उफ! पत्रकार अल-दहदू का परिवार, क्या निर्बल के लिए ही युद्ध नियम?

उफ! पत्रकार अल-दहदू का परिवार, क्या निर्बल के लिए ही युद्ध नियम?

मनुष्यता पर कैसे निर्मम व क्रूर प्रहार हैं, इसे ज़रा समझिये।हर दिन फिलिस्तीनी मारे जा रहे है। करीब 1,400 इजराइलियों के बदले 6,500 फिलिस्तीनियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। हमास ने कोई 220 लोगों को बंधक बनाया था। इसके बदले 25 लाख फिलिस्तीनियों का राशन-पानी बंद है। वे घरों से विस्थापित, बेघर से है।  उनकी ज़िन्दगी में जो कुछ थोडा-बहुत बचा है, वह भी न खो जाए, इस डर से सभी मारे-मारे फिर रहे हैं। इनमें अल जजीरा के गाजा ब्यूरो चीफ वाईल अल-दहदू भी हैं। इजराइल द्वारा उत्तरी गाजा पर आक्रमण की चेतावनी देने के तुरंत बाद अल-दहदू अपने परिवार सहित मध्य गाजा के नुसेइरत शिविर में चले गए थे। यह ऐसा इलाका है जिसे इजरायली सेना ने ‘सुरक्षित’ श्रेणी में रखा था। लेकिन 25 तारीख को यह सुरक्षित इलाका जानलेवा बन गया। पलक झपकते ही अल-दहदू की दुनिया लुट गई। वे यरमोक में इजरायली हवाई हमलों की खबरें दे रहे थे तभी उनको अपने पूरे परिवार – पत्नि, बेटा, बेटी और पोता –के हवाई हमले में मारे जाने की खबर मिली। अल-दहदू के परिवार के सभी सदस्य मलबे के नीचे दफन हो गए।

इस तरह का घटनाक्रम 7 अक्टूबर के बाद से हर दिन, लगातार, हो रही त्रासदियों में केवल एक उदाहरण है। अल-दहदू उन हजारों गाजा निवासियों में से मात्र एक हैं जिन्हें हमास की बर्बरता का दंड दिया जा रहा है। हालांकि दंड उस आतंक, आघात, और दुःख की तुलना में बहुत हल्का शब्द है जिसका सामना गाजा के 25 लाख निवासियों को 7 अक्टूबर के बाद से लगातार करना पड़ रहा है। पूरे परिवारों को ख़त्म  किया जा रहा है, सिर्फ 4 या 5 सदस्यों वाले परिवारों का ही नहीं, बल्कि 40 से अधिक सदस्यों वाले परिवारों का भी। कुछ दिन पहले अल-अहली अस्पताल, जहां गाजा के बहुत से निवासी शरण लिए हुए थे, में हुए विस्फोट में सैकड़ों लोग मारे गए थे।

इन पंक्तियोंको लिखे जाने तक गाजा पर इजरायली हवाई हमलों में 6,500 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 7 अक्टूबर के हमास के आतंकी हमले में करीब 1,400 लोगों की जान गई थी। इजरायली बमबारी के कारण करीब 6.5 लाख फिलिस्तीनी बेघर हुए हैं। सभी 25 लाख निवासियों को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लाले पड रहे है। ब्रिटिश संस्था ऑक्सफेम का कहना है कि इजराइल, भूख को गाजा के निवासियों के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है।2,704 बच्चों की मौत हो चुकी है और फिलिस्तीनी पत्रकार संघ के अनुसार 22 से अधिक पत्रकार मारे जा चुके हैं।

क्या यह नस्लीय सफाई नहीं है? संयुक्त राष्ट्रसंघ ने चेतावनी दी है कि फिलिस्तीनियों के “नरसंहार का  खतरा” है। लेकिन दुनिया मूकदर्शक बनी हुई है। पश्चिमी देशों में और भारत में भी कई लोगों का मानना है कि युद्धविराम तुरंत नहीं होना चाहिए। आतंकियों द्वारा इजराइल की ‘संप्रभुता’ को निशाना बनाया गया था, इसलिए इजराइल को सभी फिलिस्तीनियों पर बमबारी करने का अधिकार है।

तभीदुनिया दहशत के सैलाब की अनदेखी कर रही है।मरने दो फिलिस्तीनियोंको। करूणा और सहानुभूति के लिए कोई जगह नहीं बची है। समस्या के हल में ‘बदले’ को ही एकमात्र तरीका माना जा रहा है। फिलिस्तीनियों और उनकी दुर्दशा के बारे में बोलने और लिखने को ‘आतंकवाद का समर्थन’ बताया जा रहा है। निंदा एक-पक्षीय हो रही है। आज युद्ध का 20वां दिन है और पिछले 19 दिनों से इजराइल, गाजा पर बमबारी कर उसे बर्बाद कर चुका है। मारे जा चुके  6,500 लोगोंमें2,704 बच्चे भी हैं।

इजराइल के राजनैतिक नेताओं के सार्वजनिक बयानों की ओर ध्यान दिया जाए तो स्पष्ट है कि आगे हालात और खराब होने वाले हैं। इजरायली सुरक्षा बलों (आईडीएफ) ने साफ घोषणा की है कि  “हमारा जोर नुकसान पहुंचाने पर है, सटीक निशाना लगाने पर नहीं” और ‘‘गाजा अंततः तंबुओं के शहर में बदल जाएगा।” आईडीएफ के एक अधिकारी ने कहा ‘‘वहां कोई इमारत नहीं बचेगी”।इजराइल के वित्त मंत्री नीर बरकत ने एबीसी न्यूज को बताया कि “प्राथमिकता हमास को तबाह करना है, नागरिकों और बंधकों की जान बचाना उतना महत्वपूर्ण नहीं है। भले ही इसमें एक साल लग जाए”।इस तरह की बातें खुलेआम की जा रही हैं जबकि दुनिया ने अपनी आँखें और कान बंद कर रखे हैं।

याद करें उस वक्त को जब रूस ने यूक्रेन पर बमबारी की थी, तब दुनिया ने यूक्रेन का साथ दिया था। रूस ने ‘सुरक्षा संबंधी सरोकारों’ का हवाला देते हुए हमले को सही ठहराया था लेकिन पश्चिम ने सर्वसम्मति से रूस पर पाबंदियां लगाईं थीं।रूस की ही तरह इजराइललगभग वैसे ही ‘सुरक्षा संबधी सरोकारों’ का हवाला दे रहा है।और फर्क क्या बना हुआ है? पुतिन युद्ध अपराधी घोषित है। अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने 17 मार्च 2023 को पुतिन को यूक्रेनी बच्चों के निर्वासन के लिए, युद्ध अपराधों का दोषी बताते हुए उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। जबकि इजरायली प्रधानमंत्रीनेतन्याहूका बाल बांका नहीं है। उन्हे हर तरह की छूट मिली हुई है।

तो क्या साबित है? समरथ को नहीं दोष गोसाईं।पुतिन युद्ध अपराधी, यूक्रेन के शहरों को खंडहर बनाने वाले दुष्ट। वहीं नेतन्याहू और इजराइल का सब जायज। हालांकि पिछले सप्ताह अमेरिकी रक्षा मंत्री लायड आस्टिन ने अपनी इजराइल यात्रा के दौरान कहा था कि ‘‘हमारे देशों जैसे लोकतंत्र तब अधिक सशक्त और सुरक्षित रहते हैं जब हम युद्ध के नियमों का पालन करते हैं”।पर यह बात ईराक युद्ध के दो प्रमुख पात्रों, गार्डन ब्राउन और कोंडालिसा राईस के कथनों जितनी ही खोखली लगती हैं, जिन्होंने व्लादिमीर पुतिन और उनके सहायकों को यूक्रेन पर हमले के लिए कुसूरवार बताया था। ईराक पर किया गया हमला भी, जैसा कि ब्राउन ने पुतिन द्वारा यूक्रेन पर हमले के बारे में कहा था, न्यूरेमबर्ग ट्रिब्यूनल द्वारा दी गई ‘आक्रामक युद्ध’ की परिभाषा के अनुसार “सर्वोच्च स्तर का अंतर्राष्ट्रीय अपराध” था।

उस नाते तथ्य है कि इजराइल अभी गाजा में जो कर रहा है, वही अमरीकी सेनाओं ने अधिक घातक रूप में दूसरे ईराक युद्ध में किया था जब उन्होंने फलूजा शहर पर बमबारी की थी और सफेद फास्फोरस को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया था। इस शहर में तब 30 से 50 हजार लोग शरण लिए हुए थे। उन्होंने पूरे शहर पर उसे एक युद्ध क्षेत्र मानते हुए आक्रमण किया जिसमें बड़े पैमाने पर नागरिक मारे गए।

लेकिन इन अपराधों के लिए न तो किसी पर मुकदमा चला और ना ही किसी को सजा हुई, ना ही माफी मांगी गई।सवाल है मनुष्यता के तकाजे में मानवता विरोधी अपराधों में लिप्त लोगों को अपमानित और शर्मिंदा तो कम से कम किया जाना चाहिए? क्या आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मानवीयता को पूरी तरह नजरअंदाज करना ठीक है? क्या वाईल अल-दहदू के परिवारजनों और असंख्य नागरिक फिलिस्तीनियों की हत्या करने युद्ध अपराधी नहीं है? क्या आंतकियों की क्रूरता के जवाब में पूरी सिविल आबादी, पूरे समुदाय को बमबारी से भुन दिया जाना चाहिए? युद्ध के नियम क्या केवल निहत्थी आबादी,निर्बल और कमजोरों के लिए हैं? (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

 

Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें