भारत रत्न से नेहरू परिवार के विरोध की राजनीति

भारत रत्न से नेहरू परिवार के विरोध की राजनीति

भारत रत्न या दूसरे नागरिक पुरस्कार पहले भी राजनीतिक मकसद के लिए इस्तेमाल होते रहे हैं। इसलिए अब हो रहे हैं तो कोई हैरानी की बात नहीं है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका इस्तेमाल ज्यादा बेहतर रणनीति के साथ किया है। वे भावना में बह कर अपने लोगों को या हिंदुत्व के विचारधारा वालों को भारत रत्न नहीं बांट रहे हैं। उन्होंने हिंदुत्व से बाहर वोट की राजनीति को ध्यान में रखा और कांग्रेस विरोध की राजनीति को इसके केंद्र में रखा। हिंदुत्व के आईकॉन या भाजपा के नेता के तौर पर तो मोदी ने सिर्फ तीन लोगों- अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और नानाजी देशमुख को भारत रत्न दिया। लेकिन पांच ऐसे लोगों को दिया, जो कांग्रेस में रहे हैं या समाजवादी राजनीति के पुरोधा रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने 10 में से सिर्फ दो ही भारत रत्न अराजनीतिक हस्तियों को दिया।

बहरहाल, मोदी ने मदन मोहन मालवीय से शुरुआत की थी। वे कांग्रेस में रहे थे लेकिन नेहरू विरोधी खेमे में थे। इसके बाद मोदी ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न दिया और वे भी नेहरू-गांधी परिवार के पसंदीदा नहीं रहे थे। तीसरा भारत रत्न पीवी नरसिंह राव को दिया, जिनके साथ सोनिया गांधी के परिवार का कैसा संबंध था यह सब जानते हैं। सो, इस तरह से तीन ऐसे नेता चुने गए, जिनका योगदान तो बड़ा था लेकिन साथ ही परिवार के साथ जिनके संबंध अच्छे नहीं थे। इसी तरह कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह दोनों घनघोर कांग्रेस विरोध के लिए जाने जाते हैं। सबको पता है कि 1977 की हार के बाद ज्यादातर लोग इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के पक्ष में नहीं थे लेकिन चौधरी चरण सिंह के दबाव की वजह से सरकार ने उनक गिरफ्तार किया था। हालांकि बाद में चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से ही प्रधानमंत्री बने थे लेकिन बहुमत साबित करने से पहले ही कांग्रेस ने समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी थी।

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