सीएए और हिंदुओं के लिए सीमा बंद!

सीएए और हिंदुओं के लिए सीमा बंद!

भारत सरकार, भारतीय जनता पार्टी और दक्षिणपंथी विचारकों के साथ साथ बड़ी संख्या में उदार व लोकतांत्रिक लोगों ने भी नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए का समर्थन किया था। सरकार ने कानून में संशोधन करके यह प्रावधान किया था कि अगर पड़ोसी देशों से प्रताड़ित होकर कोई भी हिंदू या गैर मुस्लिम नागरिक भारत आता है तो उसे भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस कानून में तो एक समय सीमा तय की गई कि इस अवधि से पहले आने वालों को यह सुविधा मिलेगी। लेकिन उस अवधि से ज्यादा इस कानून के पीछे की मंशा को समझने की जरुरत है। वह मंशा अच्छी है कि हिंदू, सिख, बौद्ध आदि अगर धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आते हैं तो उनको नागरिकता दी जाएगी। इसके नियम बनाने में देरी हुई लेकिन अब इसे लागू कर दिया गया है।

सोचें, एक तरफ हिंदुओं को यह संदेश दिया गया कि भारत सरकार उनका ख्याल रख रही हौ और इसलिए सीएए लाया गया है लेकिन दूसरी ओर बांग्लादेश में जब हिंदू प्रताड़ित होने लगे और वहां से भागने लगे तो भारत ने अपनी सीमाएं ऐसे सील कर दीं, ताकि परिंदा भी पर नहीं मार सके। ऐसे में सीएए का क्या मतलब रह गया? आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि हिंदू प्रत्यक्ष धार्मिक प्रताड़ना झेल रहे थे और भारत सरकार उनको अपनी सीमा में घुसने से रोक रही थी। आजादी के बाद की विभीषिका में 1947 में सीमा खुली थी और 1971 में भी सीमा पार करके बड़ी संख्या में हिंदू भारत आए। लेकिन 2024 में सीमा बंद कर दी गई। शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद बड़ी संख्या में हिंदुओं पर हमले हुए। धार्मिक स्थल तोड़े गए। संपत्ति लूटी गई। और बड़ी संख्या में हिंदू भारत की सीमा पर आकर खडे हुए लेकिन सरकार ने सीमा सील कर दी। सीमा पर तैनात अर्धसैनिक बलों ने हिंदुओं को मौत के मुंह में वापस धकेल दिया। हो सकता है कि सामरिक या कूटनीतिक नजरिए से यह फैसला सही हो लेकिन मानवीय दृष्टिकोण से और यहां तक कि राजनीतिक नजरिए से भी यह उचित फैसला नहीं है।

ममता का संकट, कांग्रेस का इको सिस्टम

तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चौतरफा हमले का शिकार हुई हैं। कोलकाता में जूनियर डॉक्टर के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना के बाद एक तरफ भाजपा ने उनकी सरकार को निशाना बनाया है तो दूसरी ओर अदालत ने बहुत सख्त रुख अख्तियार किया और मामले की जांच सीबीआई को सौंपी। यह तब हुआ, जबकि पश्चिम बंगाल पुलिस इस कांड के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर चुकी है। बहरहाल, भाजपा और अदालत के अलावा कांग्रेस और उसका इको सिस्टम भी ममता की सरकार को अटैक कर रहा है। यह यह विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अंदर चल रही लार्जर पोलिटिक्स का हिस्सा लगता है। आखिर ममता बनर्जी भी कुछ दूसरी विपक्षी पार्टियों के साथ तालमेल करके कांग्रेस को निशाना बनाती हैं। उन्होंने विपक्षी गठबंधन के अंदर एक दबाव समूह बना रखा है, जिसमें तीन या चार पार्टियां शामिल हैं। उन पार्टियों ने ममता के प्रति नरमी दिखाई है।

परंतु कांग्रेस और सोशल मीडिया का उसका इको सिस्टम खून का प्यासा हो रहा है। यह बताने के बावजूद कि पश्चिम बंगाल पुलिस ने दूसरे ही दिन घटना के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया और खुद ममता बनर्जी पीड़िता के परिजनों से मिलीं, कांग्रेस उनकी सरकार के खिलाफ मुखर है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ममता बनर्जी का तो नाम नहीं लिया लेकिन अस्पताल और स्थानीय प्रशासन पर तीखा हमला किया। इस पर ममता बनर्जी की पार्टी ने नाराजगी जताई। उनकी पार्टी के नेता और प्रवक्ता कुणाल घोष ने राहुल गांधी को बोलने से पहले फैक्ट चेक करने की सलाह दी।

इस मामले में सबसे दिलचस्प लड़ाई सोशल मीडिया में चल रही है। कांग्रेस के इको सिस्टम को सपोर्ट करने वाले तमाम यू ट्यूबर्स और इन्फ्यूएंसर्स ममता बनर्जी की सरकार के और खास कर महुआ मोइत्रा के पीछे पड़े हैं। महुआ से कहा जा रहा है कि वे कोलकाता की घटना पर बयान दें। उनकी फायरब्रांड इमेज को चैलेंज किया जा रहा है और बदले में वे सोशल मीडिया में लोगों को ब्लॉक कर रही हैं। यह भी लार्जर पोलिटिक्स का हिस्सा दिख रहा है। इससे एक साथ तीन दांव सध रहे हैं। पहला, कांग्रेस को कमजोर करने की ममता बनर्जी की राजनीति को महिला सुरक्षा से जुड़े एक अहम मुद्दे पर निशाना बनाया जा रहा है। दूसरा, लोकसभा में ममता बनर्जी की फायरब्रांड सांसद महुआ मोइत्रा की इमेज को कमजोर किया जा रहा है। इस घटना के बाद वे पहले वाले अंदाज के बाद लोकतंत्र, संविधान या महिला सुरक्षा के मुद्दे पर स्टैंड नहीं ले पाएंगी। ध्यान रहे लोकसभा की कार्यवाही में उन पर बहुत ज्यादा फोकस बन जाता था। और तीसरा, तमाम यू ट्यूबर्स और इन्फ्लूएंसर्स जिनकी छवि सिर्फ भाजपा और नरेंद्र मोदी को अटैक करने की थी, उनकी छवि सुधर रही है। वे दिखा रहे हैं कि वे सिर्फ भाजपा या मोदी विरोधी नहीं हैं, बल्कि विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों की गड़बड़ी का भी विरोध करते हैं।

आप और कांग्रेस में अंदरखाने तालमेल

राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का तालमेल खत्म हो गया है। लोकसभा चुनाव दोनों ने साथ मिल कर लड़ा था लेकिन उसके तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप ने तालमेल खत्म करने का ऐलान किया और साथ ही हरियाणा की सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। लेकिन ऐसा लग रहा है कि दोनों पार्टियों के बीच अंदरखाने तालमेल बना हुआ है। यह अंदरखाने का तालमेल किसी रणनीतिक गठबंधन में बदलेगा या नहीं यह अभी नहीं कहा जा सकता है। वह अगले साल होने वाले चुनाव के लिए टिकट बंटवारे के समय ही पता चलेगा। लेकिन कम से कम अभी दोनों पार्टियां एक दूसरे के प्रति सद्भाव दिखा रखी हैं।

जानकार सूत्रों का कहना है कि पार्टी की प्रदेश ईकाई के सभी नेताओं को निर्देश है कि वे आम आदमी पार्टी को एक सीमा से ज्यादा निशाना न बनाएं। दिल्ली के पिछले प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी ने आप के खिलाफ जिस तरह मोर्चा खोला था वैसा मोर्चा नए अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने नहीं खोला है। वे और उनकी टीम जब भी हमला करते हैं तो भाजपा के साथ साथ आप को निशाना बनाते हैं। अकेले आप को अटैक नहीं करते हैं। केंद्र और राज्य सरकार को साथ साथ कठघरे में खड़ा किया जाता है। जिस तरह से भाजपा का हमला आप पर होता है वैसा कांग्रेस का नहीं होता है। बदले में आम आदमी पार्टी के नेता भी कांग्रेस को निशाना नहीं बनाते हैं। उलटे बड़े राजनीतिक मसलों पर आम आदमी पार्टी का साथ कांग्रेस को मिलता है। संसद में तो पार्टी के नेता संजय सिंह पूरी तरह से कांग्रेस की बनाई रणनीति के हिसाब से काम करते हैं।

भारतीय रेलवे की हकीकत

इन दिनों भारतीय रेलवे को लेकर लगभग हर दिन कहीं न कहीं से दुर्घटना की खबर आ रही है। अगर यात्री ट्रेन की दुर्घटना नहीं हो रही है तो कहीं न कहीं से मालगाड़ी पटरी से उतरने की खबर आ जा रही है। दुर्घटना के आंकड़े हर दिन बढ़ रहे हैं। इसमें संदेह नहीं है कि घटनाएं बढ़ी हैं लेकिन ट्रेन की पटरी टूटने या डब्बे पटरी से उतरने की घटनाओं को एक नैरेटिव निर्माण के तौर पर पेश किया जा रहा है। लेकिन इससे एक दूसरी हकीकत छिप जा रही है। यात्रियों के लिहाज से रेलवे की स्थिति ठीक नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक समय कहा था कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज से चलेगा लेकिन हकीकत यह है कि अब सूट बूट वालों के लिए भी हवाई यात्रा मुश्किल हो गई है और दूसरी ओर आम लोगों की सवारी यानी भारतीय ट्रेन में लगातार यात्री ट्रेनों की संख्या घट रही है और यात्रियों की संख्या भी कम हो रही है।

चूंकि अब रेल बजट अलग से पेश नहीं होता है और बजट में भी उसका जिक्र सिर्फ चलते चलते होता है इसलिए लोगों को पता नहीं चल पाता है कि 2014 के मुकाबले अब कम यात्री ट्रेनें चलती हैं। सोचें, 10 साल में यात्रियों की संख्या कितनी बढ़ गई फिर भी यात्री ट्रेनें कम हो गईं और उसी अनुपात में यात्रियों की संख्या भी कम हो गई। अब ट्रेनों में 2014 के मुकाबले कम यात्री सफर करते हैं। रेल मंत्रालय ने स्लीपर और सामान्य वर्ग के डिब्बों की संख्या बहुत कम कर दी है और एसी डिब्बों की संख्या बढ़ा दी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक किराया पहले के मुकाबले 108 फीसदी महंगा हुआ है और इसके बावजूद रेलवे का परिचालन अनुपात 2014 के मुकाबले बिगड़ गया है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया है कि 2018-19 में रेलवे का परिचालन अनुपात 97.30 रुपए या यानी सौ रुपए कमाने के लिए रेलवे को 97.30 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। वैष्णव के मुताबिक कोरोना के समय यह अनुपात और बिगड़ गया, जो अभी 98.10 रुपए है। यानी रेलवे को एक सौ रुपए कमाने के लिए 98.10 रुपए खर्च करने पड़ते हैं।

खेलों में ऐसी दुर्दशा क्यों है

भारत की ओलंपिक टीम छह पदक के साथ पेरिस से लौटी है, जिसमें एक रजत पदक है और पांच कांस्य पदक हैं। भारत कोई स्वर्ण पदक नहीं जीत सका। इसलिए वह छह पदक के बावजूद पदक तालिका में 71वें स्थान पर रहा। दूसरी ओर पाकिस्तान के अरशद नदीम ने भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीत लिया है, जो उसका इकलौता पदक है फिर भी वह पदक तालिका में भारत से ऊपर है। भारत ने पिछली बार से एक पदक कम जीता और नीरज चोपड़ा इकलौते खिलाड़ी रहे, जिन्होंने दूसरी बार पदक जीता। बाकी सब पदक जीतने वाले नए खिलाड़ी हैँ। यह भी भारत में होता है कि अपवाद के तौर पर ही कोई खिलाड़ी लगातार दो बार पदक जीतता है, जिससे यह यकीन बनता है कि भारत में प्रतिभा से ज्यादा संयोग से खिलाड़ियों को पदक मिल जाता है।

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त को लाल किले से भाषण दे रहे थे तो उन्होंने कहा कि भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बनेगा। अभी वह पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है और कुछ समय पहले सातवें और उससे पहले 10वें स्थान पर था। लेकिन ओलंपिक की पदक तालिका में इस अनुपात में भारत की जगह नहीं बनती है। ध्यान रहे पेरिस ओलंपिक में दुनिया की छह शीर्ष अर्थव्यवस्था वाले देशों को पदक तालिका में शीर्ष 10 में स्थान मिला है। अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तो पदक तालिका में नंबर एक पर है और चीन दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तो वह दूसरे स्थान पर है। इसी तरह जर्मनी, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस को भी टॉप टेन में जगह मिली है। दूसरी ओर भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है और पदक तालिका में 71वें स्थान पर है। अगर स्वर्ण पदक को हटा दें तो कुल पदकों की संख्या के लिहाज से भारत 37वें स्थान पर है। उसकी अर्थव्यवस्था के आकार के लिहाज से यह भी बहुत खराब है लेकिन प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से कुछ बेहतर है। क्या तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाने के बाद इसमें कोई बदलाव आएगा?

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