सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति यानी एससी और अनुसूचित जनजाति यानी एसटी के आरक्षण के बंटवारे का जो फैसला सुनाया है उसका सामाजिक असर कितना होगा यह अभी नहीं कहा जा सकता है लेकिन यह तय है कि इसका बड़ा राजनीतिक असर होने जा रहा है। एससी और एसटी समूहों की ओर से 21 अगस्त को भारत बंद का आह्वान किया गया है। तब तक सोशल मीडिया में उबाल आया हुआ है। इसके बावजूद अभी तक सड़क पर कोई बड़ा प्रतिरोध देखने को नहीं मिला है। कारण यह है कि देश की दो सबसे बड़ी पार्टियां इसके पक्ष में हैं। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ने आधिकारिक रूप से चुप्पी साध रखी है लेकिन ये दोनों पार्टियां चाहती हैं कि एससी और एसटी के आरक्षण का बंटवारा हो ताकि इन दोनों समुदायों के अंदर भी जो सबसे पिछड़े और वंचित हैं उनको आरक्षण का लाभ मिले।
रणनीतिक रूप से दोनों पार्टियों ने चुप्पी साधी है। जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने प्रवक्ताओं को निर्देश दिया है कि वे इस पर कुछ नहीं बोलें। मीडिया में चल रही बहस में भी उनको शामिल होने से रोका गया है। लेकिन दोनों को अपने स्टैंड के बारे में बताने की जरुरत नहीं है। बिना बताए दोनों का रुख स्पष्ट है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल तेलंगाना विधानसभा चुनाव के प्रचार में एससी के आरक्षण के बंटवारे का समर्थन किया था। एससी के अंदर अलग से मडिगा जाति के आरक्षण का आंदोलन चलाने वाले एमआरपीएस के नेता एम कृष्णा मडिगा तेलंगाना में नरेंद्र मोदी की सभा में उनके मंच पर गए थे और वहां मोदी के गले लग कर रोए थे। तब मोदी ने मंच से ऐलान किया था कि वे मडिगा को अलग से आरक्षण दिलाने पर विचार के लिए एक कमेटी बनाएंगे। दिल्ली लौटने के बाद उन्होंने कमेटी का गठन भी किया। इससे अपने आप भाजपा का स्टैंड स्पष्ट है कि वह आरक्षण के भीतर आरक्षण के समर्थन में है।
इसी तरह कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को भी अलग से कुछ कहने की जरुरत नहीं है क्योंकि उसके राज्यों के नेता इसका समर्थन करने लगे हैं। जिस दिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया उसी दिन सबसे पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा कि उनकी सरकार सबसे पहले इस फैसले को लागू करेगी। रेवंत रेड्डी के इस बयान के बाद दिल्ली में कुछ नेताओं ने नाराजगी भी जताई। उनका कहना था कि मामले को ठंडा होने देना चाहिए था। लेकिन रेवंत रेड्डी ने कांग्रेस का स्टैंड साफ कर दिया। अब चूंकि दोनों बड़ी पार्टियां सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मौन समर्थन में हैं और प्रादेशिक पार्टियों में भी समाजवादी पार्टी या तृणमूल कांग्रेस आदि को इसमें परेशानी नहीं है तो उससे ऐसा लग रहा है कि यह मामला ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा। बहुजन समाज पार्टी या राजद जैसी विपक्षी पार्टियां जरूर फैसले का विरोध कर रही हैं लेकिन उनका ज्यादा असर नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर होगी लेकिन लगता नहीं है कि उससे कोई बदलाव आएगा। तभी तमाम कथित दलित विचारक अब यह मांग करने लगे हैं कि अगर आरक्षण के बंटवारे का फैसला करना ही है तो वह संसद से हो, सुप्रीम कोर्ट से नहीं। लेकिन उनको पता नहीं है कि सरकार ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर फैसला सुप्रीम कोर्ट से ही करा रही है।