बीड। महाराष्ट्र की इस सीट पर अकेला मराठा आरक्षण मुद्दा नहीं है। यहां एंटी इन्कंबेंसी की हवा बह रही है। मुंडे सिस्टर्स और उनके भाई के प्रति आक्रोश है, वही पुराने सत्ताधारी शरद पवार और वर्तमान सत्ताधारी देवेन्द्र फडनवीस के प्रति नाराजगी है।और नरेन्द्र मोदी के प्रति मिलाजुला भाव है, लेकिन उद्धव ठाकरे के पक्ष में लोग वोकल है।
लोगों के मूड़ की ये अलग-अलग फील, परतेयहाँ फैले कन्फ्यूजन के मेरे निष्कर्ष है।
मराठाओं का एक समूह, जिसमें युवा भी थे और वृद्ध भी और जो अपने गौरव का प्रतीक लाल टीका धारण किये हुए थे, मुझे गेओरी में चाय की एक दुकान पर मिला। बिना किसी किंतु-परंतु के उनका सर्वसम्मत दावा था कि “इलेक्शन माहौल तो तूतरी(शरद पवार की पार्टी का चिन्ह) का है”।
“तूतरी क्यों?” मैं दिलचस्पी दर्शाते हुए पूछती हूँ।
“यहाँ से हमारा आदमी खड़ा है,” बाबासाहेब घाटगे, लोग वजह बताते हैं।
बीड में चुनावी लड़ाई सीधे-सीधे भाजपा और एनसीपी (शरद पवार) के बीच है। भाजपा की उम्मीदवार स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे हैं। वे वर्तमान लोकसभा सदस्य प्रीतम मुंडे और राज्य के कृषि मंत्री राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के धनंजय मुंडे की बहन हैं। पंकजा भी लंबे समय से राजनीति में हैं और उन्होंने पारली विधानसभा क्षेत्र से 2009 और 2014 में जीत हासिल की थी। वे 2014 से 2019 तक देवेन्द्र फडनवीस के मंत्रिमंडल में ग्रामीण विकास मंत्री थी। लेकिन 2019 के चुनाव में वे अपने चचेरे भाई एनसीपी के धनंजय मुंडे, जो अजीत पवार के नजदीकी हैं, से हार गईं। वे पूरी तरह अलग-थलग पड़ गईं। इसलिए उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट मिलना आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली खबर थी।
मुंडे वंजारा समुदाय से हैं। मनोज जारंगे पाटिल की कमान में चले मराठा आरक्षण आंदोलन, जिसने एक शांतिपूर्ण आंदोलन से एक जनविद्रोह का रूप अख्तियार किया था, के चलते लोग भाजपा द्वारा ख़ड़ेकिए गए उम्मीदवार को लेकर हैरान हैं।इसलिए क्योंकि सबसे बड़ा मसला एंटी इंन्कंबेसी का ही है।
गढ़ी गांव के किसान शांताराम बांगर मराठा आरक्षण के बारे में तो कुछ नहीं बताते।मगर हां, वे नेताओं द्वारा कराए गए कामों के आधार पर अपनी पसंद तय करते हैं। वे प्रीतम से नाराज हैं क्योंकि वे काम करवाने में नाकाम रहीं। वे कहते हैं, “ऊपर भी सरकार इनकी, नीचे भी सरकार इनकी, मगर कुछ काम नहीं हुआ है बीड में”।
पेंडगांव में धर्मराज घाटगे को भी यही शिकायत है- “यहा विकास कहां दिख रहा है?”
बीड में न रेल लाईन है और ना सिंचाई की सुविधा। खेती पूरी तरह बारिश पर निर्भर है। बिजली भी अक्सर लापता रहती है। बताया जाता है कि सिर्फ 8 घंटे बिजली मिलती है। इस सबका नतीजा है कि यहां कोई उद्योग नहीं है। बीड बहुत पिछड़ा, दरिद्र, नीरस और धूल-भरा इलाका है। यह इलाका इस तथ्य के बावजूद अभावों से जूझ रहा है कि गोपीनाथ मुंडे जैसे दिग्गज नेता यहीं के थे।
मुंडे परिवार 2009 से बीड में लोकसभा चुनाव आसानी से जीतता रहा है। एनसीपी ने सन् 2004 में यहां से आखिरी बार जीत दर्ज की थी। उसके बाद गोपीनाथ मुंडे ने दो बार – 2009 और 2014 – में यहां से विजय हासिल की। दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद 2019 के उत्तरार्ध में हुए उपचुनाव में प्रीतम मुंडे ने यह सीट जीती।कहते है वंजारा समुदाय के साढ़े तीन लाख से अधिक मतदाता मुंडे परिवार के प्रतिबद्ध वोट बैंक हैं।
जब मैंने पूछा कि मुंडे के बावजूद यहाँ प्रगति क्यों नहीं हुईं, तो सहानुभूति के साथ सिर हिलाते हुए लोगों में जवाब मिलता है “मुंडे जी को सत्ता बीजेपी की जीत के बाद हासिल हुई और इसके कुछ ही दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई”।
लेकिन ये सब बीती बातें हैं। इस चुनाव में मुंडे परिवार के प्रति ‘सहानुभूति की लहर’ कमजोर है। मैंने स्थानीय पत्रकारों से पूछा कि क्या इस बार जाति बड़ा मुद्दा नहीं है। वे बिना झिझके वही बात दोहराते हैं- विकास कहां है।”दस साल से सिम्पेथी पर हम मुंडे को जिता रहे हैं, अब बहुत हो गया,” मोहन बहीर की आवाज में गुस्सा साफ महसूस किया जा सकता है।
“तो क्या शरद पवार के प्रति सहानुभूति है?” मैंने विट्ठल करसाडे से पूछा।
वे मुस्कराते हुए गोलमोल जवाब देते हैं “बप्पा अपना आदमी है”
शरद पवार के नेतृत्व वाली विपक्षी एनसीपी ने बजरंग सोनवने को लोग अपना उम्मीदवार बनाया है।और उन्हें बप्पा कहकर बुलाते हैं। वे बीड के एक विधानसभा क्षेत्र केज से हैं और जानेमाने राजनेता हैं। वे मराठा हैं मगर अन्य समुदायों के लोग उन्हें अपने शत्रु बतौर नहीं देखते। सन 2019 के आम चुनाव में उन्होंने प्रीतम मुंडे के खिलाफ चुनाव लड़ा था और उन्हें पांच लाख वोट मिले थे।
इस बार बीड में एंटी इन्कंबेंसी का बोलबाला है। मुंडे के खिलाफ गुस्सा है तो देवेन्द्र फडनवीस के प्रति भी। लोग कहते हैं कि फडनवीस केवल बातें करते हैं, काम नहीं करते।
संयोग से अंतारवाली सराती (AntarWaliSarati)में मेरी मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे-पाटिल से मुलाकात हो गयी।41 साल के मनोज जरांगे-पाटिल, मराठा आन्दोलन का चेहरा हैं और इसके समर्थन में चले आन्दोलन के अघोषित नेता भी। पिछले महीने तक ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि वे राज्य में कई स्थानों से मराठा नेताओं को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ा करेंगे। मगर उन्होंने यह इरादा छोड़ दिया। ऐसा बताया जाता है कि वे 17-18 लोकसभा क्षेत्रों में नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं।
वे कहीं के लिए निकल रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि क्या चुनाव का मुख्य मुद्दा मराठा आरक्षण है। वेशायद मराठी में ही बात करते हैं। मुझे भी उन्होंने मराठी में कहा, पिछले साल दिवाली के दौरान जो हुआ वह गलत था। सरकार ने बेरहमी की और वह इस बात को समझती है वर्ना क्या कारण है कि नरेन्द्र मोदी, महाराष्ट्र में इतना आक्रामक प्रचार कर रहे हैं। उन्हें मालूम है कि उन्होंने क्या किया है और आगे इसके क्या नतीजे हो सकते हैं।
मनोज जरांगे-पाटिल खुलकर बात करते हैं। वे राजनेता की तरह नहीं बोलते मगर जो बोलते हैं उसके राजनीति के लिए निहितार्थ हैं। जब मैंने उनसे पूछा कि शरद पवार ने भी एक बार मराठाओं को आरक्षण देने की बात की थी मगर उस वायदे को पूरा नहीं किया तो मुस्कुराते हुए वे कहते हैं, “यह सब राजनीति है और हम राजनीति करना नहीं चाहते। हमें तो अपना हक़ चाहिए।”
मराठा हर हाल में आरक्षण चाहते हैं। पिछले साल मराठा आन्दोलन के दौरान बीड में हिंसा हुई थी। विपक्षी एनसीपी के विधायक संदीप क्षीरसागर और सत्ताधारी एनसीपी के प्रकाश सोलंखे – दोनों के घरों पर हमले हुए थे। मंत्री और ओबीसी नेता छगन भुजबल के एक समर्थक की होटल में आग लगा दी गयी थी। राजनैतिक दलों का दावा है कि यह सारी हिंसा समाज-विरोधी तत्वों द्वारा की गयी थी मगर इससे विभिन्न समुदायों के बीच जो खाई पैदा हुई, उसे अब तक पाटा नहीं जा सका है।
कल्याण मोरे औरंगाबाद से शोलापुर जाने वाले हाईवे पर एक ढाबा चलाती हैं। उन्होंने मनोज जरांगे-पाटिल के नेतृत्व में चले आन्दोलन में हिस्सा लिया था। वजह यह कि उनका 22 साल का लड़का अपनी शिक्षा पूरी करने के बावजूद कोई काम हासिल नहीं कर सका है और ढाबा चलाने में उनकी मदद करता है।”हमने पैसा खर्च कर पढाई करवाई और वो सारे जॉब्स ले गए क्योंकि उनको रिजर्वेशन (हासिल है)।” वे कहती हैं।
उनके पति सहमत है। “एक समय हमारे पास कई एकड़ ज़मीन थी। मगर नए कानून बने, खर्च बढ़ा और परिवार भी बड़ा हुआ। अब 10 एकड़ ज़मीन एक एकड़ लगभग रह गयी है।”
मोरे दंपत्ति की बात में दम था। मगर मैंने पूछा कि क्या आरक्षण ही सभी समस्यायों का हल है।
जवाब सहाराम कुलकर्णी ने दिया। “तो सारे रिजर्वेशन हटा दो। क्या सरकार ऐसा कर सकती है?”
जो कुछ भी अतीत में हुआ है, उससे मराठाओं में गुस्सा है। और वे नतीजे तय करने में सक्षम हैं। बीड में करीब साढ़े पांच लाख मराठा वोटर हैं और करीब डेढ़ लाख मुसलमान हैं। इसके साथ ही पंकजा की बहन के प्रति गुस्सा अलग है। ऐसे में पंकजा की राह आसान नहीं है।
चंद्रकांत साफगोई से कहते हैं। “अगर भाजपा ने किसी मराठा को खड़ा किया होता तो हम भाजपा को वोट देते।”
कुल मिलकर कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है। लोगों की पसंद का अंदाज़ा लगाना बहुत कठिन है। चार जून को बीड चौंकाने वाले नतीजे दे सकता है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)