राष्ट्रीय लोकदल के विपक्षी गठबंधन से बाहर होने के बाद कांग्रेस पार्टी की मोलभाव करने की क्षमता बढ़ गई है। अब समाजवादी पार्टी अकेले है। उसके सारे गठबंधन सहयोगी साथ छोड़ कर जा चुके। पिछले लोकसभा में साथ रही बसपा तो तुरंत ही अलग हो गई थी। पिछले साल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर अलग हुए और भाजपा के साथ चले गए। संजय निषाद की निषाद पार्टी पहले ही साथ छोड़ चुकी थी। और अब जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल भी अलग हो गई है। सो, ले-देकर समाजवादी पार्टी के पास बस कांग्रेस पार्टी बची है, जिसके साथ सीटों के बंटवारे की बातचीत चल रही है।
समाजवादी पार्टी ने पहले कांग्रेस के लिए अपनी ओर से 11 सीटें छोड़ी थी। लेकिन अब कांग्रेस 20 सीटों की मांग कर रही है। सपा ने कांग्रेस से भी पहले रालोद को सात सीट दी थी, जबकि पार्टी दो और सीटों की मांग कर रही थी। जब रालोद साथ थी तो कांग्रेस के 15 सीटों पर राजी होने की संभावना जताई जा रही थी। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। सो, कांग्रेस 20 सीट मांग रही है और उसमें भी ऐसी सीटें, जहां समीकरण ठीक हो और जीतने की संभावना हो। यानी वह कमजोर या ऐसी सीट नहीं लेना चाहती है, जहां सपा का अपना समीकरण बहुत अच्छा नहीं हो। बताया जा रहा है कि कांग्रेस मुस्लिम और यादव यानी एमवाई समीकरण वाली सीटें या 2009 में जीती अपनी 22 सीटों में से ज्यादातर सीटें मांग रही है। इसे लेकर बातचीत उलझी है। रालोद के हटने के बाद सपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटें ऑफर कर सकती है। अगले कुछ दिन में इस बारे में फैसला होगा।