झारखंड राजनीतिक प्रयोगों की धरती है। भारतीय राजनीति के ज्यादातर प्रयोग उसी राज्य में हुए हैं। पूरे देश में नीतीश कुमार के गठबंधन बदल को लेकर चर्चा हो रही है लेकिन शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कितनी बार कांग्रेस, भाजपा के साथ सरकार बनाई है यह चर्चा नहीं होती है। झारखंड में ही निर्दलीय मुख्यमंत्री बना और पद पर रहते मुख्यमंत्री के विधानसभा का उपचुनाव हारने का भी रिकॉर्ड बना। मुख्यमंत्री के घर पर बिना समन की छापेमारी का भी अभी रिकॉर्ड बना है और हेमंत सोरेन पहले मुख्यमंत्री बने हैं, जो ईडी के अधिकारियों के साथ इस्तीफा देने राजभवन गए। अब प्रदेश में एक नया प्रयोग हुआ है या यूं कहें कि नई परंपरा शुरू हुई है।
बाल ठाकरे के नेतृत्व वाले शिव सेना के शुरुआती दिनों को अपवाद मान लें तो झारखंड मुक्ति मोर्चा पहली प्रादेशिक पार्टी बनी है, जिसने परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया है। आज तक किसी प्रादेशिक पार्टी ने किसी भी स्थिति में परिवार से बाहर के किसी नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया है। झारखंड में ईडी के दबाव में हेमंत सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा तो उन्होंने मजबूरी में ही सही लेकिन पार्टी के सबसे पुराने नेताओं में से एक चम्पई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया। ऐसा नहीं है कि उनके परिवार में मुख्यमंत्री बनने योग्य लोग नहीं हैं। उनकी भाभी सीता सोरेन तीन बार से विधायक हैं और छोटे भाई बसंत सोरेन भी विधायक हैं। लेकिन हेमंत ने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम बनाने का प्रयास किया, जो विधायक नहीं हैं। उनके लिए एक सीट भी खाली कराई गई थी लेकिन पार्टी और परिवार में विरोध को देखते हुए और राज्यपाल द्वारा शपथ दिलाने से मना करने की संभावना को भांप कर हेमंत ने चम्पई सोरेन को मुख्यमंत्री बनवाया है।
इससे पहले झारखंड जैसी स्थिति बिहार में पैदा हुई थी। चारा घोटाले से जुड़े मुकदमे में 1997 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के जेल जाने की नौबत आई तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवाया। वे पढ़ी लिखी नहीं थीं और विधायक भी नहीं थीं। लेकिन लालू की पार्टी को पूर्ण बहुमत था और वे एकछत्र नेता था। इसके अलावा जितनी भी प्रादेशिक और परिवारवादी पार्टियां हैं उनमें कभी भी किसी बाहरी नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। बाल ठाकरे ने जरूर पहले मनोहर जोशी और नारायण राणे को सीएम बनवाया था और रिमोट कंट्रोल से उनको चलाने की बात भी कहते थे लेकिन बाद में उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने खुद ही मुख्यमंत्री बनना सही समझा।
बाकी पूरे देश में प्रादेशिक पार्टियों के नेता किसी पर भरोसा नहीं करते हैं। कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा ने अपने बेटे एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया तो तमिलनाडु में करुणानिधि के बेटे एमके स्टालिन सीएम बने। हरियाणा में देवीलाल के बाद ओमप्रकाश चौटाला बने तो उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के बाद अखिलेश यादव, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर रेड्डी के बेटे जगन मोहन व एनटीआर के दामाद चंद्रबाबू नायडू और जम्मू कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला व मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती सीएम बनीं। कह सकते हैं कि इन सबके सामने हेमंत सोरेन जैसा संकट नहीं था। संकट काल में ही सही लेकिन झारखंड में एक परंपरा शुरू हुई है। अगर इसका विस्तार होगा तो वह लोकतंत्र के लिए बेहतर होगा।