श्रीवर्धन के रंगकर्म की ‘सनसनी’

श्रीवर्धन के रंगकर्म की ‘सनसनी’

भोपाल। दो एक साल पहले की बात है। एक दिन दोपहर को फोन आया ”सर मैं श्रीवर्धन त्रिवेदी बोल रहा हूँ, सनसनी वाला। मैं भोपाल आया था। आपसे मिलने आना चाहता हूँ।“ मुझे बहुत अच्छा लगा यह सुनकर। मैंने कहा ”मैं जानता हूँ आपको, अवश्य आइये“ घंटे भर बाद फूलों का गुलदस्ता थामे श्रीवर्धन घर आये। लंबे बालो वाले श्रीवर्धन का चेहरा और आवाज करोड़ों टीवी दर्शकों में जहन में रच बस गया है। मैं भी उनमें से एक हूँ। प्रत्यक्ष रूप से मेरा उनसे परिचय नहीं था लेकिन जिस आत्मीय भाव से वे मुझसे मिलने आये थे, उसने मुझे भाव विभोर कर दिया था।

उस दिन हम लोग दो-तीन घंटा बैठे बतियाते रहे। बातचीत रंगमंच पर हो रही थी लेकिन उसके केन्द्र में श्रीवर्धन की रंगयात्रा थी कि किस तरह एनएसडी से शुरू होकर उनकी यात्रा सनसनी तक पहुंची और कैसे सनयनी का सफर निरंतर जारी है। हिन्दी रंगमंच में यह पहला प्रयोग है जब कोई एक्टर एनएसडी से निकलकर थियेटर, टीवी और फिल्में करते-करते किसी न्यूज चैनल के किसी क्राइम शो की एकरिंग करते हुए इतनी बड़ी लोकप्रियता और सफलता का मुकाम हासिल करे जो कईयों को टीवी फिल्में करते हुए भी नसीब नहीं हो पाता।
प्रत्यक्ष परिचय नहीं होने के बाद भी मैं श्रीवर्धन को जानता था, हालांकि उसके रंगमंच से रूबरू होने का मौका नहीं मिला था। रंगकर्मी मित्रांे से उनके बारे में जानकारी मिलती रहती थी।

सनसनी में उसकी भूमिका एकरिंग की है लेकिन वह है अभिनय ही। एक ऐसा अभिनय जिसमें सिर्फ एक लाइन हर रात दुहराना है और किसी भी दिन वह नीरस न लगे, बरसों तक। रात के उसके कार्यक्रम को देखते हुए मैं उसके अभिनय के वेरियेशन की बारीकी को पकड़ने की कोशिश करता। ”सन्नाटे को चीरती सनसनी, सन्न कर देती है इंसान को“ यह एक लाइन मुझे हमेशा नई ही लगती थी, हबीब तनवीर द्वारा रंगमंच में कराये जाने वाले इंप्रोवाजेशन की तरह। श्रीवर्धन ने हबीब साहब के साथ काम शायद नहीं किया लेकिन उसके एक लाइन का यह संवाद अहसास कराता है मानों वह हबीब साहब के नाटक में काम कर रहा हो।

आदिवासी जिला डिंडोरी के रहने वाली श्रीवर्धन ने प्रारंभिक शिक्षा वहीं प्राप्त की। बाद में सागर विश्वविद्यालय से एमएससी करने के बाद श्रीवर्धन लेफ्टिनेट पद के लिये चुन लिये गये। वहीं के दो साथी आशुतोष राणा तथा मुकेश तिवारी रंगमंच में कैरियर बनाने की गरज से राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में अध्ययन करना चाहते थे। श्रीवर्धन का भी मन रंगमंच में रमा था। लिहाजा तीनों ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में प्रवेश के लिये आवेदन किया और संयोग से तीनों का एक साथ वहां चयन हो गया। तीन साल कैसे गुजर गये, पता ही नहीं चला। 1994 में एनएसडी से निकलकर अन्य रंगकर्मियों की तरह श्रीवर्धन भी मुम्बई चले गये, काम की संभावना टटोलने। वहां उनकी मुलाकात सागर के ही अभिनेता गोविंद नामदेव से हुई जो एनएसडी से निकलकर फिल्मों में स्थापित हो चुके थे। उन्होंने श्रीवर्धन को सलाह दी कि कुछ समय एनएसडी रेपटरी में काम कर अपने अभिनय को और निखारे। वे रेपटरी में दिल्ली लौट आये। कुछ बरस रेपटरी में रंगमंच किया तथा थोड़े समय के लिये वे उसके मुखिया भी रहे।

एनएसडी रेपटरी के बाद श्रीवर्धन ने अपना रंगमंच जारी रखा। साथ ही कुछ फिल्मों में भी काम किया। इस बीच स्टार न्यूज चैनल एक नये तरह का क्राइम शो आरंभ करना चाहते थे। इस शो के एंेकर के लिये आडिशन हुये लेकिन उस भूमिका के लिये कोई पसंद नहीं आया। इसी भूमिका के लिये श्रीवर्धन को भी बुलाया गया। तब उनके बाल लंबे थे। स्टार न्यूज ने उन्हें भी मना कर दिया क्योंकि क्राइम शो के लिये वे कंट्रास्ट एक खुबसूरत चेहरा ऐंकर के रूप में चाहते थे। एक माह बाद उन्हें स्टार न्यूज से फिर बुलावा आया। उन्होंने छूटते ही कहा कि फिल्म की भूमिका पूरी हो गई है, जिसके लिये मैंने बाल बढ़ाये थे। अब मैं बाल कटवा सकता हूँ। तब तक स्टार न्यूज वालों की सोच बदल गई थी। लिहाजा उन्हें ऐसा करने से मना किया गया और उनके इसी लुक के साथ उन्हें चुन लिया गया। आनन फानन में शो की शूटिंग हुई और उसी दिन से क्राइम शो का प्रसारण भी शुरू कर दिया गया।

इस क्राइम शो में श्रीवर्धन की भूमिका दर्षकों में इतनी पसंद की गई कि वे घर-घर के आइकन बन गये। 2004 में शुरू हुआ यह सिलसिला पिछले 20 साल से चल रहा है। इस बीच स्टार न्यूज बदलकर एपीपी न्यूज हो गया। और भी कई बदलाव हुए लेकिन श्रीवर्धन के क्राइम शो को उसी फारमेट में जारी रखा गया। हर दिन एक ही वाक्य “सन्नाटे की चीरती सनसनी” से शो आरंभ करना और उसे बरसों तक बनाये रखना, किसी भी अभिनेता के लिये बहुत बड़ी चुनौती है।

वह एक और एकमात्र श्रीवर्धन है जिसने इस चुनौती को इस अंदाज में पूरा किया कि वे हर उम्र के दर्शकों के चहेते बने बैठे हैं। यह उनके अभिनय का अनूठा अंदाज और अनूठी शैली है कि इस वाक्य को हर रोज बोलते हुए भी उसमें नीरसता नहीं आने देते। उनके शो के लगभग 8000 एपिसोड पूरा होने जा रहे हैं और यह सिलसिला कब थमेगा या थमेगा भी नहीं, कहा नहीं जा सकता। उनके इस कार्यक्रम को मैं टीवी शो नहीं मानता, उनका रंगमंच मानता हूँ। टीवी शो में तो पल पल नया होता रहता है। दुहराव की कोई गुंजाइश नहीं होती। रंगमंच में यह संभावना रहती है कि एक ही भूमिका को हर शो में अलग-अलग तरह से प्रस्तुत किया जाये जो श्रीवर्धन बीस सालों से हर रोज कर रहे हैं।
श्रीवर्धन पर यह आलेख मैं उसी मुलाकात के बाद ही लिखना चाह रहा था

लेकिन किसी न किसी कारण से यह टलता रहा। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल के 60 बरस पूरे होने पर 1998 में यहां खेला गया नाटक ”ताज महल का टेंडर“ को पुनः प्रस्तुत करने की तैयारी हुई। मजे की बात यह थी कि यह नाटक उन्हीं कलाकारों के साथ खेला जाना था जिन्होंने इसकी पहली प्रस्तुति में भूमिकायें निभाई थी। श्रीवर्धन त्रिवेदी भी इनमें से एक थे। न्यूज चैनल पर सप्ताह में सालों दिन कार्यक्रम देने के कारण उनकी रंगमंच में सक्रियता कुछ कम हो गई थी। ऐसे में एक नये प्रयोग में उनकी रंगमंच में 25 साल पहले निभाई भूमिका के साथ वापसी चुनौतीपूर्ण लेकिन खुशगवार अनुभव रहा होगा। दिल्ली में हुए इस नाट्य प्रदर्शन को मैं नहीं देख पाया लेकिन श्रीवर्धन के अनुभव के साथ यह आलेख लिखना मुझे सामयिक लगा।

”ताजमहल का टेंडर“ नाटक के प्रदर्शन के बाद श्रीवर्धन बेहद उत्साहित थे। उन्होंने बताया कि इस नाटक में उनकी मुख्य भूमिका थी। लगभग दो दशक के अंतराल के बाद उसी भूमिका को फिर से निभाना एक चुनौती थी। तिस पर अलग-अलग कारणों व कलाकारों की व्यस्तताओं के चलते व्यवस्थित रूप से रिहर्सल नहीं हो पाया था। टेकनिकल रिहर्सल के बिना ही नाटक का पहला मंचन हुआ जो बेहद सफल रहा। उसके बाद 4-5 प्रदर्शन और हुए जिसमें अधिक कसावट आ गई। इस नाटक में लंबे-लंबे संवाद बोलने के साथ ही एनर्जी बहुत चाहिए थी।

इन सबके बावजूद अपने और नाटक के ओव्हर आल प्रदर्शन से श्रीवर्धन बेहद संतुष्ट लगे। इस नाटक के पहले प्रदर्शन का निर्देशन चितरंजन त्रिपाटी ने किया था और अब तक उन्हीं के निर्देशन में यह नाटक दो दशकों से खेला जा रहा है। पहले प्रदर्शन में उन्हें अभिनय भी करना था जो नहीं हो पाया था लेकिन इस ताजा प्रदर्शन में उन्होंने अपना अभिनव भी किया। लगातार 4-5 शो होने के बाद भी दर्शकों का इतना उत्साह दिखा कि हर शो हाउसफुल रहा। अब इस नाटक को आगे अलग-अलग शहरों में करने की योजना है। श्रीवर्धन का कहना है कि हर शो में भाग लेना तो संभव नहीं होगा लेकिन सुविधानुसार जहां भी संभव हो, वे इस नाटक में अपनी भूमिका निभाने का प्रयास करेंगे।

श्रीवर्धन पर इस शो की निरंतरता का दबाव इतना रहा है कि एक दौर ऐसा भी आया जब उनकी माँ वेंटिलेटर पर थी और उन्हें उनके पास एक माह जबलपुर रहना था। तब भी शो की निरंतरता प्रभावित नहीं हुई और जबलपुर में सेट लगाकर वे इस शो की शूटिंग करते रहे। इतने लंबे समय पर प्रतिदिन चलने वाला टेलिविजन का संभवतः पूरी दुनिया में एकमात्र शो है जिसके एंकर श्रीवर्धन ने विश्व रिकार्ड बनाया। बिना एक दिन के अंतराल लगभग आठ हजार दिन तक लगातार किसी शो की प्रस्तुति श्रीवर्धन की रंगमंचीय उपासना का अप्रतिम उदाहरण बन गया है।

“सनसनी“ के अपने अनुभव से श्रीवर्धन पूरी तौर पर संतुष्ट है। उनका मानना है कि इस शो के जरिये अभिनय करने का शौक भी पूरा हो रहा है और बेहतर ढंग से आजीविका भी चल रही है। हर दिन शूट होने वाले इस कार्यक्रम के साथ-साथ जितना समय और मौका मिलेगा वे रंगमंच पर अपनी सक्रियता बनाये रखेंगे। न्यूज चैनल के न्यूज आधारित कार्यक्रम में अपने अभिनय की अमिट पहचान बनाने वाले श्रीवर्धन ने अन्य रंगकर्मियों के लिये काम करने की एक नई राह तैयार की है। आज उनके पास ऐसे अनेक टीवी कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के प्रस्ताव आये है लेकिन वे चाहते हैं कि ’सनसनी’ से बचे वक्त का उपयोग वे अपने रंगमंच के लिये करें।

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