विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय ने कमाल की बात कही है। अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इस कार्यक्रम में आमंत्रितों के बारे में पूछे गए एक सवाल पर उन्होंने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का इस अवसर पर मौजूद होना अनिवार्य है, लेकिन उनको आना नहीं चाहिए। सोचें, जब दोनों का इस बड़े अवसर पर मौजूद होना अनिवार्य है तो उनको आना क्यों नहीं चाहिए? चम्पत राय ने दोनों की उम्र और सेहत का हवाला दिया। उन्होंने उलटे पत्रकार से पूछा कि आपको पता है आडवाणी जी की उम्र कितनी है और तंज भी किया कि आप उनकी उम्र तक पहुंच भी पाएंगे। सोचिए, कितनी चिंता है चम्पत राय जी को लालकृष्ण आडवाणी की!
लेकिन डॉ. मुरली मनोहर जोशी का क्या? खुद राय ने बताया कि डॉक्टर जोशी आना चाहते हैं। यहां एक बात और जुड़ गई। उनका होना अनिवार्य है और वे आना भी चाहते हैं लेकिन आयोजक चाहते हैं कि वे नहीं आएं। इसका क्या मतलब है? आडवाणी के मुकाबले जोशी शारीरिक रूप से ज्यादा फिट हैं और अब भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। सोमवार को अंग्रेजी के एक बड़े अखबार के पेज तीन पर उनकी फोटो छपी थी। वे दिल्ली में सबसे मशहूर और लोकप्रिय क्रिसमस लंच में हिस्सा लेने गए थे। पीआर गुरु दिलीप चेरियन और उनकी पत्नी देवी चेरियन हर साल क्रिसमस लंच का आयोजन करते हैं, जिसमें दिल्ली की मशहूर हस्तियां शामिल होती हैं। शनिवार, 16 दिसंबर को हुए इस लंच में डॉक्टर जोशी हिस्सा लेने गए थे। लेकिन चम्पत राय चाहते हैं कि डॉक्टर जोशी 22 जनवरी को अयोध्या न आएं।
अयोध्या में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर देश भर के तमाम साधु संत और शंकराचार्यों के साथ अडानी, अंबानी और बच्चन, रजनीकांत सहित उद्योग व फिल्म जगत की हस्तियों को बुलाया गया गया है। इनमें से अनेक लोगों की उम्र 80 साल से ऊपर है, कई लोग दिव्यांग हैं और कई लोग शारीरिक रूप से अशक्त भी हैं। कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य की उम्र 88 साल है और अमिताभ बच्चन भी 82 साल के हैं। लेकिन इनमें से किसी को नहीं रोका जा रहा है। उलटे सबसे के लिए व्यवस्था बनाई जा रही है ताकि वे अयोध्या के कार्यक्रम में पहुंचे तो उन्हें दिक्कत न हो। रोकना सिर्फ आडवाणी और जोशी को है।
सवाल है कि क्यों आडवाणी और जोशी को रोकना है? हिंदू परम्परा में तो किसी भी धार्मिक या पारिवारिक आयोजन में परिवार के बुजुर्ग को सबसे आगे रखा जाता है। पूरी तरह से अशक्त बुजुर्ग को आयोजनों में आगे बैठाया जाता है। उनके लिए खास व्यवस्था की जाती है। हिंदू परिवारों में मरणासन्न दादा-दादी की इच्छा पूरी करने के लिए पोते-पोतियों की शादी की जाती है ताकि बुजुर्ग उसे देख सकें। यहां चम्पत राय उलटी गंगा बहा रहे हैं। यह कौन सी हिंदू परंपरा है कि बुजुर्ग को इतने बड़े आयोजन में आने से रोका जा रहा है? चम्पत राय चाहते हैं कि ऐसे बुजुर्ग, जिन्होंने अयोध्या में रामलला को विराजमान कराने के लिए आंदोलन चलाया, वे रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में न शामिल हों। क्या इसका कारण यह है कि अगर आडवाणी और जोशी वहां मौजूद रहेंगे तो उनके योगदान की चर्चा होगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योगदान की चर्चा उससे ढक जाएगी? पूरा श्रेय एक व्यक्ति को मिले इसलिए बाकी लोगों को रोका जा रहा है?