कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पहली बार कोई संवैधानिक पद मिला है। लोकसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता के नाते वे निचले सदन में नेता प्रतिपक्ष होंगे और उनको कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलेगा। यह पद उनको राजनीति शुरू करने और सांसद बनने के 20 साल बाद मिला है, जबकि उनकी मां सोनिया गांधी राजनीति में आने के दो साल के भीतर ही नेता विपक्ष हो गई थीं। सोनिया गांधी ने 1997-98 में राजनीति में आईं। आते ही कांग्रेस अध्यक्ष बनीं और 1999 में लोकसभा में नेता विपक्ष बन गईं। वे पांच साल तक यानी 2004 में कांग्रेस की सरकार बननवे तक नेता विपक्ष रहीं। इसके उलट राहुल गांधी 2004 में सक्रिय राजनीति में आए और 20 साल बाद नेता विपक्ष बने हैं। उनको कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए भी 13 साल इंतजार करना पड़ा था, जबकि उनकी मां ने कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर ही पारी शुरू की थी। राजीव गांधी भी 1981 में सांसद बन कर राजनीति में उतरे थे और उसके तीन साल बाद ही देश के प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष दोनों बन गए थे। इंदिरा गांधी भी 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष बन गए थीं, भले सांसद बनने के लिए उनको इंतजार करना पड़ा था।
राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद कई तरह के टोटकों की बात भी होने लगी है। राहुल अपने परिवार के तीसरे व्यक्ति हैं, जो नेता प्रतिपक्ष बने हैं। इससे पहले 1989-90 में राजीव गांधी लोकसभा में नेता विपक्ष बने थे और फिर वे प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। इसी तरह सोनिया गांधी 1999-2004 में नेता विपक्ष रहीं और वे भी प्रधानमंत्री नहीं बन पाईं। अब राहुल गांधी नेता विपक्ष बने हैं। एक तुलना इंदिरा गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की भी हो रही है। इंदिरा गांधी ने संगठन से शुरुआत की थी। वे पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष 1959 में बनी थीं और अपने पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जब वे लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में मंत्री बनीं तब 1964 में वे राज्यसभा सदस्य बनी थीं। इसी तरह प्रियंका ने पार्टी के महासचिव के तौर पर शुरुआत की और उसके कई साल बाद अब सांसद बन रही हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि जिस तरह से राहुल को हर पद लंबे इंतजार के बाद मिला है वैसे प्रधानमंत्री का पद मिलता है या नहीं?