वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भव्‍य रथयात्रा निकली जाती है। जिसमें भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा की काष्ठ से निर्मित भव्य प्रतिमाओं को लकड़ी के बने रथ में बिठाकर नगर का भ्रमण करवाया जाता हैं। भगवान जगन्नाथ की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकलने वाली इस रथयात्रा को चलती रथयात्रा कहा जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा व भाई बलभद्र की रथयात्रा मूल मन्दिर से निकलकर गुण्डिचा गढ़ी तक जाती है। गुण्डिचा गढ़ी को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है, जिसमें वे आठ दिनों तक रहते हैं।

फिर नौवें दिन आषाढ़ शुक्ल एकादशी को गुण्डिचा गढ़ी से भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा व भाई बलभद्र के साथ वापस रथ के द्वारा अपने मूल मन्दिर लौट आते हैं। इस वापस अपने मूल मन्दिर आने की उल्टी रथयात्रा को घुरती रथयात्रा अथवा बहुरा (बहुड़ा) रथयात्रा कहा जाता है। इस वर्ष हरि शयनी एकादशी पर निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ की यह उल्टी रथयात्रा 28 जून 2023 को जगनाथ पुरी में  निकाली जाएगी।

आषाढ़ मास की द्वितीय तिथि और एकादशी के दिन क्रमशः भगवान जगन्नाथ की चलती व घूरती रथयात्रा का उत्सव उड़ीसा सहित देश- विदेश के कई भागों में बहुत ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। परन्तु उड़ीसा राज्य के पुरी शहर की रथयात्रा सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बहुत ही धूमधाम के साथ निकाली जाती है।

भगवान जगन्नाथ की यह यात्रा के वर्ष में एक बार भगवान जगन्नाथ को उनके गर्भ गृह से बाहर निकालकर यात्रा कराई जाती है। उनके साथ भगवान कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी रथ में बैठकर यात्रा करते हैं। यह रथयात्रा का यह उत्सव पूरे 9 दिनों तक बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मान्यतानुसार इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी गर्भ गृह से बाहर आकर प्रजा के सुख दुख हो स्वयं देखते हैं।

पुराणों में जगन्नाथपुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है। ब्रह्म व स्कंद पुराण के अनुसार पुरी में भगवान विष्णु ने नीलमाधव का रूप धारण कर सबर जनजाति के देवता बन गए थे। सबर जनजाति के देवता होने के कारण ही यहां पर भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की भांति नजर आता है। उड़ीसा के पुरी में अवस्थित जगन्नाथ मंदिर भारत देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह भारत में हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक है। पुरी में कई मठ हैं।

पुरी के प्रसिद्ध मठों में से एक गोवर्धन मठ का निर्माण भगवान शिव के अवतार शंकराचार्य ने 9 वी शताब्दी में किया था। गोवर्धन मठ के कारण ही पुरी को चार पवित्र धामों में से एक धाम की मान्यता मिली है। शंकराचार्य ने संन्यासियों के विभिन्न समूहों को एकजुट करने के लिए 4 मठों अर्थात चार धाम, गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी में श्रृंगेरी मठ, द्वारका में शारदा मठ और बद्रीनाथ में ज्योति मठ स्थापित किये थे, जिनमे में से गोवर्धन मठ एक है। जगन्नाथ बल्लव मठ 16 वीं शताब्दी में उड़ीसा राज्य के सबसे प्रसिद्ध संतों में से एक रामानंद जी को समर्पित है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण के देह त्यागने के बाद जब उनका अंतिम संस्कार किया गया तो उनका पूरा शरीर पंचत्व में विलीन हो गया, लेकिन हृदय धड़कता रहा। मान्यता है कि आज भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर के जगन्नाथ की मूर्ति में श्रीकृष्ण का दिल सुरक्षित है। यह हृदय आज भी जगन्नाथ की मूर्ति में धड़कता है। भगवान के इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है।

यहां भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और सुभद्रा के लिए अलग अलग रथ बनाए जाते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे श्रीकृष्ण के भाई बलराम जी का रथ रहता है। उसके बाद श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा और उनके पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ चलता है। इन रथों को उनकी ऊंचाई और रंग के द्वारा पहचाना जाता है। बलभद्र को महादेव का प्रतीक माना गया है। रथ का नाम तालध्वज है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का ये रथ लाल, हरे रंग का होता है। सुभद्रा के रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक होता है। देवी सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। लाल और काले रंग का ये रथ 12.9 मीटर ऊंचा होता है।

रथ के रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुड़ा कहते हैं। जगन्नाथ का रथ 832 काष्ठ टुकड़ों से निर्मित 13 मीटर ऊँची 16 पहियों की होती है। इसका रंग लाल और पीला होता है। गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष ये जगन्नाथके रथ के नाम हैं। रथ की ध्वजा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाती है। रथ को शंखचूड नामक रस्सी से खींचा जाता है।भगवान जगन्नाथ रथ के रक्षक भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ हैं। मान्यता है कि सच्चे भाव से इस रथयात्रा में शामिल होने वाले लोगों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है, उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मान्यता है कि इस रथयात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ, अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण करते है। इस दौरान तीनों की शानदार प्रतिमाओं के साथ नगर भ्रमण होता है। तीनों अपनी मौसी के घर गुण्डिचा मंदिर जाते है। तीनों ही एक सप्ताह तक गुंडिचा मंदिर में रुकते है, जहां उनका आदर सत्कार होता है। इसके बाद भगवान बीमार हो जाते है, और भगवान के उपचार के लिए उन्हें पथ्य का भोग लगाया जाता है और  स्वस्थ होने के बाद ही भगवान दर्शन देते है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की रथयात्रा पुनः वापस अपने मूल जगन्नाथ मंदिर लौटती है।

इस रथ यात्रा से 15 दिन पूर्व ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम की मूर्तियों को गृर्भग्रह से बाहर लाया जाता है, और पूर्णिमा स्नान के बाद 15 दिन के लिए वे एकांतवास में चले जाते हैं। मान्यता है कि पूर्णिमा स्नान में ज्यादा पानी से नहाने के कारण भगवान बीमार हो जाते हैं। इसलिए वे 15 दिनों के लिए एकांत में रहते हैं। और भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इस दौरान उनका उपचार किया जाता है। विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा का भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्व है। भगवान के रथ को खींचने वाले के सभी दुःख, दर्द और कष्ट समाप्त होने और सौ यज्ञ करने के समान पुण्य की प्राप्ति होने की मान्यता होने के कारण इस यात्रा में देश-विदेश से लाखों लोग शामिल होते हैं।

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Published by अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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