घटना कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु की है जहां पर मेट्रो के सुरक्षाकर्मी ने एक बुजुर्ग यात्री को इसलिए ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया क्योंकि उस बुजुर्ग किसान के कपड़े गंदे और पुराने दिखाई दे रहे थे। जब मेट्रो के सुरक्षाकर्मी की इस हरकत पर सह-यात्रियों ने आपत्ति जताई तो वहाँ पर हंगामा खड़ा हो गया और देखते ही देखते इस पूरे प्रकरण का वीडियो वायरल हुआ। मेट्रो सुरक्षाकर्मी की इस ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हरकत ने औपनिवेशिक काल की याद दिला कर फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि भारत के हम लोग ऐसे असंवेदनशील होते हुए कैसे हैं? humanity
अंग्रेजों के शासन के समय भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार के खूब क़िस्से आप सब ने पढ़े और सुने होंगे। परंतु आज के भारत में यदि आपको किसी सरकारी व्यक्ति के दुर्व्यवहार की घटना के बारे में पता चलता है तो आप क्या सोचेंगे? आजाद नागरिक के अधिकारों में ग़ुस्सा आना चाहिए। घटना कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु की है जहां पर मेट्रो के सुरक्षाकर्मी ने एक बुजुर्ग यात्री को इसलिए ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया क्योंकि उस बुजुर्ग किसान के कपड़े गंदे और पुराने दिखाई दे रहे थे।
जब मेट्रो के सुरक्षाकर्मी की इस हरकत पर सह-यात्रियों ने आपत्ति जताई तो वहाँ पर हंगामा खड़ा हो गया और देखते ही देखते इस पूरे प्रकरण का वीडियो वायरल हुआ। मेट्रो सुरक्षाकर्मी की इस ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हरकत ने औपनिवेशिक काल की याद दिला कर फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि भारत के हम लोग इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं?
इक्कीसवीं सदी में क्या कभी किसी ने कल्पना की होगी कि कोई एक इंसान दूसरे के प्रति इतना द्वेष इसलिए रखे क्योंकि वह गरीब है। निर्धन-कमजोरा तबके का है या वो किसी धर्म विशेष या जाति का है या सिर्फ़ इसलिए कि उसके पहनावे से उसके ग़रीब होने का पता पडता है।
एक ओर जब हम बराबरी और सम्मान की बात करते हैं तो हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमारे देश में सिखों के गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा था कि ‘अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बंदे, एक नूर ते सब जग उपजा कौन भले कौन मंदे’। इस वाणी के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह महाराज ने, किसी भी प्राणी में जात भेद को खारिज किया। उन्होंने ऊँच-नीच के भेदभाव को भी समाप्त करने का संदेश दिया। परंतु क्या आज हम ऐसे मानवतापूर्ण संदेशों पर अमल करते हैं? humanity
मामला चाहे एक बुजुर्ग किसान को मेट्रो पर न चढ़ने देना का हो या किसी आदिवासी या निचले तबके की जाति के व्यक्ति के साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार की घटना का हो, हमेशा ही इंसानियत शर्मसार होती है। जब यह पता चलता है कि ऐसा दुर्व्यवहार करने वाला किसी बड़े राजनैतिक दल का एक मामूली सा कार्यकर्ता है तो उस पर राजनीति भी शुरू हो जाती है।
परंतु यहाँ किसी राजनैतिक दल की बात नहीं है बल्कि इंसानों में खो रही इंसानियत की बात है। ऐसा क्यों है कि कुछ लोग पैसे, पद या राजनीति के घमंड में किसी दूसरे को अपने से नीचा देखने लगते हैं? क्या इस संवेदनशील विषय पर उन्हें उनके बड़े-बुजुर्गों ने सही पाठ नहीं पढ़ाया?
क्या ये सही नहीं है कि जब कोई महँगी और आलीशान गाड़ी में चलता है तो सड़क पर पैदल चलने वालों को वो कुछ नहीं समझता? जबकि सड़क जितनी महँगी गाड़ी वालों की है उतनी ही पैदल चलने या सस्ते वाहन के मालिकों की भी है।
सोशल मीडिया में इन दिनों में लगातार बेंगलुरु जैसी घटनाएं याउत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश या देश के किसी भी कोने में ऐसी असंवेदनशील घटनाएँ अक्सर वायरल होती हैं। तब आनन-फ़ानन में कार्यवाही भी हो जाती है। बेंगलुरु में मेट्रो के प्रबंधकों ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए उस सुरक्षाकर्मी को तुरंत प्रभाव से निलंबित कर कर दिया। परंतु सुरक्षाकर्मी हो या किसी भी राजनैतिक दल के कार्यकर्ता, उन्हें आम आदमी से बर्ताव करने के लिए विशेष हिदायत या प्रशिक्षण क्यों नहीं दिये जाते? humanity
अक्सर हमें यह भी सुनने को मिलता है कि एयरलाइंस द्वारा ज़रूरतमंद की व्हीलचेयर की माँग को भी अनदेखा किया जाता है। परंतु जब ऐसे मामले तूल पकड़ते हैं तो सभी चौकन्ना हो जाते हैं। आख़िर हमारी संवेदनाएं इतनी भोथराती हुई क्यों है? भारत भगवान राम और कृष्ण का देश है जिन्होंने शबरी के झूठे बेर और सुदामा के तंदुल स्वीकार कर समाज के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया था।
हर दल के बड़े नेता देश में बराबरी का संदेश ज़रूर देते हैं। यह भी देखा गया है कि अक्सर जब ये नेता किसी नये भवन या सार्वजनिक स्थल का लोकार्पण करते हैं तो उसका निर्माण करने वाले मज़दूरों का सम्मान भी करते हैं। परंतु जब उन्हीं के दल का कोई कार्यकर्ता या छुटभैया नेता सड़क पर या अपने इलाक़े में अपनी दबंगई दिखाता है तो ऐसा लगता है कि बराबरी का संदेश देने की नीयत से नेताओं द्वारा ग़रीबों का सम्मान केवल फ़ोटो खिंचवाने की दृष्टि से ही किया जाता है।
जिस तरह बेंगलुरु में एक बुजुर्ग व ग़रीब किसान के पास टिकट होने के बावजूद उसे ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया गया और वह लाचार हो कर एक कोने में तब तक खड़ा रहा जब तक किसी ने इस बात का विरोध नहीं किया। इससे एक संदेश ज़रूर गया है कि हम जब भी हमारे सामने ऐसी घटना होते हुए देखें तो इसका विरोध अवश्य करें।
लोग विरोध इसलिए नहीं करते क्योंकि कौन फ़ालतू के बवाल में पड़े। परंतु ज़रा सोचिये कि आप यदि किसी काउंटर की लाइन में अपनी बारी आने की प्रतीक्षा में हों और अचानक कोई वीआईपी बन कर बिना लाइन में लगे बिना सीधे ही काउंटर पर चला जाए तो क्या आप इसका विरोध नहीं करेंगे? ठीक उसी तरह, यदि आप किसी के साथ अन्याय होता देखें तो उसका विरोध अवश्य करें वरना बैंगलुरु जैसी घटनाएँ बढ़ती रहेंगी और इंसानियत बार-बार शर्मसार होगी।