राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से राहुल गांधी को कई शिकायतें हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था लेकिन मुख्यमंत्री बने रहने के लिए वे अध्यक्ष नहीं बने। उनकी जगह नया नेता चुनने के लिए बतौर पर्यवेक्षक भेजे गए मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन के साथ जैसा बरताव हुआ, जैसे विधायक दल की सामानांतर बैठक हुई और आलाकमान की ऑथोरिटी को चुनौती दी गई, उससे भी राहुल नाराज थे। सचिन पायलट के साथ विवाद की वजह से भी वे नाराज थे। चुनाव से पहले वे इतने नाराज थे कि लग रहा था कि वे प्रचार के लिए भी नहीं जाएंगे। लेकिन ऐसा लग रह है कि चुनाव नतीजों ने उनकी नाराजगी खत्म कर दी है। गहलोत ने जिस अंदाज में पार्टी को चुनाव लड़ाया वह कमाल का था। प्रबंधन की तमाम कमियों के बावजूद गहलोत ने भाजपा को बराबरी की टक्कर दी। तभी कांग्रेस को उम्मीद बंधी है कि लोकसभा चुनाव में गहलोत कांग्रेस को अच्छी खासी सीटें दिला सकते हैं।
सो, उनकी भूमिका कम नहीं की गई है। ध्यान रहे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों जगह नेतृत्व बदल दिया गया लेकिन राजस्थान में बदलाव नहीं हुआ है। उलटे सचिन पायलट को राज्य की राजनीति से दूर छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया है। वे महासचिव हो गए हैं। जाहिर है कि वे प्रदेश अध्यक्ष या विधायक दल के नेता नहीं बनेंगे। वहां अभी गहलोत के हिसाब से राजनीति होने की संभावना है। इस बीच कांग्रेस ने पांच लोगों की नेशनल एलायंस कमेटी बनाई तो उसमें गहलोत को भी रखा। पांच लोगों की सूची में वरिष्ठता के हिसाब से सबसे ऊपर उनका नाम है। इस कमेटी की एक बैठक हो गई है और दूसरी बैठक से पहले गहलोत मुंबई गए, जहां उनकी मुलाकात मिलिंद देवड़ा से हुई। गौरतलब है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी राष्ट्रीय टीम में देवड़ा को संयुक्त कोषाध्यक्ष बनाया है। लंबे समय से उनके कोषाध्यक्ष बनने की चर्चा होती रही है। गहलोत का उनसे मुंबई जाकर मिलना बहुत अहम है। निश्चित रूप से संसाधनों के बंदोबस्त में भी गहलोत की भूमिका रहने वाली है।