विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ (INDIA) चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव (Chandigarh Mayor Election) में पहली जीत मिली। हालांकि वह जीत बड़ी मशक्कत के बाद और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद मिली। लेकिन यह मामूली बात नहीं है कि कांग्रेस (Congress) और आम आदमी पार्टी (AAP) ने सात साल के बाद चंडीगढ़ के मेयर का पद भाजपा से छीन लिया। यह जीत इसलिए अहम है क्योंकि विपक्ष से इसे छीनने के लिए भाजपा ने सारे हथकंडे अपनाए थे। स्पष्ट धांधली करके जीतने के बाद भाजपा नेताओं ने विपक्षी गठबंधन पर हमला किया था और कहा था कि गठबंधन एक होकर भी भाजपा को नहीं हरा सकता है क्योंकि उनकी न तो गणित अच्छी है और न केमिस्ट्री। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के आदेश के बाद विपक्षी गठबंधन की गणित और केमिस्ट्री दोनों दिखी है।
राज्यसभा चुनाव में भाजपा का बड़ा जोखिम
चंडीगढ़ के बाद दूसरी चुनावी जीत कर्नाटक में मिली है, जहां कांग्रेस ने भाजपा और जेडीएस के साझा उम्मीदवार को शिक्षक क्षेत्र के एमएलसी चुनाव में हरा दिया। वह चुनाव भी बहुत प्रतिष्ठा का चुनाव था। तीन बार जेडीएस से और एक बार भाजपा से एमएलसी रहे पी पुटन्ना से शिक्षकों के लिए आरक्षित एमएलसी की सीट से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस ने पी पुटन्ना को ही उम्मीदवार बनाया, जबकि भाजपा ने यह सीट गठबंधन की सहयोगी जेडीएस (JDS-BJP alliance) के लिए छोड़ दी। यह दोनों पार्टियों के लिए परीक्षा की तरह का चुनाव था क्योंकि साथ आने के बाद दोनों पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। जेडीएस ने एपी रंगनाथ को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन दोनों पार्टियों के तमाम प्रयास के बावजूद कांग्रेस के पी पुटन्ना (P Puttanna) चुनाव जीत गए। लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और जेडीएस के लिए यह बड़ा झटका है। यह सही है कि पुटन्ना का अपना आधार है लेकिन इसके बावजूद इसे डीके शिवकुमारके प्रबंधन की जीत बताया जा रहा है।