एमबीएस उर्फ सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की दांस्ता दिलचस्प है।शाही खानदान में पैदा होने के बावजूद जवान होने तक उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया। उनके पिता और सऊदी अरब के बादशाह सलमान पहले से ही अपनी पहली पत्नी से पांच बेटों के पिता थे।वह एक आला शहरी खानदान से थीं और पढ़ी-लिखी थीं।जबकि एमबीएस की मां, जो सलमान की तीसरी पत्नी थीं, कबीलाई थीं। इसलिए जब भी वे राजमहल में जाते जहां उनके पिता अपनी पहली पत्नी के साथ रहते थे, तो उनके बड़े सौतेले भाई उन्हें ‘बदु की औलाद’ कहकर चिढाते थी। बदु या बदुईन, अरब के रेगिस्तानी इलाके की एक पशुपालक, घुमंतू जनजाति है।
उनके बड़े और चचेरे भाईयों को पढ़ने के लिए अमरीका और ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में भेजा गया वहीं बदुईन की संतान, प्रिंस सलमान, रियाद में ही रहे।वे किंग सऊद विश्वविद्यालय में पढ़े। जहां उनके भाईयों को राजशाही के ऐशोआराम हासिल हुए वहीं एमपीएस उपेक्षित रहे – अपने भाईयों की छाया में जीने को मजबूर। मगर देरी से ही सही, भाग्य की देवी एमबीएस पर मेहरबान हुई। रियाद में रहने से उनकी अपने पिता (बादशाह) से निकटता बढ़ गई। और वे सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस (युवराज) बन गए। यद्यपि 86 साल के बादशाह सलमान अभी जीवित हैं और राज्याध्यक्ष भी हैं लेकिन अरसे से वे राजमहल के चहारदीवारी के अंदर ही रहते हैं और एमबीएस का राजकाज पर पूरा नियंत्रण हो गया है।
जब एमबीएस ने राजकाज संभाला तब यह उम्मीद थी कि 36 वर्षीय क्राउन प्रिंस, सऊदी के युवावर्ग की इच्छाओं के अनुरूप शासन चलाएंगे। सऊदी अरब की 70 प्रतिशत जनसंख्या 30 वर्ष से कम उम्र की है। उनकी शुरूआत शानदार हुई। सलमान को परम्पराओं से चिपके रहना पसंद नहीं था। इसलिए वे ऐसे सुधार करने में सफल रहे जो असंभव लगते थे – सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा नजर आने वाला बदलाव था पब्लिक लाइफ में महिलाओं की भागीदारी। वे कार चलाने लगीं और उन पर बाहर जाने के लिए पति या पिता के साथ होने की बाध्यता हटा दी गई। इसके अलावा मनोरंजन संबंधी पाबंदियों में भी ढील दी गई।
अब सऊदी अरब में कसंर्ट और फार्मूला-1 रेस होती हैं, पार्टियाँ और करोके होते हैं और फैशन शो तथा अवार्ड फंक्शन्स भी। सऊदी अरब फैशनबिल और जिंदादिल बन रहा है और ‘पश्चिमी संस्कृति’ को गले लगा रहा है। लेकिन ‘पश्चिमी नजरिया’ अभी भी गायब है। बोलने की आज़ादी नहीं है। बादशाह की आलोचना करने पर सज़ा भोगनी पड़ती है। उन्होंने अपने सारे प्रतिद्वंद्वियों और जिनसे उन्हें खतरा था – मतलब उनके परिवार के सदस्यों – को रास्ते से हटा दिया है। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही के नाम पर शाही खानदान के सदस्यों को रिट्ज कार्लटन (एक लक्ज़री होटल) में ‘नजरबंद’ कर दिया था। इस सब से जनता भारी खुश हुई। एमबीएस की जयजयकार होने लगी। वहीं उनके भाई और चचेरे भाई आम आदमी बन गए। उनकी पदवियां, धन-संपत्ति और ऐशोआराम की सुख-सुविधाएं छीन ली गईं और राजकुमारों और राजकुमारियों को नौकरी ढूंढने या देश छोड़कर चले जाने के लिए बाध्य होना पड़ा।
एमबीएस की जीत हुई लेकिन दुनिया उन्हें लेकर आशंकित थी। सन् 2018 में वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी के सऊदी अरब में बेरहमी से क़त्ल ने एमबीएस के असली चेहरे का पर्दाफाश कर दिए। वे अब खलनायक बन गए थे। न केवल पश्चिमी देशों बल्कि ज्यादातर सऊदी अरब समर्थक दुनिया के नेताओं ने भी उनसे दूरी बना ली।
लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले से उनसे भी बड़ा एक खलनायक उभरा। दुनिया में नई समस्याएं उत्पन्न हुईं, जिनमें से सबसे बड़ी और चुनौतीपूर्ण थी कच्चे तेल की आसमान छूती कीमतें। अचानक 2018 को भुला दिया गया। दुनिया भर के नेताओं ने एमबीएस से मीठी-मीठी बातें करना शुरू कर दिया। सन् 2020 में चुनाव अभियान के दौरान जो बाइडन ने सऊदी अरब को दुनिया का ‘अछूत’ बना देने के कसमें खाईं थीं। मगर 15 जुलाई को उन्होंने एमबीएस से सुलह कर ली। एक बार फिर एमबीएस की जीत हुई।
हां, क्राउन प्रिंस खुशकिस्मत हैं। आज एमबीएस ने लगभग बंद पड़े सॉवरेन वेल्थ फंड को फिर से जीवित कर दिया है और टेक्नोलॉजी, मनोरंजन और खेलों में अरबों डालरों का निवेश किया है जिससे सऊदी अरब की बेहतर छवि बन रही है और उन्हें नए साथी मिल रहे हैं। यहां तक कि सऊदी-भारत संबंध भी बेहतर हो रहे हैं। सन् 2019 में एमबीएस के दिल्ली दौरे के बाद सऊदी अरब और भारत के सम्बन्ध नई ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं और दोनों देशों ने एक संयुक्त रणनीतिक सहयोग परिषद् की स्थापना की है। भारत के लिए सऊदी अरब एक अहम व्यापारिक साझेदार है। वह भारत को तेल और गैस का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर है। जहाँ तक सऊदी अरब का सवाल है, पश्चिम की तरह वह भी 140 करोड़ लोगों के देश में अनेक संभावनाओं को देखता है। हाल में समाप्त हुए जी-20 सम्मेलन में अत्यंत महत्वपूर्ण भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे की घोषणा की गयी। कुछ समय पहले सऊदी को ब्रिक्स का हिस्सा भी बनाया गया। एमबीएस जी-20 शिखर बैठक की समाप्ति के बाद भी भारत में रुके रहे। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ भारत और उनके देश के बीच व्यापारिक और सुरक्षा रिश्तों को बढ़ाने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये। दोनों नेताओं ने भारत-सऊदी अरेबिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप कौंसिल की पहली शिखर बैठक की संयुक्त रूप से अध्यक्षता भी की।
दुनिया बदल रही है। नए रिश्ते बन रहे हैं और नए नेता उभर रहे हैं। एमबीएस उनमें से एक हैं। पश्चिम ने एमबीएस को एक सबक तो सिखा दिया है – और वह सबक दुनिया भर के तानाशाहों के लिए अच्छी खबर है। और वह सबक यह है कि आपने चाहे जो पाप किया हो, अगर आप आपके खिलाफ गुस्से और नफरत के दौर को झेल जाएं तो आज नहीं तो कल, कुबेरपति फाइनेंसर, मशहूर लोग और पश्चिमी नेता फिर से आप के पास दौड़े-दौड़े आएंगे। एमबीएस अभी केवल 36 साल के हैं और उनके पास भरपूर समय है। कुछ का मानना है कि जैसे-जैसे सऊदी अरब का तेल का भंडार सिकुड़ता जायेगा, जैसे-जैसे देश का खजाना खाली होता जायेगा, वैसे–वैसे एमबीएस और खतरनाक बनते जाएंगे। चिंता जायज़ है मगर अभी तो एमबीएस के अच्छे दिन हैं। वे सऊदी अरब के शाही खानदान के हीरो हैं और दुनिया के रंगमंच के महत्वपूर्ण किरदार। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)