पांच साल में चार राज्यों- बिहार, जम्मू कश्मीर, गोवा और मेघालय के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने बड़ी हिम्मत का काम किया। वे राज्यपाल रहते लगातार किसानों के हित में और करप्शन के मामले में पर बोलते रहे थे। वे केंद्र सरकार को निशाना बनाते रहे थे। लेकिन अब उन्होंने सबसे बड़ा हमला किया। ‘द वायर’ के वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को दिए इंटरव्यू में उन्होंने पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले को लेकर कई खुलासे किए और भ्रष्टाचार के मसले पर कहा कि प्रधानमंत्री को करप्शन से नफरत नहीं है। इस इंटरव्यू से पहले एक दूसरे इंटरव्यू में मलिक ने आरोप लगाया था कि राम माधव ने अंबानी की एक कंपनी से जुड़ी फाइल की मंजूरी के लिए तीन सौ करोड़ रुपए की रिश्वत का प्रस्ताव दिया था। इस पर माधव ने उनको मानहानि का कानूनी नोटिस भेजा है।
मलिक के बयान पर कांग्रेस और दूसरी भाजपा विरोधी पार्टियां, नेता और सामाजिक कार्यकर्ता, कुछ पत्रकार भी काफी उत्साहित हैं। उनका कहना है कि जिस समय पुलवामा का हमला हुआ उस समय मलिक जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे और उन्होंने घटनाओं को करीब से देखा है इसलिए उनकी बात पर यकीन करना चाहिए। उन्होंने कहा है कि घटना के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे जिम कॉर्बेट पार्क के बाहर से बात की थी और जब मलिक ने कहा कि यह घटना हमलोगों की गलती से हुई है तो प्रधानमंत्री ने उनको चुप रहने को कहा।
सोचें, इतनी बड़ी घटना पर उस समय सत्यपाल मलिक चुप रह गए थे और अब वे ऐसी बातें बता रहे हैं, जो लोग पहले से जानते हैं। जिस समय घटना हुई थी उसी समय खबर आई थी कि जवानों को ले जाने के लिए एयरक्राफ्ट मांगा गया था, लेकिन सरकार ने नहीं दिया। खुफिया विफलता और सीआरपीएफ के काफिले की लंबाई को लेकर तब भी सवाल उठे थे। आरडीएक्स कैसे पहुंचा और उससे भरी गाड़ी काफिले में कैसे शामिल हुई यह सवाल भी उठा था। सो, इसमें मलिक कुछ भी नया नहीं कह रहे हैं।
उनके पास कोई दस्तावेजी सबूत हो और बाद में उसे पेश करें तो अलग बात है लेकिन अभी हकीकत यह है कि वीपी सिंह बनने का मौका वे गंवा चुके हैं। अगर उन्होंने फरवरी 2019 में सामने आकर कहा होता कि प्रधानमंत्री ने उनको चुप रहने को कहा है तो संभावना थी कि उनकी बात सुनी जाती। वीपी सिंह ने राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा देकर बोफोर्स का मुद्दा उठाया था। चार मंत्रालयों में तबादले के बाद कार्यकाल खत्म होने का इंतजार नहीं किया था। मलिक का चार राज्यों में तबादला हुआ लेकिन उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। कश्मीर में राज्यपाल रहते नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस ने साझा सरकार की पहल की थी लेकिन कथित तौर पर मलिक के राजभवन की फैक्स मशीन खराब थी, जिसकी वजह से प्रस्ताव उनको नहीं मिला और विधानसभा भंग हो गई। यानी पुलवामा से पहले और बाद में भी केंद्र ने उनको जो कुछ कहा वह वे करते रहे और अब नाखून कटा कर शहीद हो रहे हैं।